🌹वत्स देश🌹
मगध साम्राज्य के समान वत्स देश का भी प्रभाव था वत्स देश वत्स गोत्र या वंश का मूल निवास था यहां के महामात्य यौगन्धरायण चाणक्य के समान कुशल था मृगावती, भारतीय इतिहास की सबसे पहली ज्ञात महिला शासकों में से एक हैं
प्रस्तुति अरविन्द रॉय
आधुनिक उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) और उसके आसपास राजधानी कौशांबी।
शतानीक द्वितीय' के बाद उनके पुत्र 'उदयन' "वत्सदेश" के राजा हुए भारतीय इतिहास में यह नाम बहुत प्रमुखता से लिया जाता है, "उदयन" केवल राजा ही नहीं था बल्कि उनके नाम बहुत सारे उनकी साहित्यिक कृतियों भी है, वत्सदेश का मंत्रिमंडल बड़ा सुदृढ़ था राज्य का सारा कार्य मंत्रिमंडल की देख रेख में होता था राज्य का महामात्य 'योगंधरायन' था उनका मंत्री 'हर्षरक्षित' था ये सभी निति निपुण' शास्त्रविद' शूरवीर ब्यक्तित्व के थे वे राज्यहित के लिए कभी भी राजा व रानी से मिल सकते थे देश हित में अपनी नीति चलाते थे एक प्रकार से राजा को अन्य विचार करने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता नहीं था क्योंकि मंत्रिमंडल पूरी जिम्मेदारी से राज्य का कार्य भर देखता था।
राजा उदयन' भारतीय संस्कृति व परंपरा के अनुसार जहाँ राजा व सम्राट तो थे लेकिन वे तानाशाह नहीं होकर एक प्रकार से लोकतांत्रिक ब्यवस्था ही थी सारा का सारा निर्णय मंत्रिमंडल के सदस्यों सामंतो के अधीन होता था यानी राजा भी निर्णय में शामिल होता था न कि वह तानाशाह होता था
राजा उदयन "गज विद्या" में बड़े निपुण थे उन्हें हाथी पकड़नेे का बड़ा सौक था वे "घोषवती" वीडॉ वजाकर हाथी पकड़ लेते थे राज्य्या्भिषेक के कुछ दिन बाद ही अपने सेनापति तथा कुछ सैनिकों के साथ यमुना नदी के बगल 'नागवन' में गए थे उसी समय उज्जैनी राजा "चंद महासेन" जो महापराक्रमी था ने षड्यंत्र द्वारा अपने मंत्री 'शालंकायन' द्वारा "वत्सराज" को बंदी बनाकर उज्जैन लेकर चला गया, उज्जैन राजा की पुत्री "वासवदत्ता" थी उसके लिए संगीत के शिक्षक की आवश्यकता थी वंदी उदयन जब उज्जैन लाया गया तो उसे "राजकुमारी वासवदत्ता" के शिक्षक के लिए नियुक्ति हुई, वे "राजा उदयन" तो थे ही खूबसूरत नवजवान भी थे उनका राजकुमारी से प्रेम हो गया और मंत्री "यौगन्धरायण" की बुद्धि के कारण महाराज उदयन 'राजकुमारी वासवदत्ता' को लेकर भाग गया, महाराज शकुशल अपनी राजधानी "कौशाम्बी" पहुंच गए राजमाता उस समय तक जीवित थी उन्होंने बड़ी धूमधाम से दोनों का विबाह किया, वासवदत्ता से विबाह के पश्चात 'उदयन' राजनीति दृष्टि से मजबूत होने लगे अब उज्जैन का प्रतापी राजा "चन्द महासेन" राजा उदयन के पक्ष में हो गया और राज्यविस्तार में जुट गया
बुद्धिमान मंत्री 'यौगन्धरायण' ने महराज से जब उस सिंहासन पर बैठने के लिए कहा तो महाराज ने कहा कि इस पर बैठने वाले पूरी पृथ्वी पर शासन करते थे यौगन्धरायण बहुत प्रसन्न होकर राजा को दिग्विजय के लिए उकसाने लगा, पड़ोसी राज्य "वाराणसी" 'वत्सदेश' का पुराना शत्रु था उस समय वहां "ब्रम्हदत्त" नाम का राजा राज करता था "राजा उदयन" ने "मिथिला" का राज्य अपने शाले को दे दिया, अपनी सेना के सहयोगी द्वितीय "रानी पद्मावती" के भाई "सिंघवर्मा" को "चेदि राज्य" का राजा वना दिया इस प्रकार राजा ने अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ा लिया, कहते हैं कि "उदयन" के आक्रमण के कारण "काशी नरेश" के मंत्रियों ने विष प्रयोग किया तमाम घास फूसों में कुवा तालाबों में जहरीले पदार्थ का मिश्रण डलवा दिया तथा विषकन्या का भी