Wednesday, November 13, 2019

आज कल धर्म पर ज्यादा पोस्ट कर रहा हु

धर्म समाज को स्थायित्व प्रदान करने, सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने तथा मानव जात के सार्वलौकिक कल्याण तथा प्रगति के लिए होता है।  इन उद्देश्यों की पूर्ति में जो कुछ भी सहायक होता है, वही धर्म है।
धर्म को बचाए रखने का अर्थ है हमारी सभ्यता को जीवित रखना और यदि इस विधि के शासन का अनुपालन करेंगे तो हमारा मानव समाज जीवित रहेगा   चाणक्य,ने कहा था कानून और नैतिकता के बल पर ही विश्व टिका हुआ है हमारे जीवन में इसे चरितार्थ करने के लिए हम सबको इस काम में हाथ बटाना है और अपनी भूमिका निभानी है।
नर-नारी दोनों आज अपनी मर्यादा भूल के शर्मनाक आचरण कर रहे हैं| खुद को फैशनेबल दिखाने की होड़ लगी हुई है| आधुनिकता के नाम पर कैसे-कैसे नंगे नृत्य हो रहे हैं ये किसी से छिपा नहीं है| घातक नशीली वस्तुएं तो आजकल सर्वसुलभ हो चुकीं हैं| देर रात तक नाईट-क्लबों में बजनेवाले बेहूदा किस्म के घटिया गाने किसकी आनेवाली नस्लों को बर्बाद कर रहे है? किसी विदेशी की? बच्चे अपना बचपना तो कब के भूल चुके| दस से बारह साल तक आते-आते न वो सिर्फ "गर्लफ्रेंड" बनाने लगते हैं बल्कि आधुनिक अलादीन के चिराग "मोबाइल" पर ब्लू फ़िल्में भी देखने में लग जाते है| युवाओं ने तो जैसे कसम खा ली है कि अपनी छोड़ किसी की नहीं सुनेंगे| पैदा ही होते हैं इच्छित लड़की से विवाह करने के लिए| भले इसके लिए अपने माँ-बाप तक छोड़ना पड़े| यही बात युवतियों के साथ भी लागू होती है|
आज अगर कठोरतम कानूनों के बावजूद बलात्कार, लूटमार और घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं तो क्यों? क्यों आज भाई-बहन का पवित्र रिश्ता दागदार हो रहा है? आखिर क्यों चाचा, मामा, ताऊ यहाँ तक की पिता के द्वारा भी बच्चियों के शोषण के मामले सामने आ रहे हैं? क्यों आज गुरु-शिष्या का रिश्ता भी निष्कलंक नहीं रहा? पति-पत्नी के सात जन्मों के रिश्ते को लिव-इन-रिलेशनशिप जैसा वाहियात विचार चुनौती दे रहा है तो इसकी वजह क्या है? एक साली अपने जीजा पर और एक देवर अपनी भाभी पर डोरे डाले, ये सोचे बिना कि उसकी बहन या उसके भाई का क्या होगा तो क्या ये वैध है? लेकिन ये सब भी हो रहा है और इससे महिलाएं और पुरुष दोनों प्रभावित हो रहे हैं|कहने का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि आज हमारे समाज में जो भी अपराध हो रहे हैं, जिनके बारे में चिल्लाते-चिल्लाते कई लोगों का गला बैठ गया है, उन सबकी एकमात्र वजह धर्म का ह्रास है| कठोर क़ानून जहाँ मनुष्य को डराता है वहीँ धर्म उसे समझाता है| उसे उन मूल्यों से परिचित कराता है जो मानवता के लिए आवश्यक हैं| धर्म को अपनाते ही मनुष्य अपनेआप मानवता को आत्मसात कर लेता है| उसे तब न किसी कानूनी रोक की जरूरत है न किसी डर की| वो स्वयं भी सुखी रहेगा और जग के कल्याणार्थ सदैव प्रयत्नशील रहेगा| हमेशा प्रसन्न रहेगा और दूसरों को भी प्रसन्न रखेगा| वो सही अर्थों में मनुष्य बन जायेगा|
ये बात सही है कि धर्म के नाम का सहारा ले के कुछ लोगों ने गलत किया और शायद आज भी कुछ लोग इसी में संलिप्त हैं किन्तु ये बात धर्म के सनातन महत्त्व को कभी भी नकार नहीं सकती| कुछ कुंठाग्रस्त लोग अधर्मियों के द्वारा किये गए दुष्कर्मों को आगे कर के धर्म की महत्ता को झुठलाने का प्रयत्न करते रहते हैं और हर बार मुंह की खाते रहते हैं| उनका ये प्रयास न कभी सफल हुआ है और न कभी होगा| उनकी जिंदगी बीत जाएगी यही करते हुए| ऐसे लोगों के लिए मेरे मन में कुछ प्रश्न हैं जिन्हें उनके सामने रखना चाहता हूँ| वो दुनिया की कोई एक चीज ला के दिखाएँ जिसका कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा दुष्प्रयोग न हुआ हो| मैं ही कुछ ऐसी चीजों के नाम बताता हूँ जिनका गलत उपयोग होता है और उन्हें इसका भी त्याग करना चाहिए - (a) साहित्य जो सबको ज्ञान देने के काम आता है,  इसका उपयोग नफरत फ़ैलाने के लिए करते है| अतः वो साहित्य भी छोड़ दें| (b) फ़िल्में जो कभी क्रांति लाती थीं, आजकल अश्लीलता परोस रहीं हैं| फ़िल्में भी न देखें| (c) मोबाइल का भी दुरुपयोग हो रहा है| अपना मोबाइल जल्द से जल्द फेंक दें| (d) प्रेम के नाम पर बहुत यौन-शोषण हो रहा है अतः प्रेम भी बुरी चीज है| (e) जिस इंसानियत की वो माला जपते चलते हैं उसके नाम पर कुछ अनाथालय और विधवाश्रम वेश्यावृति को बढ़ावा दे रहे हैं और सरकार से पैसे भी ऐंठ रहे हैं| आज से इंसानियत का नाम नहीं लेंगे| मैंने ऊपर जिन चीजों का जिक्र किया वास्तव में उनके नाम पर वो सब चीजें हो रहीं हैं| क्या हम उन्हें छोड़ सकते हैं? नहीं, कभी नहीं| और छोड़ना चाहिए भी नहीं| लड़ना किसी भी संरचना में मौजूद बुराई से चाहिए न की उस संरचना से ही|
धर्म मानवता की आत्मा है| ये एक निर्विवाद सत्य है| अतीत में जाकर धर्म की बुराइयाँ ढूँढनेवाले उन्हीं पन्नों को ठीक से देखें, एक बुराई के मुकाबले सौ अच्छाईयाँ दिखेंगी| कुछ गलत हुआ है तो वो धर्म से भटकाव है, धर्म नहीं| वैसी बातों को आप अपने कुतर्कों का आधार नहीं बना सकते| जरूरत है अपनी दृष्टि को पूर्वाग्रहों से मुक्त करने की| हठ त्याग के विचार करने की| तभी कोई सही निर्णय हो पायेगा जो सही मायने में समाज और मानवता का भला करेगा