किशोर कुणाल की आज किसी से चर्चा करें,तो बहुत से लोग इनकी पहचान महावीर मंदिर,पटना से करेंगे।महावीर कैंसर संस्थान भी कुणाल की देन है।पर,इससे पहले वे साल 1972 में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बने थे।रहने वाले कुणाल बिहार के हैं,पर इन्हें गुजरात काडर मिला था।1977-1982 का काल-हाल और किशोर कुणाल ‘इंदिरा हटाओ-देश बचाओ’ की आंधी में कांग्रेस की सरकार केन्द्र में गिरी,मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने।बिहार विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस का सफाया हो गया।लेकिन जनता पार्टी न देश संभाल सकी और न बिहार।इंदिरा गांधी ने पटना के बेलछी में हुए नरसंहार के बाद से ही देश की राजनीति में धमाकेदार वापसी कर ली थी।आपस में ही सब लड़ मरे।कर्पूरी ठाकुर और रामसुंदर दास के शासनकाल के बाद बिहार में 17 फरवरी 1980 को प्रेसीडेंट रुल लगा।मध्यावधि चुनाव हुए।कांग्रेस की 169 सीटों के साथ वापसी हुई।तब झारखंड नहीं बंटा था और बिहार विधान सभा की 324 सीटें हुआ करती थी।सत्ता से बाहर गई जनता पार्टी (जेपी) को 13,जनता पार्टी (चरण सिंह) को 42 और जनता पार्टी (राजनारायण) को एक सीट से संतोष करना पड़ा था।डा.जगन्नाथ मिश्रा 8 जून 1980 को फिर से बिहार के मुख्य मंत्री बन गये।जनता पार्टी के शासन की समाप्ति के बाद लगे प्रेसीडेंट रुल में ही किशोर कुणाल बिहार की चर्चा के केन्द्र में आ गये।कुणाल डेपुटेशन पर गुजरात से होम काडर बिहार में आ गये थे।प्रेसीडेंट रुल में बिहार के बिगड़े ला एंड आर्डर की गहन समीक्षा हो रही थी।तब जिला रोहतास डकैतों के तांडव से थर्रा रहा था।नेशनल हाइवे और स्टेट हाइवे पर लूटपाट की घटनाएं हर महीने रिकार्ड तोड़ रही थी।महीने में तीन सौ से अधिक डकैतियां रिपोर्ट की जा रही थी।ऐसे में,गवर्नर ने रोहतास के डकैतों का होश ठंडा करने का जिम्मा किशोर कुणाल को दिया।21 अप्रैल 1980 को किशोर कुणाल ने रोहतास के पुलिस कप्तान की कमान संभाली।बगैर कोई समय गंवाये सीधा आपरेशन शुरु
किया गिरोहबंद अपराधियों की लिस्ट तैयार हुई कइयों के सिर ईनाम घोषित कर दिये गये।कुणाल की विशेष पुलिस टीम के जवान सादे लिबास में रात को मुसाफिरों की तरह पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करने लगे।कुणाल के हंगामे ने इतना कोहराम बरपाया कि रोहतास में डकैती का ग्राफ तेजी से गिर गया।हां,पुलिस की कार्रवाई के तौर-तरीके को लेकर कुणाल कुछेक तत्वों के जरुर निशाने पर होते,लेकिन वे अपने स्टाइल को लेकर बेफिक्र रहे।कुणाल की पुलिसिंग बिहार भर में चर्चा बटोरने लगी, 17 फरवरी 1982 को वे रोहतास के एसपी से हटे।कइयों की नजर में कारण पालिटिकल थे।15 अप्रैल,1983 को पटना के एसएसपी बने।पटना के हालात बिगड़ रहे थे।सूबे में नरसंहार बंद नहीं हो रहा था ।एमसीसी के माओवादियों के खिलाफ लड़ने को भूमि सेना-ब्रह्मर्षि सेना बन गया था।पटना के मसौढ़ी इलाके में लगातार खून के बदले खून बहाया जा रहा था।कांग्रेस सरकार की किरकिरी हो रही थी।मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्रा टशन में आ गये थे।तभी के वक्त में डा.मिश्रा को किशोर कुणाल की याद आई अप्रैल,1983 में सीएम हाउस से किशोर कुणाल को बुलावा आया। कहा गया,सरकार आपको पटना का एसएसपी बनाना चाहती है।लेकिन पटना को शांत करने का टास्क बखूबी निभाना होगा।कहा जाता है कि किशोर कुणाल पटना के एसएसपी बनने को तैयार तो जरुर हो गये,लेकिन चीफ मिनिस्टर डा.जगन्नाथ मिश्रा के समक्ष शर्त रख दी।कुणाल की शर्त की चर्चा संतोष सिंह की किताब Ruled or Misruled: Story and Destiny of Bihar में है।