प्रयोग किया लेकिन "उदयन' का मंत्री यौगन्धरायण बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था उसने सबकी काट कर दिया सैनिक छावनी में आने वाली सभी स्त्रियों का वध करवा दिया वहां के सेनापति की हत्या करवा दिया कुटिनीतिक सफलता प्राप्त हुआ 'राजा ब्रम्हदत्त' चौतरफा आक्रमण से घबरा गया उसने सभी दिशाओं से आक्रमण से महाराज "उदयन" को अजेय समझ वत्सराज के पास शान्ति दूत भेजा, राजा ने उचित उपहार लेकर "राजा ब्रम्हदत्त" का बहुत सम्मान किया, तत्पश्चात वत्सराज उदयन ने वंगदेश, कलिंग, कामरूप देश, विन्ध्य पर्वतीय राजाओं होते हुए दक्षिण में चोल राजाओं से कर लिया मुरल देश (केरल) दक्षिण के विजय प्राप्त करने के बाद उज्जैन विश्राम वहाँ साथ मे "वासवदत्ता तथा पद्मावती" को देख उज्जैन राजा बहुत प्रसन्न हुआ, महाराजा उदयन ने पश्चिम अभियान किया "सिंधुराज" पर विजय प्राप्त किया "पारसी राजा" का वध किया जो हूण चढ़ गए थे उनका समूल नाश कर दिया सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने का अदभुत प्रयत्न किया।
कौशांबी इलाहाबाद जिले में नगर से प्राय: ५० किमी पश्चिम मे बसी थी, जहाँ आज भी यमुना के तीर कोसम गाँव में उनके खंडहर हैं। उदयन संस्कृत साहित्य की परंपरा में महान प्रणयी हो गयेे है और उनकी उस साहित्य में स्पेनी साहित्य के प्रिय नायक दोन जुआन से भी अधिक प्रसिद्धि है। बार-बार संस्कृत के कवियों, नाट्यकारो और कथाकारों ने उन्हे अपनी रचनाओं का नायक बनाया है और उनकी लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गाँवों में लोग निंरतर उनकी कथा प्राचीन काल में कहते रहे हैं। महाकवि भास ने अपने दो दो नाटकों-स्वप्नवासवदत्ता और प्रतिज्ञायौगंधरायण-में उन्हें अपनी कथा का नायक बनाया है। वत्सराज की कथा बृहत्कथा और सोमदेव के कथासरित्सागर में भी वर्णित है। इन कृतियों से प्रकट है कि उदयन वीणावादन में अत्यंत कुशल थे और अपने उसी व्यसन के कारण उन्हें उज्जयिनी में अवंतिराज चंडप्रद्योत महासेन का कारागार भी भोगना पड़ा। भास के नाटक के अनुसार वीणा बजाकर हाथी पकड़ते समय छदमगज द्वारा अवंतिराज ने उन्हें पकड़ लिया था। बाद में उदयन प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ हथिनी पर चढ़कर वत्स भाग गयेे। उस पलायन का दृश्य द्वितीय शती ईसवी पूर्व के शुंगकालीन मिट्टी के ठीकरों पर खुदा हुआ मिला है। एस ऐसा ठीकरा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत-कला-भवन में भी सुरक्षित है। कला और साहित्य के इस परस्परावलंबन से राजा की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है। वत्सराज उदयन नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति थे और उनका उल्लेख साहित्य और कला के अतिरिक्त पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में भी हुआ है। उदयन बुद्ध के समकालीन थे और उनके तथा उनके पुत्र बोधी, दोनों ने तथागत के उपदेश सुने थे। बौद्ध ग्रंथों में वर्णित कौशांबी के बुद्ध के आवास पुनीत घोषिताराम से कौशांबों की खुदाई में उस स्थान की नामांकित पट्टिका अभी मिली है। उदयन ने मगध के राजा दर्शक की भगिनी पद्मावती और अंग के राजा दृढ़वर्मा की कन्या को भी, वासवदत्ता के अतिरिक्त, संभवत: ब्याहा था। बुद्धकालीन जिन चार राजवंशों-मगध, कोशल, वत्स, अवंति-में परस्पर दीर्घकालीन संघर्ष चला था उन्हीं में उदयन का वत्स भी था, जो कालांतर में अवंति की बढ़ती हुई सीमाओं में समा गया। इ
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