Wednesday, December 5, 2018

प्रस्तुति अरविन्द रॉय

इन दिनों हिन्दू नौजवानों (विशेषकर ठीक से पढ़े लिखे )में एक नया ट्रेंड चल पड़ा है , हर उस मान्यता एवं परम्परा को झुठलाना या झूठा सिद्ध करना , जिसे हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मानते या पूजते चले आ रहे हैं ....हर मान्यता , हर परम्परा को तर्क की कसौटी पर कसने में कोई बुराई नहीं है , किन्तु यह कसौटी एकतरफा या पूर्वाग्रह ग्रसित नहीं होनी चाहिए और किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले पर्याप्त अध्ययन करना चाहिए .....हमें हर कथा हर पात्र का विश्लेषण , उस कथा के घटित होने के काल या युग को ध्यान में रखकर करना चाहिए ....सतयुग के लोग सतोगुणी थे , अतः उस युग में , रजोगुणी व्यक्ति भी घृणा या आलोचना का पात्र बन जाता था .....त्रेता युग के लोग सत एवं रज , दोनों गुणों से युक्त थे , किन्तु उस युग में तमोगुणी को घृणा या तिरस्कार से देखा जाता था , उस युग में चरित्र की पवित्रता पर विशेष जोर था , सेक्स अपराध अक्षम्य माने जाते थे , उसी का परिणाम था बालि और रावण का वध ....भले ही रावण प्रकांड पंडित रहा हो , भले ही रावण के रचे स्त्रोत किसी भी भक्त को उद्वेलित कर देते हों , भले ही रावण के मन में सीता हरण के पीछे कोइ गलत मंशा न रही हो , भले ही वह भगवान् के हाथों अपनी बुरी कौम को मिटाने के लिए युद्ध लड़ा ; पर यह सब होने के पूर्व उसने जितने सेक्स अपराध , व्यभिचार किये थे , जिस तरह से उसने निरीह मुनियों का रक्त पीने वाली , मानव मांस का भक्षण करने वाली कौम को लीड किया था , उसे राक्षस से कम भला क्या कहा जाता ....इस तरह के अपराध रज एवं तम गुणों से युक्त द्वापर में और तमोगुण से परिपूरित कलयुग में भी अक्षम्य माने जाते हैं , फिर भला त्रेतायुग में श्री राम उसके साथ और क्या सलूक करते ? दुःख होता है ऐसे बुद्धिजीवियों को पढ़कर , जो भगवान् राम को साम्राज्यवादी घोषित करने के पहले , रामायण का भलीभांति अध्ययन करना भी जरूरी नहीं समझते ....मैं जानता हूँ , मेरे इस लेख से तमाम प्रगतिवादी बुद्धिजीवी अपने विचार या स्वभाव नहीं बदलने वाले , फिर भी यह सब लिखना जरूरी लगा !

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