Friday, August 2, 2019

पांच सौ वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस वक्त सड़कें नहीं थी। काव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर घाट होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था।
काव शाहाबाद के आंतरिक भाग की अंतरप्रवाहित होने वाली सबसे बड़ी नदी थी। यह कैमूर पर्वत के कछुअर खोह से निकल कर राजपुर, सियांवक, विक्रमगंज, दावथ, नावानगर, केसठ, कोरानसरैया, डुमरॉव होती हुई गंगा में मुहाना बनाती थी, परन्‍तु इस नदी का बहाव वर्तमान में मलियाबाग से उत्तर धारा मोड़कर घुनसारी गॉव के पास ठोरा नदी में मिला दिया गया है। रूपसागर, नावानगर, जितवाडिहरी, अतिमी, भदार, बसुदेवा, पिलापुर और नखपुर आदि गाँवों की सीमा से काव की धारा गायब हो गई है। केसठ के पास काव के नाम से एक धारा बहती हुई डुमरॉव की ओर जाती है, फिर भी मुख्‍य धारा नदी- अपहरण की वस्‍तु होकर इतिहास का विषय बन चुकी है।
 इसी रास्ते पर चेरो जाति का किला था। चेरों का इस इलाके में आतंक था। लूटमार.तथा बटमारी उनका पेशा था।।कांव नदी के उस पार स्थित चेराें खरवारों का कबीला बावन दुअरियां आज भी वीरान पड़ा है। कहा जाता है कि उस जमाने में उनका टीला काफी समृद्ध था तथा उंचाई पर बसा हुआ था। लेकिन मां डुमरेजनी के श्राप के बाद न सिर्फ चेराें खरवारों का नाश हुआ बल्कि उनका समृद्ध किला बावन दुअरियां भी बंजर हो गया। आज भी उस टीले के क्षेत्र में न तो हल चलता है और न ही खेती होती है। कई बार हल चलाने का प्रयास भी किया गया लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। कहा जाता है कि इस टीले के अंदर कई इतिहास छिपे है। मान्यता तो ये भी है कि इस टीले में काफी धन संपदा भी दबे होंगे.अपने पुरनियों से कहानी सुनी है कि यहाँ एक धनवान चेरों राजा रहता था, परन्‍तु वह कुछ पागल किस्‍म का इंसान था। उसके पास जमीन में लम्‍बे समय से छुपाया गया कई मन सोना का भंडार था। उसने सभी सोना को निकलवाया और कहा कि यह काफी समय से तहखाने में रखे रहने के कारण ओदा (नमी युक्‍त) हो गया है, इसलिए इसे सुखवाया जाय। मजदूर तेज धूप में गढ़ के अहाते में सुखवाने लगे। शाम के समय राजा ने सारे सोना को इकट्‌ठा करा कर तौलवाया, तो तौल के हिसाब से सोना पूरा मिला। उसे सोचा कि इसका सुखवन नहीं अभी तक नहीं गया। उसने फिर से सुखवाने के लिए कहा। यही क्रम कई दिनों तक चलता रहा। सुबह सोना के टुकड़े धूप में पसारे जाते और शाम को बटोर कर तौलवाया जाता। सोना का वजन हमेशा एक समान हीं मिलता। राजा अपने मजदूरों पर नाराज होकर उन्‍हें तरह-तरह से कष्‍ट देने लगा, क्‍योंकि उसकी समझ से सोना की नमी सूख नहीं रही थी। सभी जानते हैं कि सोना में नमी होती नहीं है। तब अंत में चतुर दीवान ने एक तरकीब निकाली। उसने मजदूरों से कहा कि वे सब अपने पैरों में अलकतरा या चिपकने वाल द्रव लगाकर जायें, ताकि सोना के टुकड़े पैरों में सटकर उस जगह से हट जायें। इस उपक्रम से काफी सोना वहाँ से गायब होने लगा। कुछ दिनों के बाद वजन काफी कम हो गया, तो राजा ने कहा कि अब सोना सूख गया है अब सूखाना बंद करो। सोना सूख जाने की खुशी में उसने मजदूरों को सोना के कई टुकड़े उपहार में दिये।
सुदूर गाँवों और संसाधनों के विषय में सुव्‍यवस्‍थित अध्‍ययन करने के लिए ईस्‍ट इंडिया कंपनी के तत्‍कालिन शासकों द्वारा जिले में एक खोज यात्रा आयोजित की गई, जिसका नेतृत्‍व अंगे्रज सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन ने सन्‌ 1812-13 में पूरा किया। उसकी यात्रा के समय करंज थाना स्‍थापित हो चुका था। करंज थाना के क्षेत्राधिकार में दनवार और दिनारा परगनों का सारा भाग था। करंज थाना का फैलाव पश्‍चिम में कोचस के उतरी भाग से लेकर पूरब में सोन नदी तक था। इसके उत्तर में डुमरॉव थाना और दक्षिण में बरॉव थाना का भाग था। अपने यात्रा-क्रम में वह इस इलाके के सूर्यपूरा, करंज, कोआथ, बड़हरी, बहुआरा, कोचस आदि जगहों पर पड़ाव डाला तथा भलुनी व घरकंधा का भी दौरा किया। करंज थाना क्षेत्र को लम्‍बा और सँकरा बताते हुए उसे टिप्‍पणी की कि यहाँ पदस्‍थापित दारोगा, काजी और पीरजादा हैं, जो अपना काफी कम समय करंज मुख्‍यालय में देते हैं।17 यहाँ के लोग प्रायः शिव और देवी की पूजा करते हैं और इस क्षेत्र में मुस्‍लिम का कोई उपासना स्‍थल नहीं है। बक्‍सर के ज्ञानी पंडित और भोजपुर राजा के पुरोहित रीतु राज मिश्र द्वारा स्‍थापित करंज में एक मठ भी है, जिसमें बीस साधु रहते हैं। यहाँ के कुछ हिन्‍दू नानक पंथी भी हैं, जिनकी बैठक दिनारा में होती है। जिसमें उपदेश देने के लिए एक अविवाहित युवक जगदीशपुर से हमेशा आता है।17(क) इस क्षेत्र के पश्‍चिमी भाग की भूमि करइल मिट्‌टी से बनी है, जो पैदावार के लिए उपयोगी है। परन्‍तु पूर्वी भाग की भूमि बालू से भरी है। इस क्षेत्र के बड़ा भाग जंगल से अटा है और सभी तरफ लम्‍बे घास ही दिखाई देते हैं। सूर्यपुरा के मकान पुराने कानूनगो के हैं, जिसमें काफी खिड़कियाँ लगती हैं और उसका फैलाव काफी विस्‍तृत है, परन्‍तु उस पर बाहर से प्‍लास्‍तर भी नहीं हुआ है। इस क्षेत्र के घरों के दीवाल मिट्‌टी के हैं, जो फूल से छाये हुए हैं, पर अधिकतर गाँवों में घरों के नाम पर झोपडि.याँ ही हैं। करंज, जहाँ पुलिस मुख्‍यालय है और बाजार भी लगता है, यह केवल 70 घरो का गाँव है। कोआथ इस क्षेत्र का बड़ा शहर है, जहाँ 500 घर हैं। सूर्यपुरा, दावथ, शिवगंज, बड़हरी और कोचस प्रायः 200 घरों के तथा धनगाई और धोसियाँ 150 घरों के गाँव हैं।

