Friday, November 2, 2018

द्रोणवंशोद्भव शब्दक व्यवहार कएने छथि। द्रोणवार लोकनि अपनाकेँ द्रोणक वंशज कहैत छथि आ पश्चिमक वासी सेहो। मुसलमानी उपद्रव बढ़लाक बाद इ लोकनि अपन मूलस्थानसँ भगलाह आ ओहि क्रममे एक शाखा तिरहूतमे आबिकेँ बसलाह। विद्यापति अपन लिखनावलीमे द्रोणवार पुरादित्यक उल्लेख केने छथि जिनक राज नेपालक तराइमे छल आ जाहिठाम विद्यापति लखिमाकेँ लऽ कए प्रश्रय लेने छलाह। परमेश्वर झाक अनुसार शिवसिंह रनिवासक सब स्त्रीवर्गकेँ विद्यापति ठाकुरक संग कए नेपालक तराइमे रजाबनौली गाम सप्तरी परगन्नाक अधिपति निजमित्र पुरादित्य नामक द्रोणवंशीय दोनवार राजाक शरणमे पठौलन्हि। पुरादित्य द्रोणवार हुनका सबहिक सम्मानपूर्वक रक्षा केलन्हि। एहिसँ स्पष्ट अछि जे ओइनवार वंशक शिवसिंह आ द्रोणवार वंशक पुरादित्यक मध्य घनिष्ट मित्रता छल। अहिठाम विद्यापति लिखनावली लिखलन्हि आ भागवतक प्रतिलिपि सेहो तैयार केलन्हि।
       द्रोणवारक बस्ती देकुलीक सम्बन्धमे परमेश्वर झा लिखैत छथि जे तेसर देकुली मुजफ्फरपुर जिलामे शिवहर राजधानीसँ एक कोस पूर्व सीतामढ़ी सड़कसँ दक्षिण भागमे अछि, ताहिमे एक बहुत खाधिमे एक शिवलिंग भुवनेश्वर नामक छथि आ एहि गामक विषयमे बहुत रास पुरान कथोपकथन अछि जाहिमे कौरव पाण्डवक उल्लेख सेहो अबैछ। संभव जे इ देकुली द्रोणवारक मूल स्थान रहल हो आ एतहिसँ ओ लोकनि चारूकात पसरल होथि। द्रोणवारक संघर्ष बौद्ध लोकनिसँ तिरहूतक सीमामे भेल छलन्हि से हमरा लोकनिकेँ विद्यापतिसँ ज्ञात होइछ। एहिसँ इहो सिद्ध होइछ जे द्रोणवार लोकनि सेहो मिथिलाक उत्तरांचलमे प्रबल शक्तिक रूपमे विराजमान छलाह आ मैथिल ब्राह्मणहि जकाँ बौद्ध विरोधी सेहो छलाह। आन द्रोणवार वंशक एहेन प्रमाण आ कहाँ भेटइत अछि। द्रोणवार लोकनि मूलरूपेण तिरहूतक अंशमे प्राचीन कालमे रहल हेताह आ नेपालक तराइ धरि अपन राजक विस्तार केने होथि से संभव।
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