Monday, August 24, 2020

भारत में मंदिर और शिक्षा, चिकित्सा

 🎗️🌹.भारत में मंदिर और शिक्षा, चिकित्सा





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देशभर में बहुत से मंदिर हैं और सभी मंदिरों की अपनी अलग खासियत है।भारतीय हिन्दू मन्दिर में उच्च शिक्षा के प्रमाण लगातार प्राप्त होते है 

प्रस्तुति अरविन्द रॉय

पुरातत्वविद् आर. नागास्वामी ने उससे पहले की उन्नत उच्च शिक्षा के प्रमाण प्रदान किए हैं। उन्होंने कांचीपुरम जिले के उत्तिरामपुर में सुंदरवारा मंदिर की दीवारों पर 10वीं शताब्दी के शिलालेखों को खोजा है जिनपर स्थानीय विधानसभा और स्कूल और कॉलेज के प्रशासन का वर्णन है। यह मंदिर पल्लव शासन में 750 ई. के आसपास बनाया गया था, बाद में 1013 ई. में राजेंद्र चोल द्वारा और 1520 ई. में विजयनगर सम्राट कृष्णदेवराय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतडिय़ों तक का आपरेशनबड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी

उन्हें ज्ञान था lक्या मंदिर अभी भी सार्वभौमिक शिक्षा में भूमिका निभा सकते हैं? ऐसा प्रतीत नहीं होता है, जब तक कि वे शासन द्वारा शासित और प्रशासित न हों। विचारशील पश्चिमी लोग सोचते हैं कि यह शर्मनाक है कि भारतीय मंदिर राज्य द्वारा चलाए जा रहे हैं।

दो मंदिर जो प्राचीन परंपरा को निभा रहे हैं 

🌹महावीर मंदिर पटना

आचार्य किशोर कुणाल एक नवंबर 1987 से महावीर मंदिर का ट्रस्ट बनाकर समाजसेवा की शुरुआत की।

स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार उपलब्धियां दर्ज कर रहे हैं। मंदिर की आय से वे कई अस्पतालों का निर्माण कर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। अभी उनके नेतृत्व में महावीर कैंसर संस्थान समेत 23 अस्पताल चल रहे हैं।

महावीरवात्सल्य अस्पताल

👉ट्रस्ट की आय से एक जनवरी 1989 को पहला अस्पताल राजधानी के किदवईपुरी में खोला। शीघ्र ही चिरैयाटांड़ में इसे वृहद रूप दिया गया। आज महावीर आरोग्य अस्पताल आम बीमारियों के इलाज के लिए काफी मशहूर है। यह अस्पताल नेत्र रोग के इलाज के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है।

-👉यह देश का पहला मन्दिर है जिसने कोरोना वायरस से बचाव के लिए 1करोड़ रुपये का दान किया. इसने बिहार के मुख्यमन्त्री राहत कोष में इस राशि का 26 मार्च, 2020 को अंतरण किया

👉इसके साथ ही हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, जनकपुर, मोतिहारी आदि शहरों में मंदिर ट्रस्ट की ओर से कई अस्पताल खोले गए हैं। हर अस्पताल में कम दाम पर बिकने वाली दवा की दुकानें खोली गई हैं। 

🌹बुटाटी धाम , राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर मार्ग पर कुचेरा क़स्बे के पास स्थित है। इसे यहाँ 'चतुरदास जी महाराज के मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर वस्तुतः चतुरदास जी की समाधि है।मान्यता है कि लगभग पांच सौ साल पहले संत चतुरदास जी का यहाँ पर निवास था। चारण कुल में जन्में वे एक महान सिद्ध योगी थे और अपनी सिद्धियों से लकवा के रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे। आज भी लोग लकवा से मुक्त होने के लिए इनकी समाधी पर सात फेरी लगाते हैं। यहाँ पर देश भर से प्रतिवर्ष लाखों लकवा मरीज एवं अन्य श्रद्धालु विशेष रूप से एकादशी एवं द्वादशी के दिन आते है।

👉 खास बात यह है कि गांव के लोग विकास के लिए सरकार, संस्था या पंचायत के भरोसे नहीं हैं। पिछले 30 साल से विकास की जिम्मेदारी बुटाटी धाम स्थित चतुरदास महाराज मंदिर विकास समिति ने उठा रखी है। समिति अब तक शिक्षा, चिकित्सा, रोशनी, सड़कों गो-सेवा के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है।

गांव की स्कूल की दुर्दशा हो रखी थी। मंदिर समिति ने राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय को गोद लिया। करीब सवा करोड़ रुपए की लागत से दो विशाल हॉल, मैन गेट, चारदीवारी, प्याऊ मरम्मत करवा स्कूल का स्वरूप ही बदल दिया। स्कूल में 30 लाख रुपए की लागत से जोधपुरी छीतर पत्थर से स्वागत द्वार बनवाया। स्कूल में लोहे की 200 टेबल कुर्सियां, पंखे लाइट फिटिंग भी करवाई गई गांव ही नहीं आसपास के लोग विकास की दरखास्त लेकर यहां आते हैं। ग्रामीण जानते हैं कि सरकार और पंचायत तो अपने हिसाब से विकास कराएगी, वैसे ही होगा, लेकिन मंदिर प्रबंधन हाथों-हाथ करवा देगा। उनकी उम्मीद लगभग पूरी होती है। पिछले 25 साल से विकास के किसी काम के लिए मंदिर ने मना नहीं किया।गांव क्षेत्र के लिए विकास कार्य करवा मंदिर समिति अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। विशेषकर समिति यहां आने वाले लकवा रोगियों की भोजन, पानी ठहरने की सुविधाओं और क्षेत्र की गोशालाओं में गायों के लिए खाद्य सामग्री पहुंचा कर जीव सेवा के प्रति समर्पित है। मंदिर का पैसे से गांवों का विकास हो रहा है इससे अच्छा क्या हो सकता है। 

🌹मंदिर का पैसा सही लगने से होती है खुशी🌹

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