घुमक्‍कड़ अपने यात्रा विवरणों में इस क्षेत्र के भलुनी, घरकंधा और जारन-तारन के महत्‍व पर प्रकाश डालता है। कोचस में वह एक ऐसे मुस्‍लिम परिवार को पता है, जिसने उज्‍जैनियों की सेवा करके काफी धन अर्जित किया है। उसके यात्रा वृतांत से हमें ठीक दो सौ वर्ष पहले की सामाजिक - सांस्‍कृतिक - धार्मिक - आर्थिक स्‍थितियों एवं अपने स्‍वभाव में नये गुणों का समावेश करता एक संक्रमणशील समाज का पता चलता है। घरकंधा स्‍थित ज्ञानमार्गी संत दरिया का मठ, गंगाधर पंडित द्वारा भलुनी गाँव के समीप यक्षिणी भवानी के मंदिर का निर्माण तथा सूर्यपुरा स्‍थित दीवान के विशाल भवन की जानकारी उसके विवरणों में है। जंगल के समीप स्‍थित भलुनी के देवी के मंदिर को वह काफी महत्‍वपूर्ण धार्मिक स्‍थल माना है। उसका मानना है कि देवी की मूर्ति चेरो जनजातियों द्वारा निर्मित है। इस देवी की मूर्ति की तुलना वो कलकत्ता की काली मूर्ति से करता है। उसके यात्रा के समय चैत्रमास में वहाँ भारी मेला लगता था, जिसमें दस हजार से ज्‍यादा तीर्थयात्री आते थे। वह अंधेरा होने की वजह से मंदिर में स्‍वयं मूर्ति को देख नहीं पाता और स्‍थानीय पुजारियों द्वारा अपने वंश के संबंध में प्रस्‍तुत कराये गये आँकड़ो पर संदेह व्‍यक्‍त करता है। वह पाता है कि यहाँ के शाकद्वीपीय पुजारी भ्रम पालने और ठगने का काम करते हैं। पुरातात्‍विक महत्‍व पर प्रकाश डालते हुए वह पाता है कि भैरव नाम से पूजित मूर्ति बुद्ध की ध्‍यानमग्‍न मूर्ति है और पश्‍चिमी पोखरे के किनारे प्राचीन मंदिर के अवशेष मुस्‍लिम काल में आक्रांतओं द्वारा ढ़ाहे गये हैं।

