हिन्दू धर्म मैं विशवास रखने वाले सभी लोगो के मन मे एक सवाल हमेशा रहता है की त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश के पिता कौन थे और उनका जन्म कैसे हुआ, उनके माता पिता कौन था ये सवाल लाखो सालो से पूछे जाते है और अलग अलग धर्म कथाओ मे अलग अलग जवाब है. आज हम आपको उन कथाओ के सार से ये बताते है की कैसे त्रिदेव का जन्म हुआ और कौन उनके माता पिता थे.
हालांकि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कथा को भगवान शिव के भक्तों ने शिव को आधार बनाकर लिखा तो भगवान विष्णु के भक्तों ने भगवान विष्णु को आधार बनाकर। ग्रंथो मैं ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब भगवान महादेव से जब पूछा गया कि आपके पिता कौन तो भगवान शिव ने जगत गुरु ब्रह्मा का नाम लिया और जब पूछा गया कि ब्रह्मा के पिता कौन तो उन्होंने भगवान विष्णु का नाम लिया और जब उनसे पूछा गया कि भगवान विष्णु के पिता कौन? तो उन्होंने कहा कि मैं स्वयं।
परन्तु शिव पुराण मैं इसके बारे मैं कुछ और ही लिखा ह शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है वही परमेश्वर है। जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुति में सत् कहा गया है। सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा।
उस परब्रह्म काल ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। और उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। और वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है।
प्राचीन ग्रन्थ उन्हीं को ईश्वर कहते हैं। सदाशिव ने अपने शरीर से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। वह शक्ति अम्बिका कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), मूल कारण भी कहते हैं। भगवान सदा शिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। एकाकिनी होने पर भी माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। शक्ति की देवी ने ही लक्ष्मी, सावित्री और पार्वती के रूप में जन्म लिया और ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन होकर भी वह अकेली रह गई थी। उस कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी है दुर्गा।
काल रूपी सदाशिव ने शक्ति के साथ 'शिवलोक' नामक क्षेत्र का निर्माण किया । उस उत्तम क्षेत्र को आज 'काशी' कहते हैं। वह मोक्ष का स्थान है। यहां शक्ति और शिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा यहां पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं।.इस स्थान काशी पुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था।
इस आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय शिव को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए, जिस पर सृष्टि निर्माण का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें। ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वररूपी शिव ने अपने वामांग पर अमृत मल दिया। फिर वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ।शिव ने उस पुरुष से संबोधित होकर कहा, 'वत्स! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम 'विष्णु' विख्यात होगा।'
इस प्रकार शिव पुराण के अनुसार विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति दुर्गा हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान ब्रह्माजी नारदजी से कहते हैं कि भगवान विष्णु को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझे (ब्रह्माजी) अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही मुझे भगवान विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्य गर्भ (ब्रह्मा) का जन्म हुआ।
ब्रह्मा आगे कहते है मैंने उस कमल के सिवाय दूसरे किसी को जनक या पिता नहीं जाना। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, मेरा क्या कार्य है, मैं किसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ हूं किसने इस समय मेरा निर्माण किया है? इस में संशय में पड़ा हूं.
इस प्रकार त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन देवताओं में गुण हैं और सदाशिव गुणातीत माने गए हैं। एक बार ब्रह्मा विष्णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में काल रूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया। तब दोनों ने पूछा- 'प्रभो, सृष्टि आदि 5 कर्तव्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए।' तब ज्योतिर्लिंग रूप काल ने कहा- 'पुत्रो, तुम दोनों ने घोर तपस्या करके मुझसे सृष्टि और स्थिति दो कृत्य प्राप्त किए हैं। मेरे विभूतिस्वरूप रुद्र और महेश्वर ने दो अन्य उत्तम कृत्य संहार और तिरोभाव (अकृत्य) मुझसे प्राप्त किए हैं, परंतु अनुग्रह (कृपा करना) नामक दूसरा कोई कृत्य पा नहीं सकता। रुद्र और महेश्वर दोनों ही अपने कृत्य को भूले नहीं हैं इसलिए मैंने उनके लिए अपनी समानता प्रदान की है।'
सदाशिव कहते हैं- 'ये (रुद्र और महेश) मेरे जैसे ही वाहन रखते हैं, मेरे जैसा वेश धरते हैं और मेरे जैसे ही इनके पास हथियार हैं। वे रूप, वेश, वाहन, आसन और कृत्य में मेरे ही समान हैं।'
सदाशिव कहते हैं कि पूर्वकाल में अपने स्वरूपभूत मंत्र का उपदेश किया है, जो ओंकार के रूप में प्रसिद्ध है, सर्व प्रथम मेरे मुख से ओंकार अर्थात 'ॐ' प्रकट हुआ। यह मंत्र मेरा स्वरूप ही है और यह मैं ही हूं। प्रति दिन ओंकार का स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है। मेरे पश्चिमी मुख से अकार का, उत्तरवर्ती मुख से उकार का, दक्षिणवर्ती मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से विन्दु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ। यह 5 अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ।
अब यहां 7 आत्मा हो गईं- ब्रह्म से सदाशिव, सदाशिव से दुर्गा। सदा शिव दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, महेश्वर। इससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और महेश के जन्मदाता कालरूपी सदाशिव और दुर्गा हैं। ये बातें अन्य पुराणों में घुमा-फिराकर लिखी गई हैं और इसी कारण भ्रम की उत्पत्ति होती है।
