भारत में करोड़ों ब्राह्मण हुए हैं .सबकी पहचान क्या है ? 'पण्डे-पुरोहित की' .पर क्या सारे के सारे लोग मंदिरों में ही बैठे हुए थे ?..हरियाणा -उत्तर प्रदेश-बिहार -राजस्थान-मध्य प्रदेश -बुंदेलखंड के ब्राह्मण खेतों में पसीना बहाते रहे और शानदार कृषि करते रहे . भारत के सबसे शानदार किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती भूमिहार ब्राह्मण थे .अवध में ज़मींदारों के अत्याचार के खिलाफ किसान विद्रोह का नेतृत्व करने वाले बाबा रामचन्दर ब्राह्मण थे .चित्तू पाण्डे जैसे जुझारू किसान नेता पूर्वी उत्तर प्रदेश में हुए .1857 से पहले यही लोग सेना में रहे .पर ये क्या हुआ कि हमारे माथे पर 'पुरोहित या दान लेने वाले का ' स्टीकर चिपका दिया गया .हमने इसे मान भी लिया .हमनें एक पाप कर दिया .अपने पुरखों के पसीने को भुला दिया .उस गौतम ऋषि को भुला दिया जिसने कृषि के परम्परा शुरू की .आज अगर किसी के पास ज़मीन नहीं है तो क्या हुआ .उसके पुरखे तो खेती पर ही जी रहे थे .सांस्कृतिक पहचान पुरखों से होती है .और वो सब मंदिरों में नहीं थे .याद रहे - पण्डे पुरोहित को कटघरे में खड़ा करना आसान है .किसान को नहीं .इसलिए वो पहचान छीन ली गई .इस षड़यंत्र में अँगरेज़ सफल हुआ .आज़ादी के बाद बाकी सब किसान जातियों से सम्बन्ध टूट गए .सिर्फ इस आधार पर कि ब्राह्मण काम करके नहीं खाता बल्कि मांगकर खाता है .प्रतिक्रिया में ब्राह्मणों ने 'दान' का बचाव शुरू कर दिया .किसी ने ये नहीं सोचा कि लाखों ब्राह्मण खेत में एड़ियां रगड़ रहे हैं .धीरे धीरे ज़मीनें छिनती गईं .बच्चे शहरों में नौकरियों में आ गए .और सारा किसान इतिहास भुला दिया गया
Friday, February 8, 2019
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