यह अंग्रेज यात्री सूर्यपुरा से नौ मील उत्तर जारन-तारन नामक एक ऐसे स्‍थान को पाता है, जो अतीत में चेरो राजा फुलीचंद्र का निवास स्‍थल था। वह यहाँ के प्राचीन घरों के खंडहरों और बसावटों पर काफी गौर करते हुए वर्णन करता है कि यहाँ पर बिखरी पड़ी मूर्तियाँ इतिहास की अनमोल धरोहर हैं। इतिहासकारों का मानना है कि बुकानन द्वारा यह निर्देशित स्‍थल खान की सिमरी के उत्तर पूर्व और नावानगर का तराँव गढ़ ही अवश्‍य है।तुरांव गढ़ जहाँ बुकानन भी गया था अपने मात्रा काल में, वह वर्तमान में तुरांव खास और गुंजाडीह के नाम से जाना जाता है। यहाँ अब भी पुराने सिक्‍के, लम्‍बे चौड़े पके इट्‌टे और जले हुए अन्‍न के अवशेष प्राप्‍त होते हैं। यहाँ के निवासियों में सोना धूप में पकाने, सोना लूटने और सोना मिलने के बारे में अनेक दंतकथायें और सच्‍ची घटनाएँ भी प्रचलित है। स्‍थानीय लोग मानते हैं कि चेरो राजा के वशंज आज भी कभी-कभार इस जगह पर आते हैं।जगरम' भोजपुरी पत्रिका, बक्‍सर, वर्ष- अगस्‍त, 1996, पृष्‍ट- 20, कृष्‍ण मधुमूर्ति का आलेख- ‘ठोरा बाबा (नदी) के मिथक- ‘‘नोनहर के एगो पुरनिया रामनारायण साहु (100 बरिस) तलन कि ई गाँव ठोरा बाबा के ममहर रहे। कवनो कारज-परोजन पर ठोरा एगो पेठवनिया सरूप दुसाध के संगे मामा किहाँ आइल रहले। उनुका सात गो मामा रहले। सभे इहें बझे जे ठोरा दोसरा किहें खात-पीयत होई हें। बाकिर ठोरा सात दिन तक उपासे रह गईले। ममहर के एह कुआदर से ऊ बड़ा मर्माहत भइले आ इनार में कूद गईले। ․․․․․․․․․․․․․․․ किवंदती बा कि ठोरा इनार फारि के गंगाजी में मिले खातिर चलले। जेने-जेने से ऊ गुजरले ऊहे सोता बन गइल, जवन बाद में ठोरा नदी कहाइल। बक्‍सर के पास ठोरा अपना ओही वेग से गंगाजी के धार चीर के पार होखल चहले। त गंगा जी प्रकट होके हाथ जोड़ी कइली कि हमरा महिमा के खेयाल कर। तहार उद्धार त हम करबे करब।''


The opinion of Mr. Beames, in his edition of Sir H. Elliot’s Supplemental 
Glossary on the physical characteristics of the Bhuinhars, is true and worth 
recording : “ They are a fine manly race, with the delicate Aryan type of fea- 
ture in full perfection, yet,” he adds, “their character is bold and overbearing, 
and decidedly inclined to be turbulent,” — a strong expression, which it would 
not be easy to substantiate or justify. 

The following is a list of some of the clans, gotras, and titles of the 
Bhuinhar Brahmans : — 

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