वे तब की बात लिखते हैं‘ the IPS officer had set a condition before the CM–that no call for favour should come to him from CM House or secretariat CM Mishra had told him: Ok, you will not get call for six months…खुली कार्रवाई की शर्तों के साथ किशोर कुणाल ने 15 अप्रैल 1983 को पटना के एसएसपी का पदभार संभाला।साथ देने को कड़क आईएएस राजकुमार सिंह (अभी आरा के भाजपा सांसद) डीएम के रुप में मिल गये।फिर क्या था।कुणाल का पटना की सड़कों पर रोडमार्च शुरु हो गया।गुंडा-मवालियों को बीच सड़क पर पुलिस दौड़ा-दौड़ा कर मारती।गलत तरीके से लेफ्ट-राइट खड़ी मंत्री-संत्री की गाडि़यां भी टोचेन होने लगी।तब के दौर में लफ्फुओं के बीच जुल्फी कट बाल रखने का फैशन आ गया था।कुणाल ने तो ऐसे लफ्फुओं के होश ही ठंडा कर दिए।चोर-उचक्कों से लेकर अंडरवर्ल्ड के स्वयंभू सरगनाओं में कोहराम मच गया।गरम पटना गुंडा-मवालियों के बिल में जा छुपने/जेल पहुंच जाने से ठंडा होने लगा।तभी सामने आ गया बॉबी कांड…पटना का जिम्मा संभाले कुणाल को महीने भर भी नहीं हुआ था।तभी 7 मई 1983 की रात बिहार के राजनैतिक गलियारे की ‘बेबीडॉल’ कही जाने वाली बॉबी बिहार विधान परिषद की चेयरपर्सन राजेश्वरी सरोज दास के स्ट्रैंड रोड के बंगले में मार दी गई।भोर में गलत-सलत मेडिकल रिपोर्ट तैयार करा बॉबी की लाश 8 मई को दफना दी गई।दरअसल,बॉबी की मौत की भनक कोई भी किशोर कुणाल को लगने नहीं देना चाहता था।संकट यह था कि किशोर कुणाल मैनेज नहीं होंगे।फिर मैनेज नहीं हुए,तो बॉबी के सभी पालिटिकल परवानों पर गाज गिर जाएगी ।लेकिन 11 मई को पटना के अखबार ‘आज’ और ‘प्रदीप’ ने बगैर पुलिस रिपोर्ट के भी बॉबी की मौत का भांडा फोड़ दिया ।किशोर कुणाल ने खबर को संज्ञान ले थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी।कब्र से लाश निकाली गई।आगे जिस रास्ते कुणाल जांच को बढ़े बिहार की सत्ता में तूफान आ गया।सिर्फ राधानंदन झा और रघुवर झा ही नहीं भूमिगत हुए,बल्कि लिस्ट बड़ी लंबी हो गई।कुणाल कोई समझौता को तैयार नहीं थे।परिणाम,कांग्रेस के भीतर ऐसा घमासान पैदा हुआ कि लगा डा.जगन्नाथ मिश्रा की सरकार ही गिर जाएगी ।विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर भी पाप में शामिल नेताओं के साथ हो गये।सरकार बचाने का रास्ता बॉबी कांड की जांच सीबीआई को सौंप निकाला गया,जिसने पूरे मामले और साक्ष्यों को पंक्चर कर मौत के सभी कसूरवारों को बचा लिया।कहा जाता है कि इस दौरान ही किशोर कुणाल पटना जंक्शन वाले महावीर मंदिर की सेवा में लग गये।वे सीबीआई की जांच से बहुत निराश हुए थे।उधर,केस के मेन एक्यूज्ड बनते दिख रहे राधानंदन झा के बेटे रघुवर झा ने कहना शुरु कर दिया था,जिसे ऋतु चतुर्वेदी की पुस्तक में ऐसे उद्धृत किया गया है–I do not have the faintest idea of who Bobby was.This is a murky conspiracy to defame my father whose name is being mentioned as the future Chief Minister.पटना की जनता किशोर कुणाल के साथ थी।नतीजा,सरकार के लिए मुसीबत बने किशोर कुणाल को हटाने का निर्णय कर पाना जगन्नाथ मिश्रा की सरकार के लिए बड़ा असंभव था।बॉबी कांड की जांच सीबीआई को सुपुर्द करा कर फौरी तौर पर जगन्नाथ मिश्रा ने अपने लिए मुख्य मंत्री की कुर्सी बचा ली थी। पर,यह आंच कांग्रेस के भीतर खत्म नहीं हुई थी।विक्षुब्धों का बखेड़ा बढ़ता ही जा रहा था।लड़ाई खत्म हुई 1983 में ही अगस्त महीने में।मतलब बॉबी कांड के तीन महीने के भीतर, 14 अगस्त 1983 को डा. जगन्नाथ मिश्रा से इस्तीफा लेकर कांग्रेस आलाकमान ने चंद्रशेखर सिंह को बिहार का मुख्य मंत्री बना
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