Friday, May 10, 2019

किन्तु श्री रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी खोज के आधार पर इन्हें ब्राह्मण (देवकली दुबे) माना है। उनके अनुसार घाघ कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे। कहा जाता है कि घाघ हुमायूँ के दरबार में भी गये थे। हुमायूँ के बाद उनका सम्बन्ध अकबर से भी रहा। अकबर गुणज्ञ था और विभिन्न क्षेत्रों के लब्धप्रतिष्ठि विद्वानों का सम्मान करता था। घाघ की प्रतिभा से अकबर भी प्रभावित हुआ था और उपहार स्वरूप उसने उन्हें प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की भूमि दी थी, जिस पर उन्होंने गाँव बसाया था जिसका नाम रखा ‘अकबराबाद सराय घाघ’। सरकारी कागजों में आज भी उस गाँव का नाम ‘सराय घाघ’ है। यह कन्नौज स्टेशन से लगभग एक मील पश्चिम में है। अकबर ने घाघ को ‘चौधरी’ की भी उपाधि दी थी। इसीलिए घाघ के कुटुम्बी अभी तक अपने को चौधरी कहते हैं। ‘सराय घाघ’ का दूसरा नाम ‘चौधरी सराय’ भी है।5 घाघ की पत्नी का नाम किसी भी स्रोत से ज्ञात नहीं है किन्तु इनके दो पुत्र-मार्कण्डेय दुबे और धीरधर दुबे हुए। इन दोनों पुत्रों के खानदान में दुबे लोगों के बीस पच्चीस घर अब उसी बस्ती में हैं। मार्कण्डेय के खानदान में बच्चूलाल दुबे, विष्णु स्वरूप दुबे तथा धीरधर दुबे के खानदान में रामचरण दुबे और कृष्ण दुबे वर्तमान हैं। ये लोग घाघ की सातवीं-आठवीं पीढ़ी में अपने को बताते हैं। ये लोग कभी दान नहीं लेते हैं। इनका कथन है कि घाघ अपने धार्मिक विश्वासों के बड़े कट्टर थे और इसी कारण उनको अंत में मुगल दरबार से हटना पड़ा था तथा उनकी जमीनदारी का अधिकांश भाग जब्त हो गया था। 

प्राचीन महापुरूषों की भांति घाघ के सम्बन्ध में भी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि घाघ बचपन से ही ‘कृषि विषयक’ समस्याओं के निदान में दक्ष थे। छोटी उम्र में ही उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गयी थी कि दूर-दूर से लोग अपनी खेती सम्बन्धी समस्याओं को लेकर उनका समाधान निकालने के लिए घाघ के पास आया करते थे। किंवदन्ती है कि एक व्यक्ति जिसके पास कृषि कार्य के लिए पर्याप्त भूमि थी किन्तु उसमें उपज इतनी कम होती थी कि उसका परिवार भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहता था, घाघ की गुणज्ञता को सुनकर वह उनके पास आया। उस समय घाघ हमउम्र के बच्चों के साथ खेल रहे थे। जब उस व्यक्ति ने अपनी समस्या सुनाई तो घाघ सहज ही बोल उठे-

आधा खेत बटैया देके, ऊँची दीह किआरी।
जो तोर लइका भूखे मरिहें, घघवे दीह गारी।।


कहा जाता है कि घाघ के कथनानुसार कार्य करने पर वह किसान धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

घाघ के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि उनकी अपनी पुत्रवधू से नहीं पटती थी। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि इसी कारण घाघ अपना मूल निवास छपरा छोड़कर कन्नौज चले गये थे। घाघ जो कहावतें कहते थे उनकी पुत्रवधू

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