🎗️🌹🎗️गर्ग गोत्र🎗️🌹🎗️
महर्षि गर्ग,विदुषी गार्गी कोटि-कोटि नमन
भारद्वाज, कश्यप , गौतम,वत्स , पराशर , शाण्डिल्य गोत्र की जानकारी पिछली पोस्ट में दी गयी है
जमींदार ब्राह्मणों में कान्यकुब्ज ब्राह्मण,सरयूपारीण ब्राह्मण और भूमिहार ब्राह्मणों में गोत्र गर्ग पाया जाता है
प्रस्तुति अरविन्द रॉय
महर्षि गर्गाचार्य ऋषि ज्योतिष शास्त्र के प्रधान ज्ञाता एवं भगवान श्री कृष्ण के कुलगुरु, विदुषी गार्गी महर्षि गर्ग के कुल मे जन्म लेने के कारण इन्हे गार्गी नाम से जाना जाता है।बहुत से लोगों का गोत्र गर्ग है और बहुत से लोगों का उपनाम गर्ग है। सभी का संबंध गर्ग ऋषि से है। वैदिक ऋषि गर्ग आंगिरस और भारद्वाज के वंशज 33 मंत्रकारों में श्रेष्ठ थे। गर्गवंशी लोग ब्राह्मणों और वैश्यों (बनिये) दोनों में मिल जाएंगे। एक गर्ग ऋषि महाभारत काल में भी हुए थे, जो यदुओं के आचार्य थे जिन्होंने 'गर्ग संहिता' लिखी।
ब्राह्मण पूर्वजों की परंपरा को देखें तो गर्ग से शुक्ल, गौतम से मिश्र, श्रीमुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी वंश प्रकाश में आता है। गर्ग ऋषि के 13 लड़के बताए जाते हैं जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल वंशज कहा जाता है, जो 13 गांवों में विभक्त हो गए थे।
महान ऋषि थे महामुनि गर्ग या गर्गाचार्य जी जो ज्योतिष शास्त्र के महान आचार्य व गणितज्ञ थे।
अखिल ब्रह्मांड से लेकर सूक्ष्म पिण्ड पर्यन्त ज्योतिष महाविज्ञान का क्षेत्र है। अनादि काल से शाश्वत चली आ रही इस महा विज्ञान गणित भी शाश्वत सत्य है। संसार की समस्त विद्याएँ इसमें समाई हुई है। जिन भारतीय दिव्य ऋषियों ने वेद ज्ञान अपने तपोबल से प्राप्त किया जिसमें महर्षि गर्ग का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के प्रधान प्रवर्तक भगवान गर्गाचार्य जी रहे है जो अठारह ज्योतिष शास्त्र वैदिक प्रवर्तकों जैसे ब्रह्मा, गर्ग, पराशर, कश्यप, सूर्य, मरीचि, मनु, वशिष्ठ, अत्रि, नारद, अंगिरा, लोमश, पोलिश, च्यवन , भृगु, शौनक, व्यास, एवं यवन आदि गुरु परम्परा में प्रमुख रहें हैं। ऐसा महर्षि ने अपने शास्त्र होरा में लिखा हैं-
” वेदेभ्य समुद्धृत्य ब्रह्मा प्रोवाच विस्तृतम् । गर्गस्तमा मिदं प्राह: मया तस्माद्यथा: तथा ।। “
अर्थात् भगवान ब्रह्मा जी ने वेद से निकाल कर नैत्र रूप वेदांग ज्योतिष शास्त्र को सर्व प्रथम महर्षि गर्गाचार्य ऋषि को प्रदान किया । ज्योतिष शास्त्र में महर्षि गर्ग ने महाग्रन्थ श्री गर्ग होरा की रचना की थी जो ज्योतिष का महान शास्त्र है। इस प्रकार महर्षि गर्गाचार्य अठारह वेदांग ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकों में गुरु सिद्ध हुए। भगवान गर्गाचार्य जी न केवल ज्योतिष शास्त्र के आचार्य थे, वरन् चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद सहित षट् दर्शन के पारगड्त महान आचार्य रहे है।
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि षट् वेदांग के भी पूर्णत: आचार्य थे। यह 88 हजार ऋषियों मे एकदम से सभी सद्गुण एक साथ केवल ” महर्षि गर्गाचार्य जी” में होने के से वे सर्व ब्रह्मर्षियों में वे भगवान ” गुरु ” कहलाये। वे ही महर्षि गर्गाचार्य ऋषि द्वारिकाधाम के राजा भगवान वासुदेव श्री कृष्ण के राजगुरु पद से सुशोभित हुए। इसी
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि भगवान श्री कृष्ण के कुल यदुवंशी के राजगुरु थे। इन्होंने ने भगवान श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार व भविष्य वर्णन कर विभिन्न लीलाओं का आगम भविष्यवाणी की थी। इन्होंने नंद परिवार वासुदेव पर कंस का संकट आने पर स्वयं नंदबाबा के महल जाकर भविष्य वर्णन बताया था। इन्होंने श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित संस्कृत में “गर्ग संहिता” नामक ग्रन्थ लिखा था जो सर्व लोकप्रिय है।
