Sunday, May 12, 2019

आरा-निमेज के ओझा लोग बहुत दिनों से अपने को कान्यकुब्ज कहते-कहते, अब हाल में सर्यूपारी सभा करा कर सर्यूपारी कहने लगे हैं! फिर भी अभी तक अधिकांश कान्यकुब्ज ही बनते हैं! इतना ही नहीं। उनमें एक तीसरा दल यह कहता है कि हम लोग मैथिल हैं! मिथिला से दो मैथिल चक्रपाणि झा और शूलपाणि झा निमेज में आए थे, जिनके नाम अभी तक मिथिला के पुराने पंजीकारों की पंजी में पाए जाते हैं। बस, उन्हीं में से एक के वंशज निमेज के ओझा कहाते हैं और दूसरे के वंशज उन्हीं लोगों के महाब्राह्मण। उनके पुरोहित पराशर गोत्र ओझा हैं जो सुरगुनियाँ कहाते हैं। यह सुरगुनियाँ मैथिल सुरगने से बना मालूम होता है। सुरगुने भी पराशर गोत्र ही हैं। यह लीला यहीं खत्म नहीं होती। गाजीपुर के नारायणपुर आदि ग्रामवासी किनवार नामधारी भूमिहार ब्राह्मणों के पुरोहित अपने को नगवा कहते हैं। उनकी वंशावली मुझे स्वयं देखने का अवसर प्राप्त हुआ है। उससे प्रकट है कि किनवार, नोनहुलिया, कुढ़नियाँ (आजमगढ़ के सर्यूपार आदि के भूमिहार ब्राह्मण) नगवा, वीरपुर के वहियार उपाध्याय और निमेज के ओझा ये सब एक ही के वंश में हुए और मूल में एक ही हैं। इन सबों का गोत्र कश्यप है इसमें तो संदेह नहीं। यह दुर्दशा तो सबसे बड़े और धनी बननेवाले निमेज के ओझा लोगों की है।

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