भगवान परशुराम पर भ्रामक और गलत जानकारियां फैलाई जा रही है सही बातों को रखना आवश्यक है
प्रस्तुति अरविन्द रॉय
ऋग्वेद एक सौ दसवें सूक्त के द्रष्टा ऋषि राम- जामदग्न्य (परशुराम) हैं (1).वैदिक और पौराणिक इतिहास केसबसे कठिन और व्यापक चरित्र हैं।उनका वर्णन सतयुग के समापन से कलियुग केप्रारंभ तक मिलता हैं। इतना लंबा चरित्र,इतना लंबा जीवन किसी और ऋषि,देवता या अवतार का नहीं मिलता। वे चिरंजीवियों में भी चिंरजीवी है।उनकी तेजस्विता और ओजस्विता के सामने कोई नहीं टिका। न शास्त्रास्त्र मे और न शस्त्र-अस्त्र में। उनके आगे चारो वेद चलते थे, और पीछे तीरों से भरा तूरीण रहता था। वे.शाप देने और दंड देने दोनों में समर्थ थे। वे शक्ति और ज्ञान के अद्भुत पुंंज थे। संसार में
ऐसा कोई वंश नहीं, कोई धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा नहीं जिसका सूत्र परशुराम जी तक न जाता हो समस्त परंपराएं और साम्प्रदाय मानों उन्हीं से प्रारंभ होते हैं।
लेकिन परशुराम जी जितने व्यापक है, इतिहास और पुराणो की पुस्तकों में उतने ही दुर्लभ।उनका विवरण कहीं एक साथ नहीं मिलता। वे सब जगह हैं, और कहीं भी नहीं। परशुराम
जी को समझने के लिए अनेक प्रसंगो से
कड़िया जोड़नी पड़ती है। एशिया के सौ से
अधिक स्थानों पर परशुराम जी के जन्मस्थान
होने की मान्यता है। मध्य एशिया में फिलस्तीन
की राजधानी रामल्ला या अफगानिस्तान
का जामदार उन्हीं मे से हैं। कभी संपूर्ण
एशिया कुल चार साम्रायों में विभाजित था।
जिसके बारे में कहा जाता है कि इन
साम्रायों का सीमांकन परशुरामजी के कहने से
महर्षि कश्यप ने किया था।
इसकी पुष्टि भाषा विज्ञान से
की जा सकती है। संसार का सुप्रसिध्द पारस
साम्राय जिसका अस्तित्व ईसा से लगभग चार
सौ वर्ष पूर्व यूनानी विजेता सिंकदर के समय
तक मौजूद था। पारस साम्राय का शब्द
च्पारस और परशुराम जी के नाम में जुड़ा शब्द
च्परशु एक ही धातु के बने शब्द है।
(1) कृष्ण नारायण प्रसाद मघद श्री विष्णु और उनके अवतार श्री विष्णु और उनके अवतार page 279)
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