श्री कृष्ण भगवान पर इनके द्वारा रचित “गर्ग संहिता” न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया गया है। गर्ग संहिता में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है। इस ग्रन्थ में तो यहां तक कहा गया है, कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा का विवाह हुआ था।
महर्षि गर्ग मुनि ने ही श्री शंकर का विवाह पार्वती के साथ सम्पन्न करवाया था। यह महाराजा हिमाचल के और पृथ्वी के प्रथम राजा माने जाने वाले पृथु के कुलगुरु व राजगुरु पद से सुशोभित रहे है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि आज भी हिमालय की गुफाओं में ध्यानस्थ हैं क्योंकि किसी भी शास्त्र में इनके देहांत का प्रसंग नहीं आता है। प्रतिवर्ष अनवरत महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि की भादवा सुदी पंचमी को देशभर में जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
गर्ग संहिता में शरीर के अंग लक्षण के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया हैं। गर्ग संहिता यदुवंशियों के आचार्य गर्ग मुनि की रचना है। यह संहिता मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। इसमें राधाजी की माधुर्य-भाव वाली लीलाओं का वर्णन है। श्रीमद्भगवद्गीता में जो कुछ सूत्ररूप से कहा गया है, गर्ग-संहिता में उसी का बखान किया गया है। अतः यह भागवतोक्त श्रीकृष्णलीला का महाभाष्य है। भगवान श्रीकृष्ण की पूर्णाता के संबंध में गर्ग ऋषि ने कहा है –
यस्मिन सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि। त वेदान्त परे साक्षात् परिपूर्णं स्वयम्।।
जबकि श्रीमद्भागवत में इस संबंध में महर्षि व्यास ने मात्र कृष्णस्तु भगवान स्वयम् — इतना ही कहा है।
श्रीकृष्ण की मधुरलीला की रचना हुई दिव्य रस के द्वारा उस रस का रास में प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत् में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है; जबकि इस गर्ग-संहिता में वृन्दावन में, अश्व खण्ड के प्रभाव सम्मिलन के समय और उसी अश्वमेध खण्ड के दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय तीन बार कई अध्यायों में बड़ा सुन्दर वर्णन है। इसके माधुर्य ख्ण्ड में विभिन्न गोपियों के पूर्वजन्मों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है और भी बहुत-सी नयी कथाएँ हैं। यह संहिता भक्तों के लिये परम आदरणीय है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ़ तत्त्वों का स्प्ष्ट रूप में उल्लेख है।
महर्षि गर्गाचार्य प्रसिद्ध मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। ऋग्वेद ६।४७ सूक्तके द्रष्टा भगवान् गर्ग ही हैं। इनका प्रसिद्ध आश्रम कुरुक्षेत्र में देवनदी सरस्वती के तट पर निर्दिष्ट है। ऐसी प्रसिद्धि है कि इन्होंने यहीं ज्ञान प्राप्त किया और ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों की रचना की। गर्गसंहिता-जैसा परम पवित्र ऐतिहासिक ग्रन्थ महर्षि गर्गाचार्य की ही कृति है। महर्षि गर्ग परम शिवभक्त थे। ये पृथ्वी के प्रथम राजा महाराज पृथु व महादेवी पार्वती के पिताश्री राजा हिमाचल के और भगवान श्री कृष्ण और यदुवंशियोंके गुरु तथा कुलपुरोहित कुलगुरु रहे हैं।
