नवरात्रि में सिद्धपीठों में तंत्र अनुष्ठान का विधान है। पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में शक्ति पीठ मां तारा का मंदिर है। यह तंत्र साधना का सबसे बड़ा केंद्र है। ठीक वैसे ही काशी के देवनाथपुरा गली में मां तारा का मंदिर है। यहां बंगाल की रानी भवानी की बेटी तारा सुंदरी ने समाधि ली थी। क्यों ली थी समाधि
बंगाल की रानी भवानी की बेटी तारा सुंदरी की समाधि है। तत्कालानी मुगलवंश के शासक शिराजुदौला ने तारा सुंदरी से विवाह का एलान किया था। मंदिर और ट्रस्ट प्रबंधक श्यामा प्रसाद ने बताया कि रानी भवानी शासक से बचने के लिए नाव से गंगा के रास्ते काशी पहुंची थीं। शासक ने जब सेना और बारात के साथ काशी का रुख किया तो तारा सुंदरी ने इसी स्थान पर जीवित समाधि ले ली।
काशी में तांत्रिक पीठ मां तारा का मंदिर सन 1752 से 1758 के बीच में नाटोर की महारानी रानी भवानी ने पांडेयघाट देवनाथ पूरा मुहल्ले में बनवाया। कम उम्र हो गई थी पति की मौत
प्रबंधक श्यामा प्रसाद ने बताया कि तारा सुंदरी देवी बहुत सुंदर थी। उनका विवाह बंगाल के खजुरा के रहने वाले रघुनाथ लाहिड़ी से हुआ था। रघुनाथ लाहिड़ी की कम उम्र में ही मौत हो गई। इसके बाद बंगाल के नवाब की नजर तारा सुंदरी पर पड़ी। उसने रानी भवानी के पास संदेश भेजकर बेटी से विवाह का एलान किया था। 1752 रानी भवानी गंगा के रास्ते बेटी को लेकर काशी आ गईं। नवाब को पता चला तो वह भी सेना के साथ यहां आ गया। उच्च कोटि के साधक ही कर सकते हैं साधना
पति राजा रामकांत की मौत के बाद रानी भवानी ने काशी में 365 भू-खंडों का दान किया था।रत्न चतुर्दशी के दिन 1752 में मंदिर के स्थापना का काम शुरू हुआ। 1758 में यह बनकर तैयार हुआ। महायोगिनी कि साधना उच्च कोटि का साधक ही कर सकता है। तंत्र क्रिया सामान्य पुजारी नहीं कर पाते, मंदिर की पूजा और रिवाज बंगाल के विरभूमि में स्थापित मां तारा पीठ के अनुसार ही संपन्न होता है।
बंगाल की रानी भवानी की बेटी तारा सुंदरी की समाधि है। तत्कालानी मुगलवंश के शासक शिराजुदौला ने तारा सुंदरी से विवाह का एलान किया था। मंदिर और ट्रस्ट प्रबंधक श्यामा प्रसाद ने बताया कि रानी भवानी शासक से बचने के लिए नाव से गंगा के रास्ते काशी पहुंची थीं। शासक ने जब सेना और बारात के साथ काशी का रुख किया तो तारा सुंदरी ने इसी स्थान पर जीवित समाधि ले ली।
काशी में तांत्रिक पीठ मां तारा का मंदिर सन 1752 से 1758 के बीच में नाटोर की महारानी रानी भवानी ने पांडेयघाट देवनाथ पूरा मुहल्ले में बनवाया। कम उम्र हो गई थी पति की मौत
प्रबंधक श्यामा प्रसाद ने बताया कि तारा सुंदरी देवी बहुत सुंदर थी। उनका विवाह बंगाल के खजुरा के रहने वाले रघुनाथ लाहिड़ी से हुआ था। रघुनाथ लाहिड़ी की कम उम्र में ही मौत हो गई। इसके बाद बंगाल के नवाब की नजर तारा सुंदरी पर पड़ी। उसने रानी भवानी के पास संदेश भेजकर बेटी से विवाह का एलान किया था। 1752 रानी भवानी गंगा के रास्ते बेटी को लेकर काशी आ गईं। नवाब को पता चला तो वह भी सेना के साथ यहां आ गया। उच्च कोटि के साधक ही कर सकते हैं साधना
पति राजा रामकांत की मौत के बाद रानी भवानी ने काशी में 365 भू-खंडों का दान किया था।रत्न चतुर्दशी के दिन 1752 में मंदिर के स्थापना का काम शुरू हुआ। 1758 में यह बनकर तैयार हुआ। महायोगिनी कि साधना उच्च कोटि का साधक ही कर सकता है। तंत्र क्रिया सामान्य पुजारी नहीं कर पाते, मंदिर की पूजा और रिवाज बंगाल के विरभूमि में स्थापित मां तारा पीठ के अनुसार ही संपन्न होता है।
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