Sunday, March 1, 2020


  🎗️🎗️मगध के कुलदेवताओं और ग्रामदेवता 🎗️🎗️
प्राचीन मगध में आम लोग पुरोहित की सहायता के बिना धार्मिक अनुष्ठान कर लेते थे राजकीय आयोजन बाभन की देखरेख में होता था
प्रस्तुति अरविन्द रॉय
कुलदेवताओं और ग्रामदेवताओं के नाम गोरैया बाबा, बंदी माय, सोखा बाबा, कारिख, सलहेस, दीना भदरी, बरहम बाबा, गिहल, विषहरा, काली, बामती आदि.
इन देवताओं को पूजने वालों की संख्या करोड़ों में है.
हिन्दू धर्म में ३३ करोड़ देवी देवता माना गया है
ऋग्वेद संहिता मंडल 1 सूक्त 45 का श्लोक 2 इस प्रकार है: श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः ।
तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥
अर्थात :- हे अग्निदेव ! विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न देवगण, हवि दाता के लिए उत्तम सुख देते हैं। हे रोहित वर्ण अश्व वाले (रक्तवर्ण की ज्वालाओं से सुशोभित) स्तुत्य अग्निदेव ! उन तैन्तीस कोटि देवों को यहाँ यज्ञ स्थल पर ले कर आएँ
जबकि मंडल 1 के ही सूक्त 34 का श्लोक 11 इस प्रकार है आ ना॑सत्या त्रि॒भिरे॑काद॒शैरि॒ह दे॒वेभि॑र्यातं मधु॒पेय॑मश्विना ।प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒ नी रपां॑सि मृक्षतं॒ सेध॑तं॒ द्वेषो॒ भव॑तं सचा॒भुवा॑ ॥अर्थात :- हे अश्विनी कुमारों! आप दोनो, तैन्तीस देवताओं के सहित इस यज्ञ में मधुपान के लिए पधारें। हमारी आयु बढ़ायें और हमारे पापों को भली भाँति विनष्ट करें। हमारे प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करके सभी कार्यों में सहायक बने।
रोचक तथ्य यह है कि अगर आपका नाता ग्रामीण जनजीवन से नहीं है तो इनमें से ज्यादातर देवी-देवताओं के आपने नाम नाम तक नहीं सुने होंगे  आपको यह जानकर हैरत होगी कि गोरैया बाबा जिनकी पूजा गोपालगंज से लेकर वैशाली तक के इलाके में की जाती है उनको पूजने वाले लोग करोड़ में हैं. यूपी तक में लोग इनकी अाराधना करते हैं.  पहले इनकी पूजा पासवान जाति के लोग करते थे, अब सभी पिछड़ी और दलित जातियों में इनकी पूजा होती है. इनके साथ बन्नी माई या बंदी माई की भी पूजा बड़ी संख्या में लोग करते हैं. गोरैया बाबा को रक्षक माना जाता है और बन्नी या बंदी माई कुलदेवी होती हैं. इसी तरह सोखा बाबा और कारिख धर्मराज के उपासक भी उत्तर बिहार में बड़ी संख्या में हैं. बरहम बाबा या डिहबार बाबा का स्थान तो तकरीबन हर गांव में मिल जाता है.  गिहल चारागाह के देवता हैं और यादव समुदाय के लोग इनके उपासक हैं, राजा सल्हेस और दीना भदरी का नाम तो अपेक्षाकृत पापुलर है और दलित जातियों में इनका भरपूर सम्मान है. बामती शमशान की देवी हैं. वे कहते हैं, काली मां को भी बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी कुलदेवी बताया है, मगर यह प्रचिलत देवी दक्षिणेश्वर काली से भिन्न लगती हैं. लोग गहवर में इनके नाम से सात पिंडा बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं. इन्हें सतिबहनी कहना ज्यादा उचित होगा.  उत्तर बिहार में 450 के करीब कुलदेवी-कुलदेवताओं की पूजा की जाती है. इन देवी-देवताओं की पैठ ज्यादातर पिछड़ी और दलित जातियों के बीच है, इसके अलावा दलित और अति पिछड़ी जातियों में मनुख देवा भी कई प्रकार के हैं. जैसे बघौत. इसका अर्थ समुदाय का कोई व्यक्ति जो बाघों से लड़ता हो उसे देव मान लिया जाता है.  परिवार की कोई लड़की अगर कुंवारी मर गयी हो और उसकी मौत के बाद परेशानियां शुरू हो गयी हों तो बाद में लोग उसकी पूजा करने से लगते हैं, इस उम्मीद से कि पूजा के बाद उस लड़की की आत्मा उन्हें परेशान करना बंद कर देती. फिर आगे चल कर वही बच्ची देवी बन जाती है.  इन कुलदेवी-देवता की पूजा कई पीढ़ियों से की जाती रही है.उनके मुताबिक ये देवी-देवता रैयतों के हैं, जो इन इलाकों के स्थायी बाशिंदे रहे हैं. लिहाजा इन देवी-देवताओं के बारे में हमें ढेर सारी जानकारी हासिल करने की जरूरत है. जैसे, बहुत कम लोगों को पता होगा कि गोपालगंज स्थित अजबीनगर में गोरैया बाबा का मंदिर है और वहां हर साल इनके बेरागन वाले दिन हजारों सूअरों की बलि चढ़ती है. सीवान जिले का गोरैयाकोठी कस्बा भी संभवत: इन्हीं गोरैया बाबा के नाम पर स्थापित है.  सच यही है कि अब तक हिंदू धर्म में कुछ हीदेवी-देवताओं और उनके नाम पर होने वाले पर्व त्योहारों के बारे में जानकारी सामने आयी है. जबकि हमें जानना चाहिए कि पिछड़ी और दलित जाति के लोग किस-किस तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. उनकी पूजा पद्धति कैसी है. उनके धार्मिक उत्सव किस तरह के हैं. इस बारे में अभी बहुत शोध किये जाने की जरूरत है. तभी हिंदू धर्म का प्लूरलिस्टिक स्वरूप सामने आ सकेगा.  एक और रोचक तथ्य जो उभर कर सामने आया है, वह यह है कि जैसे-जैसे हम जातीय श्रेणी में नीचे उतरते जाते हैं, कुलदेवी या देवताओं की संख्या बढ़ती जाती है.  जैसे अमूमन सवर्ण जाति के लोगों के कुलदेवी या देवता एक होते हैं. मझोली जाति यादव, कुर्मी आदि में यह संख्या दो से तीन तक मिलती है. अति पिछड़ी जाति के परिवारों में तीन-चार कुलदेवी या देवता होते हैं. जैसे कई परिवारों में गोरैया-बंदी या गिहल-बंदी की एक साथ पूजा होती है. वहीं महादलित परिवारों में तो कुलदेवी और देवताओं की संख्या 10 से 15 तक मिलती हैं. 

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