गोत्रकार ऋषियों में आपकी गणना विशिष्ट रूप में होती है। हिमालय के नैनीताल नैनी देवी के उद्गम स्थल से प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि गर्ग ने अपने आश्रम गर्गाचंल का उल्लेख है जहां नैनीताल घाटी पर तीन ऋषि अत्रि, अगस्त्य व पुल्हस्त्य ऋषि आए थे पूजा पाठ करने पर उन्हे जल नहीं मिला तो महर्षि गर्ग ऋषि ने अपने तपोबल से मानसरोवर से निकाल वहां झील बनाई आज भी त्री-रिख यानि तीन ऋषि नाम से प्रसिद्ध है।
और इसी तरह वर्तमान झारखंड राज्य के बोकारो जिला में कसनार नामक जगह पर उनका आश्रम था जो द्वापर युग में महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि की यपोस्थली रहा है जहां उन्होंने एक सत्रह एकड़ में सरोवर तालाब कलौंदीबांध बनाया था आज भी मौजूद है। जिसका पौराणिक महत्व बताते हैं कि कलौंदीबांध तालाब का निर्माण द्वापर युग में महर्षि गर्ग के मार्गदर्शन में हुआ था।
श्रीकृष्ण जब कंस को मारने निकले तो इसी स्थल पर यज्ञ किया था। जल की कमी को देखते हुए उन्होंने यहां तालाब बनवाने का निर्णय लिया। इसका जिम्मा तेलमुंगा के धनी व्यक्ति कलौंदी साव को दिया गया। इन्होंने ग्रामीणों के सहयोग: चाणक्य (कौटिल्य)
कालांतर में कंसमार शब्द का अपभ्रंश कसमार बना तथा गर्ग से गरगा नदी हुआ। बताया यह भी जाता है कि बांध में सोने की कलश में चांदी के सिक्के भरकर एक मुर्गे को तालाब में छोड़ा गया था जो बांध के चारों ओर पानी में तैरता था। उस सोने के कलश को छूने की मनाही थी, अगर कोई छूए तो उसे देवता का कोपभाजन होना पड़ता था। निर्माण के सात दिन तक भारी आंधी-पानी से तालाब का मेड टूट गया। यहीं से गरगा नदी का उद्गम स्थल है जो कसमार व जरीडीह प्रखंड के कई गांवों से गुजरती हुई चास व बोकारो होते हुए लगभग 35 किमी की दूरी तय कर पुपुनकी के पास दामोदर नदी में मिल जाती हैं।
इसी प्रकार महर्षि गर्ग ऋषि ज्योतिष शास्त्र के साथ ही कई कुलों के कुल गुरू रहे है अपनी प्रखर तपोबल से सबको मार्गदर्शन दिया। महर्षि गर्गाचार्य ऋषि से भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा ग्रहण करके संपूर्ण प्रजा का पालन किया।
गर्ग वंश की कुल दीपिका विदुषी गार्गी -
महान 'विदुषी गार्गी गर्ग' वैदिक काल की एक विदुषी महिला थी। इनके पिता महर्षि वाचकनु थे इसलिए इनका नाम वाचकन्वी रखा गया और महर्षि गर्ग के कुल मे जन्म लेने के कारण इन्हे गार्गी नाम से जाना जाता है।
गार्गी एक महान प्राकृतिक दार्शनिक, वेदो की व्याख्याता और ब्रह्म विद्या की ज्ञाता थी। इन्होने शास्त्रार्थ मे कई विद्वानो को हराया था। एक बार राजा जनक द्वारा आयोजित यज्ञ मे गार्गी ने महर्षि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ किया। इस शास्त्रार्थ मे गार्गी के द्वारा पुछे गए प्रशनो के उत्तर देने के लिए महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्रह्म दर्शन का प्रतिपादन करना पड गया।
गार्गी वेद उपनिषदों की ज्ञाता -
गार्गी वाचकन्वी ' (लगभग 700 ईसा पूर्व का जन्म) एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक थी। वेदिक साहित्य में, उन्हें एक महान प्राकृतिक दार्शनिक, वेदों के प्रसिद्ध व्याख्याता, और ब्रह्मा विद्या के ज्ञान के साथ ब्रह्मवादी के नाम से जाना जातीं है। बृहदारण्यक उपनिषद के छठी और आठवीं ब्राह्मण में उसका नाम प्रमुख है क्योंकि वह विद्या के राजा जनक द्वारा आयोजित एक दार्शनिक बहस में ब्राह्मण्य में भाग लेती है और संयम (आत्मा) के मुद्दे पर परेशान प्रश्नों के साथ ऋषि यज्ञवल्क्य को चुनौती देती है। यह भी कहा जाता है कि ऋग्वेद में कई भजन लिखे हैं। वह अपने सभी ब्रह्मचर्य बने और परंपरागत हिंदुओं द्वारा पूजा में आयोजित किया गया। ऋषि गर्ग की वंश (सी। 