Tuesday, August 6, 2019

कुलीन प्रथाक विकास मिथिलामे एहियुगमे भेल। ओना एकर विश्लेषण पञ्जी प्रबन्धक प्रसंग भेल अछि परञ्ज ओकर एतिहासिक पृष्ठभूमि एहिठाम राखब आवश्यक। कुलीन व्यवस्थाक संस्थापक छलाहे आदि सूर जे पूर्वी मिथिलामे कतहुँ शासन करैत छलाह आ वृद्ध वाचस्पति हुनके ओत्तए रहि अपन न्यायकणिका नामक पुस्तकक रचना कएने छलाह। आदिसूर (९म शताब्दी)मे मिथिला आ बिहारमे बौद्धधर्मक प्रधानता छल आ तैं ब्राह्मणत्वक रक्षार्थ ओ कोलाञ्चसँ पाँचटा शुद्ध ब्राह्मणकेँ बजाय अपना ओतए आश्रय देलन्हि। आदिसूरक दरबारमे ब्राह्मण लोकनिक वर्गीकरण प्रारंभ भेल छल आ पाछाँ बल्ला सेन अपनाकेँ आदिसूरक वंशसँ मिलाय अपनाकेँ कुलीन प्रथाक जन्मदाता घोषित केलन्हि मुदा एहिठाम ई स्मरणीय जे मिथिलाँचलसँ प्राप्त दू ताम्र पत्र (बनगाँव आ पंचोभ) अभिलेखमे दान देबाक हेतु कोलाञ्च ब्राह्मणक उल्लेख स्पष्ट अछि। मिथिलाक पाञ्जिमे जे मूल ग्राम अछि सएह ओकर प्राचीनताक सबसँ पैघ प्रमाण मानल जा सकइयै। एवँ प्रकारे कुलीन व्यवस्थाक जन्म सर्वप्रथम मिथिलहिमे भेल छल आ पाछाँ एहिठामसँ बंगाल आ असममे इ पसरल। हरिसिंह देव ओहिसब पुराण व्यवस्थाकेँ एकत्र कए पञ्जी प्रबन्धक व्यवस्था केने छलाह। एहि प्रथाक बादसँ विवाहादिक नियम सेहो श्रृंखलाबद्ध भेल। पञ्जि आ घटकक प्रथा चलल। एहि प्रथाकेँ जँ रमानाथ बाबू समाजक नियमनक हेतु सर्वश्रेष्ठ मनने छथि तँ उपेन्द्र ठाकुर एकरा प्रतिक्रियावादी कहने छथि। एकरा चलते सामाजिक संकीर्णता दिनानुदिन बढ़ैत गेल आ  बिकौआक प्रथा प्रचलित भेल।

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