Friday, November 2, 2018

मिथिलाक शतपथ ब्राह्मणक परम्परा आ मिथिलाक समानान्तर परम्परा:
वैदिक संस्कृतक प्राचीनतम ग्रन्थ ऋगवेदसँ पहिनेसँ भाषा अस्तित्वमे रहल हएत। कतेक मौखिक साहित्य जेना गाथानाराशंसीदैवत कथा आ आख्यान सभ ओहिमे रचल गेल हएत। एहने गाथा सभक गायकक लेल गाथिन”, “गातुविद्”  “गाथपति” ऋगवेदमे प्रयुक्त भेल।
वैदिक कालेसँ गाथा आ नाराशंसी समानान्तर रूपमे रहल।
प्राकृतसँ वैदिक संस्कृत बहार भेल आकि वैदिक संस्कृतसँ प्राकृत?वेदमे नाराशंसी नाम्ना जन आख्यान यएह सिद्ध करैत अछि जे दुनू समानान्तर रूपेँ बहुत दिन धरि चलल। ई समानान्तर परम्परा दुनूकेँ प्रभावित केलक। आब ऋगवेद देखू- ओतए दुर्लभ लेल- दूलभ, (ऋगवेद ४.९.८) प्रयोग की सिद्ध करैत अछिअथर्ववेदमे पश्चात् लेल पश्चा (अथर्ववेद १०.४.१०) की सिद्ध करैत अछिगोपथ ब्राह्मणमे प्रतिसन्धाय लेल प्रतिसंहाय की सिद्द करैत अछि? (गोपथ ब्राह्मण २.४)।
जे आर्य छथि से भारतक पच्छिम भागसँ मिथिलामे एलाहआ हुनका सभक एबासँ पूर्व वेदक किछु अंश विद्यमान छलतेँ ने बहुत रास शब्द जे मैथिलीमे अछिबहुत रास उच्चारण जे मैथिलीमे अछि ओ वैदिक संस्कृतमे अछिमुदा लौकिक संस्कृतमे नै अछि। अविद्याकर्मसिद्धान्त,जन्म आ पुनर्जन्मक आवाजाही आ मोक्ष ई सभ अनार्यसँ आर्यकेँ भेटलै। तेँ ने उपनिषदमे मोक्ष प्राप्तिक मार्ग छैस्वर्ग प्राप्तिक नै। मोक्ष भेटत कोनायज्ञ केलासँनैई भेटत ज्ञानसँ आ मनन-चिन्तन आ समाधिसँ। राजा जनकक संरक्षणमे याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक उपनिषदक तिरहुतक अनार्य क्षेत्रमे रचना केलन्हि।
वाचस्पति मिश्र सांख्यकारिकाक सन्तावनम सूत्रक व्याख्या करैत कहै छथि जे की ई कहि सकै छी जे अचेतन दूध केर पोषणसँ परु पोसाइए आ अचेतन प्रकृतिक संचालनसँ जीवकेँ मुक्तिक ज्ञान भेटैएईश्वर तँ स्वयंमे पूर्ण छथि तँ ओ कोन उद्देश्ये विश्वक सृष्टि करताह आ जीव लेल जँ ओ सृष्टि करताह तँ सृष्टिक बादे तँ जीव बन्हाइए आ सृष्टिसँ पूर्व तँ बन्हेबाक प्रश्ने नै अछितखन जीवक प्रति कथीक दयासे प्रकृति द्वारा सृष्टि होइए आ जीव अपन प्रयाससँ अपवर्गक प्राप्ति करै छथि। आ विवेकसँ होइए प्रलय। से ईश्वरवाद नै निरीश्वरवाद अछि वाचस्पतिक व्याख्या। प्रकृति संचालनमे जँ ईश्वर भाग लै छथि तँ ओ चेतन प्रक्रिया हएत जे कोनो उद्देश्येसँ हएत आ तकर कोनो खगता ईश्वरकेँ छन्हिये नै। न्यायसूत्रक रचना केनिहार मिथिलाक गौतम सोलह पदार्थक ज्ञानसँ जीवक निःश्रेयस प्राप्त करबाक चर्च करै छथिमुदा ऐ सभमे ईश्वरक कतौ चर्च नै अछि जे हुनको द्वारा मुक्ति सम्भव अछि। वैशेषिक सूत्र कहैए जे वेद विद्वान लोकनि द्वारा रचल गेल अछि नै कि ईश्वर द्वारा। कुमारिल भट्ट कहै छथि जे सृष्टिक पूर्व ईश्वरक विषयमे कोनो विश्वसनीय चर्चा असम्भव अछि।
 

शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धाराआ तकर समानान्तर मुख्यधारा:
ब्राह्मण आ गएर ब्राह्मणवाद मिथिलामे शुरुएसँ रहल अछि। ज्योतिरीश्वर लिखै छथि- बौध पक्ष अइसन- आपात भीषण। अगतिशील शतपथ ब्राह्मणक परम्परा नामक साम्यताक कारण संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिकेँ पूज्य बनबैपर बिर्त अछि। ऋक् आ नाराशंसीमहाकवि विद्यापति आ पागबला विद्यापतिमोक्ष आ स्वर्ग-नर्क ई दुनू परस्पर विरोधी विचारधारा मिथिलामे रहल।
 
शतपथ ब्राह्मणक विदेघमाथव आ पुराणक निमि दुनू गोटेक पुरोहित गौतम छथि से दुनू एके छथि आ एतएसँ विदेह राज्यक प्रारम्भ। माथवक पुरहित गौतम मित्रविन्द यज्ञक/ बलिक प्रारम्भ कएलन्हि आ पुनः एकर पुनःस्थापना भेल महाजनक-२ क समयमे याज्ञवल्क्य द्वारा। मैत्रेयीयाज्ञवल्क्यसीताजनककेँ रटैत-रटैत ई परम्परा विद्यापतिक यज्ञोपवीत संस्कार आ पाग प्रतिष्ठापन जइ तीव्र गतिये केलक से ओकर शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धाराक अनुकूल छल।
 

१७६० ई.क माधव सिंहक शाखा पञ्जीक आदेशक बाद मिथिलामे ब्राह्मण आ कायस्थ मध्य नव-कुलीनवादक प्रसार भेल आ भलमानुस (बत्तेसगमिया) उपजातिक कर्ण कायस्थमे आ स्रोत्रिय उपजातिक मैथिल ब्राह्मणमे उत्पत्ति भेलओइसँ शारीरिक आ मानसिक बीमारी ऐ दुनू उपजाति मध्य भयंकर रूपसँ बढ़लसंगे बहुविवाहबाल-विवाहक आ विधवाक संख्यामे अत्यधिक वृद्धि भेल। आ ईहो जइ शान्तिपूर्ण रूपसँ आ तीव्रगतिसँ भेल से शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धाराक अनुकूल छल। 

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