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हालांकि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कथा को भगवान शिव के भक्तों ने शिव को आधार बनाकर लिखा तो भगवान विष्णु के भक्तों ने भगवान विष्णु को आधार बनाकर। ग्रंथो मैं ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब भगवान महादेव से जब पूछा गया कि आपके पिता कौन तो भगवान शिव ने जगत गुरु ब्रह्मा का नाम लिया और जब पूछा गया कि ब्रह्मा के पिता कौन तो उन्होंने भगवान विष्णु का नाम लिया और जब उनसे पूछा गया कि भगवान विष्णु के पिता कौन? तो उन्होंने कहा कि मैं स्वयं।
परन्तु शिव पुराण मैं इसके बारे मैं कुछ और ही लिखा ह शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है वही परमेश्वर है। जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुति में सत् कहा गया है। सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा।
उस परब्रह्म काल ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। और उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। और वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है।
प्राचीन ग्रन्थ उन्हीं को ईश्वर कहते हैं। सदाशिव ने अपने शरीर से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। वह शक्ति अम्बिका कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), मूल कारण भी कहते हैं। भगवान सदा शिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। एकाकिनी होने पर भी माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। शक्ति की देवी ने ही लक्ष्मी, सावित्री और पार्वती के रूप में जन्म लिया और ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन होकर भी वह अकेली रह गई थी। उस कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी है दुर्गा।
काल रूपी सदाशिव ने शक्ति के साथ 'शिवलोक' नामक क्षेत्र का निर्माण किया । उस उत्तम क्षेत्र को आज 'काशी' कहते हैं। वह मोक्ष का स्थान है। यहां शक्ति और शिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा यहां पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं।.इस स्थान काशी पुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था।
इस आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय शिव को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए, जिस पर सृष्टि निर्माण का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें। ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वररूपी शिव ने अपने वामांग पर अमृत मल दिया। फिर वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ।शिव ने उस पुरुष से संबोधित होकर कहा, 'वत्स! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम 'विष्णु' विख्यात होगा।'
इस प्रकार शिव पुराण के अनुसार विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति दुर्गा हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान ब्रह्माजी नारदजी से कहते हैं कि भगवान विष्णु को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझे (ब्रह्माजी) अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही मुझे भगवान विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्य गर्भ (ब्रह्मा) का जन्म हुआ।
ब्रह्मा आगे कहते है मैंने उस कमल के सिवाय दूसरे किसी को जनक या पिता नहीं जाना। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, मेरा क्या कार्य है, मैं किसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ हूं किसने इस समय मेरा निर्माण किया है? इस में संशय में पड़ा हूं.
इस प्रकार त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन देवताओं में गुण हैं और सदाशिव गुणातीत माने गए हैं। एक बार ब्रह्मा विष्णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में काल रूपी एक स्तंभ आकर खड़ा हो गया। तब दोनों ने पूछा- 'प्रभो, सृष्टि आदि 5 कर्तव्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए।' तब ज्योतिर्लिंग रूप काल ने कहा- 'पुत्रो, तुम दोनों ने घोर तपस्या करके मुझसे सृष्टि और स्थिति दो कृत्य प्राप्त किए हैं। मेरे विभूतिस्वरूप रुद्र और महेश्वर ने दो अन्य उत्तम कृत्य संहार और तिरोभाव (अकृत्य) मुझसे प्राप्त किए हैं, परंतु अनुग्रह (कृपा करना) नामक दूसरा कोई कृत्य पा नहीं सकता। रुद्र और महेश्वर दोनों ही अपने कृत्य को भूले नहीं हैं इसलिए मैंने उनके लिए अपनी समानता प्रदान की है।'
सदाशिव कहते हैं- 'ये (रुद्र और महेश) मेरे जैसे ही वाहन रखते हैं, मेरे जैसा वेश धरते हैं और मेरे जैसे ही इनके पास हथियार हैं। वे रूप, वेश, वाहन, आसन और कृत्य में मेरे ही समान हैं।'
सदाशिव कहते हैं कि पूर्वकाल में अपने स्वरूपभूत मंत्र का उपदेश किया है, जो ओंकार के रूप में प्रसिद्ध है, सर्व प्रथम मेरे मुख से ओंकार अर्थात 'ॐ' प्रकट हुआ। यह मंत्र मेरा स्वरूप ही है और यह मैं ही हूं। प्रति दिन ओंकार का स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है। मेरे पश्चिमी मुख से अकार का, उत्तरवर्ती मुख से उकार का, दक्षिणवर्ती मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से विन्दु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ। यह 5 अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ।
अब यहां 7 आत्मा हो गईं- ब्रह्म से सदाशिव, सदाशिव से दुर्गा। सदा शिव दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, महेश्वर। इससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और महेश के जन्मदाता कालरूपी सदाशिव और दुर्गा हैं। ये बातें अन्य पुराणों में घुमा-फिराकर लिखी गई हैं और इसी कारण भ्रम की उत्पत्ति होती है।
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