800-500 ईसा पूर्व) में ऋषि Vachaknu की बेटी गार्गी, का नाम उसके पिता के नाम पर गर्ग Vachaknavi के रूप में किया गया था। एक युवा उम्र से वे वैदिक ग्रंथों में गहरी रूचि प्रकट की और दर्शन के क्षेत्र में बहुत ही कुशल थीं। वह वैदिक काल में वेद और उपनिषद में अत्यधिक जानकार बन गए थे और अन्य दार्शनिकों के साथ बौद्धिक बहस आयोजित करते थे। वाचकन्वी, वचक्नु नाम के महर्षि की पुत्री थी। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण वे गार्गी नाम से प्रसिद्ध हैं।
प्राचीन भारत की महान ब्रह्मज्ञानी थी गार्गी -
गार्गी वेदज्ञ और ब्रह्माज्ञानी थी तो वे सभी प्रश्नों के जवाब जानती थी। यहां इस कहानी को बताने का तात्पर्य यह है कि अर्जुन की ही तरह गार्गी के प्रश्नों के कारण ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’ की ऋचाओं का निर्माण हुआ। यह उपनिषद वेदों का एक हिस्सा है।अगर वैदिक साहित्य पर सूर्या सावित्री छाई हैं तो ब्राह्मण और उपनिषद साहित्य पर गार्गी वाचक्नवी छाई हैं।
सूर्या तब हुई जब देश में मंत्रों की रचना समाप्ति की ओर थी और Mahabharata से थोड़े ही समय पूर्व उसने विवाह सूक्त की रचना कर वैदिक साहित्य और महाभारत पूर्ववर्ती समाज में इस अर्थ में क्रान्ति ला दी थी कि उसने विवाह संस्थाका रूप ही बदल दिया और आज से करीब पांच हजार साल पहले उस विवाह प्रथा का चलन किया जो हम आज तक अपनाए हुए हैं। वाचक्नवी गार्गी इस देश में तब थीं जब वैदिक मंत्र रचना के अवसान के बाद चारों ओर ब्रह्मज्ञान पर वाद-विवाद और बहसें हो रही थी और याज्ञवल्क्य जिस परिदृश्य को अपना एक अद्भुत नेतृत्व प्रदान कर रहे थे।
इतिहास में प्रकाश स्तंभ भारत का गौरव गार्गी गर्ग -
गार्गी उसी युग में हुई थीं और जनक की ब्रह्मसभा में उन्हीं याज्ञवक्ल्य के साथ जबर्दस्त बहस करके गार्गी ने एक ऐसा नाम हमारे इतिहास में कमाया कि इस प्रकाश स्तम्भ को देश आज भी गौरवपूर्वक याद करता है। कौन थी गार्गी वाचक्नवी पूरा भारत जिसे पिछले पांच हजार साल से आदरपूर्वक याद करता आ रहा है उसके बारे में कोई खास सूचना पूरे संस्कृत साहित्य में हमें नहीं मिलती। क्या इसे अजीब माना जाए या एक विदुषी नारी का अपमान कुछ भी नहीं क्योंकि इस युग के जितने भी बड़े-बड़े दार्शनिक थे उनमें से किसी के बारे में कोई खास जानकारियां हमें नहीं मिलतीं। बस उतनी ही मिलती है जितनी ब्रह्मचर्चाओं के दौरान हमें संयोगवश मालूम पड़ जाती हैं। याज्ञवल्क्य के बारे में भी यही सच हैं।
गार्गी का पूरा नाम गार्गी वाचक्नवी बृहदारण्यकोपनिषद 3.6 और 3.8 श्लोक में वही मिलता है जहां वह जनक की राजसभा में याज्ञवल्क्य से अध्यात्म संवाद करती है। इसी वाचक्नवी के आधार पर बाद में लोगों ने कल्पना कर ली कि किसी वचक्नु नामक ऋषि की पत्नी होने के कारण गार्गी का नाम वाचक्नवी पड़ गया। गार्गी अपने समय की प्रखर वक्ता और वाद-विवाद में अप्रतिम होने के कारण गार्गी का नाम वाचक्नवी प्रसिद्ध हो गया होगा। जैसे कई बार प्रसिद्ध सन्तानें अपने पिता को नाम दे दिया करती हैं, वैसे ही गार्गी वाचक्नवी ने अपने पिता को अपने गुण से नाम दे दिया होगा। इसलिए गार्गी वाचक्नवी का अर्थ हुआ वह गार्गी जिसे संवाद या विवाद में कोई हरा न सके। ऐसी महान महिला और गर्ग वंश की कुल दीपिका विदुषी गार्गी को शत् शत् नमन् ।
आस्पद- शुक्ल
प्रवर- आंगिरस,वार्हस्पत्य,भारद्वाज,श्येन,गार्ग्य
वेद- यजुर्वेद
शाखा- माध्यन्दिनीय
सूत्र- कात्यायन
उपवेद- धनुर्वेद
शिखा- दाहिनी
पाद- दक्षिण
उपास्य देवता- शिव
प्रमुख वंश- शुक्ल,तिवारी,भारद्वाज