Thursday, May 9, 2019

   👑👑कन्नौज और काशी👑👑
कन्नौज का पतन और भूमिहारों ब्राह्मणों का इतिहास
पोस्ट को छोटा लिखा है विस्तार से बाद में
प्रस्तुति अरविन्द रॉय
काशी क्षेत्र के ब्राह्मणों का इतिहास के कन्नौज शासकों के इर्द- गिर्द ही घूमता रहा चीनी यात्री युवानच्वांग के विवरण के अनुसार कन्नौज  प्रत्येक देवालय में एक सहस्र व्यक्ति पूजा के लिए नियुक्त थे
अब ये तो निश्चित है ये लोग ब्राह्मण रहे होंगे अग्रहार
के माध्यम से मंदिर का खर्चा चलता होगा.जयचन्द  के पतन के बाद मुस्लिम अत्याचार के खिलाफ ब्राह्मणों ने शस्त्र उठाना प्रारंभ कर दिया
पंडित हजारीप्रसाद द्विवेदी और श्री कामेश्वर ओझा का मानना ​​है; भूमिहार, भूमी-अग्रहार भोजी ब्राह्मण का संक्षिप्त रूप है। ब्राह्मण, जो अग्रहार संग्रह के लिए जिम्मेदार थे। कन्नौज के राजा हर्ष ने उन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया। चीनी.युवानच्वांग ने कन्नौज के सौ बौद्ध विहारों और दो सौ देव-मन्दिरों का उल्लेख किया है। वह लिखता है कि 'नगर लगभग पाँच मील लम्बा और डेढ़ मील चौड़ा है और चतुर्दिक सुरक्षित है। नगर के सौंन्दर्य और उसकी सम्पन्नता का अनुमान उसके विशाल प्रासादों, रमणीय उद्यानों, स्वच्छ जल से पूर्ण तड़ागों और सुदूर देशों से प्राप्त वस्तुओं से सजे हुए संग्रहालयों से किया जा सकता है'। उसके निवासियों की भद्र वेशभूषा, उनके सुन्दर रेशमी वस्त्र, उनका विद्या प्रेम तथा शास्त्रानुराग और कुलीन तथा धनवान कुटुम्बों की अपार संख्या, ये सभी बातें कन्नौज को तत्कालीन नगरों की रानी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त थीं। युवानच्वांग ने नगर के देवालयों में महेश्वर शिव और सूर्य के मन्दिरों का भी ज़िक्र किया है। ये दोनों क़ीमती नीले पत्थर के बने थे और उनमें अनेक सुन्दर मूर्तियाँ उत्खनित थीं। युवानच्वांग के अनुसार कन्नौज के देवालय, बौद्ध विहारों के समान ही भव्य और विशाल थे। प्रत्येक देवालय में एक सहस्र व्यक्ति पूजा के लिए नियुक्त थे और मन्दिर दिन-रात नगाड़ों तथा संगीत के घोष से गूँजते रहते थे।
1085 ई. में कन्नौज पर चन्द्रदेव गहड़वाल ने सुव्यवस्थित शासन स्थापित किया। उसके समय के अभिलेखों में उसे कुशिक (कन्नौज), काशी, उत्तर कोसल और इंद्रस्थान या इंद्रप्रस्थ का शासक कहा गया है
पृथ्वीराज को जीतने के पश्चात् 1194 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने जयचन्द्र के राज्य पर भी आक्रमण किया । कुछ भारतीय ग्रन्थों जैसे विद्यापति कृत पुरुषपरीक्षा, नयचन्द्र कृत रम्भामंजरी नाटक आदि में कहा गया है कि जयचन्द्र ने मोहम्मद गोरी को पहले कई चार हराया था । संभव है कुछ प्रारम्भिक भावों में उसे एकाध बार सफलता मिली हो ।

अन्तिम मुठभेड़ चन्दावर (एटा जिला) के मैदान में हुई जहाँ कुतुबउद्दीन के नेतृत्व में पचास हजार सैनिकों का जयचन्द्र की विशाल सेना से सामना हुआ । दुर्भाग्यवश हाथी पर सवार जयचन्द्र की आंख में एक तार लग जाने से वह गिर पड़ा तथा उसकी मृत्यु हो गयी । सेना में भगदड़ मच गयी तथा मुसलमानों की विजय हुई ।

गोरी ने असनी (फतेहपुर) स्थित जयचन्द्र के राजकोष पर अधिकार कर लिया । आक्रमणकारियों ने स्त्रियों तथा बच्चों को छोडकर सबकी हत्या कर दी । मुहम्मद गोरी ने कन्नौज तथा बनारस को खूब लूटा वनारस के लगभग एक हजार मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया गया तथा उनके स्थान पर मस्जिदें बनवायी गयी ।

आक्रमणकारियों के हाथ लूट की भारी सम्पत्ति एवं बहुमूल्य वस्तुयें लगीं । इस प्रकार गहड़वाल साम्राज्य का पतन हुआ । ऐसा लगता है कि चन्दावर के युद्ध के बाद भी कुछ समय तक कन्नौज पर गहड़वालों की सत्ता बनी रही तथा मुसलमानों ने वहाँ अधिकार नहीं किया । मात्र फरिश्ता ही ऐसा लेखक है जो मुसलमान सेनाओं के कन्नौज पर अधिकार करने की बात करता है ।

किन्तु वह बाद का लेखक होने के कारण विश्वसनीय नहीं लगता । कुछ ऐसे सकेत मिलते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि जयचन्द्र के पुत्र हरिश्चन्द्र ने कुछ समय तक अपने पिता के बाद कन्नौज पर शासन किया ।

मछलीशहर (जौनपुर) से प्राप्त उसके एक लेख (1198 ई०) में उसे “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वराश्वपति गजपति-राजत्रयाधिपति विविध विद्याविचारवाचस्पति श्री हरिश्चन्द्र देव” कहा गया है । इससे स्पष्ट है कि वह एक स्वतंत्र शासक की हैसियत से शासन कर रहा था । लेख से पता चलता है कि उसने पमहई नामक गाँव दान में दिया था । हरिश्चन्द्र के पश्चात कन्नौज के गहड़वाल साम्राज्य का अन्त हो गया तथा वहाँ चन्देलों का अधिकार स्थापित हुआ

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