Sunday, December 23, 2018

डुमरांव स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर दूर। शहर के बीचो-बीच स्थित बिहारी जी का मंदिर स्थित है। जो राजगढ़ प्रांगण की शान हैं। जिसे बांके बिहारी का मंदिर के नाम से भी लोग जानते हैं। यह मंदिर श्रद्धालुओं के अटूट विश्वास व श्रद्धा का केन्द्र रहा है।  यह लगभग  दो सौ साल पुराना मंदिर है। इसका निर्माण डुमरांव राजघराने के महाराज जय प्रकाश सिंह ने 1825 ई. में कराया था। मंदिर में बिहारी भगवान (कृष्ण भगवान) के चार विग्रह हैं। राधिका, जानकी और रघुवीर (राम)। यह सभी प्रतिमाएं अद्भुत हैं।
बिहारी जी के संबंध में यह प्रसिद्ध है कि पहले इनकी पूजा राय रायान मकरह के यहां होती थी। बाद में बक्सर के एक भूपति बाबू अजीत सिंह की चेष्टा से महाराज जय प्रकाश सिंह के भाई शिव प्रकाश सिंह उनके विग्रह को डुमरांव लाये और पूजन होने लगा। मंदिर निर्माण का नक्शा जयपुर से मंगाया गया था। यहां पांच खंड हैं। 1 जश्न चबूतरा, 2 बज्मगाह 3 सभा मंडप 4 ठाकुरबाड़ी 5 बैकुंठ। इस मंदिर की भव्यता अपने जमाने में देश भर में थी। यहां लगे झूमर और नक्काशि को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते थे।
मंदिर के सामने बनी राजा केशव बहादुर की मूर्ति
इस मंदिर की और भी विशेषताएं हैं। मंदिर के निर्माण में अधिकांश हिस्से में लकड़ी का प्रयोग किया गया है। इसके खंभे भी लकड़ी के हैं। लोग बताते हैं जिले में क्या प्रदेश में कहीं भी इतने उंचे खंभे किसी मंदिर में नहीं हैं। एक जमाना था जब यहां चंदन की लकडिय़ां लगाई गई थी। जिसके कारण यहां हमेशा खुशबू आती रहती थी। यहां भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी इतने धूमधाम से मनाई जाती थी कि इसको लेकर कहावत मशहूर थी।
Pictures by Arvind Roy








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