Tuesday, January 22, 2019

बड़े से बड़े जातिवादी विद्वानों को पता नहीं होगा कि ब्राह्मणों के अंदर एक समानांतर जातिभेद है और वह इतना कट्टर और तीक्ष्ण है कि आज भी वह जस का तस लागू है तथा आज तक किसी गांधी ने उसे तोडऩे हेतु कोई उद्घार आंदोलन नहीं चलाया। मसलन एक ब्राह्मण कम्युनिटी ऐसी है जिसकी छाया तक से ब्राह्मण दूर भागते हैं। यह छुआछूत आज 21 वीं सदी में अमल में लाया जाता है। मृतक संस्कार कराने वाले ब्राह्मण को घर में नहीं घुसने दिया जाता और उसका स्पर्श किया हुआ कुछ भी खायापिया नहीं जाता। काशी के डोम राजा की हैसियत उससे लाख गुना बेहतर है। अलबत्ता उसके पैर छूते हैं। इसी तरह किसी मंदिर का पुजारी, यदि वह मंदिर संपन्न नहीं है तो उसकी मर्यादा उतनी ही होती है कि बेचारा घंटा बजाता रहे। पुरोहित ब्राह्मण को सम्मान तो मिलता है पर उसे अपने घर बुलाकर डायनिंग टेबल पर साथ बैठकर भोजन करने की मनाही है। वह खुद किसी को भोजन हेतु आमंत्रित करे तो गृहस्थ ब्राह्मण उसके यहां भोजन करने नहीं जाएगा। जो ब्राह्मण शूद्र जातियों के यहां शादी-विवाह या कथा आदि करवाते हैं उनसे ब्राह्मण समाज अपने घर बुलाकर शादी-विवाह आदि संस्कार नहीं करवाते। इसके अलावा गृहस्थ कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज के अंदर परस्पर भेदभाव है। मसलन बिस्वा आवंटन में जिन जातियों को पांच से कम बिस्वा मिले उनसे घुलामिला नहीं जाता। कहते हैं अकबर ने ये बिस्वादि बांटे थे। जो पहले पहुंच गए उन्हें बीस बिस्वा की आस्पद मिली जो देर से पहुंचे वे धाकड़ कहलाए। कुछ बेचारे छूट गए जैसे पाठक, उपाध्याय, ओझा और चौबे आदि। कहा जाता है कि बारिश हो हो रही थी और वे किसी वजह से अकबर के दरबार में नहीं आ पाए और बिस्वा पाने से रह गए। ऐसी ही छूतछात सरयूपारीण समाज में हैं। वहां मणिधारी ब्राह्मण तो अत्यंत भयानक होते हैं। मशहूर पत्रकार, चिंतक और साहित्यकार विद्यानिवास मिश्र साहब ने बताया था कि वे एक तो मणि धारी ब्राहमण हैं दूसरे स्वयंपाकी हैं। स्वयंपाकी यानी किसी का भी छुआ न खाने वाले। ऐसे ही एक अन्य ब्राह्मण विद्वान श्रीनारायण चतुर्वेदी थे। ऐसा ही जातिवाद अन्य ब्राह्मणों में भी होगा पर मेरी जानकारी में नहीं है। इसकी वजह है कि ब्राह्मणों में एक परंपरा चली आ रही है कि संकट के वक्त गैरब्राह्मण समुदाय के आश्रय में भले जाया जाए मगर किसी अन्य गोत्रीय ब्राह्मण समुदाय की शरण न ली जाए। इसलिए ब्राह्मण समाज ने आजतक अपने अंदर के भेदभाव से लडऩे का प्रयास नहीं किया।
(हिंदी के पत्रकार और गांधी जी के करीबी रह चुके अंबिका प्रसाद बाजपेयी ने यह लिखा है।)

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