Friday, August 2, 2019

1745 में राजा होरिल साह ने डुमरांव में अपनी राजधानी बनायी थी. कांव नदी- कभी उद्गम स्थल सोन नदी से निकलकर मलियाबाग, केसठ भाया कोरानसराय के रास्ते डुमरांव की घनी आबादी को स्र्पश करते हुए नया भोजपुर के ताल यानि गंगा नदी में विलीन हुआ करती थी।
डुमरांव नगरपालिका का गठन वर्ष 1868 में किया गया था।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नगरपालिका के चुनाव में प्रथम बार कई ऐसे वार्ड सदस्य चुनकर आए। जिन्होंने पुरानी परंपरा को धराशायी कर नया कीर्तिमान स्थापित किया जिसमे भूमिहार ब्राह्मणों की बड़ी संख्या  the। डुमरांव राज के प्रबंधक और उनसे जुड़े़ लोगों को अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष पद पर काबिज होने की परंपरा टूट गई। नई परंपरा में चौधरी धनुषधारी राय को अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन, मामला उच्च न्यायालय में जाने के बाद न्यायालय द्वारा चुनाव रद कर दिया गया। उन दिनों नप अधिनियम के तहत राज्य सरकार ने चौधरी बृजबिहारी राय को अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर दिया
लगभग पांच सौ वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस वक्त सड़कें नहीं थी। काव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर घाट होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था। इसी रास्ते पर चेरो जाति का किला था। चेरों का इस इलाके में आतंक था। लूटमार.तथा बटमारी उनका पेशा था।।
कांव नदी के उस पार स्थित चेराें खरवारों का कबीला बावन दुअरियां आज भी वीरान पड़ा है। कहा जाता है कि उस जमाने में उनका टीला काफी समृद्ध था तथा उंचाई पर बसा हुआ था। लेकिन मां डुमरेजनी के श्राप के बाद न सिर्फ चेराें खरवारों का नाश हुआ बल्कि उनका समृद्ध किला बावन दुअरियां भी बंजर हो गया। आज भी उस टीले के क्षेत्र में न तो हल चलता है और न ही खेती होती है। कई बार हल चलाने का प्रयास भी किया गया लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। कहा जाता है कि इस टीले के अंदर कई इतिहास छिपे है। मान्यता तो ये भी है कि इस टीले में काफी धन संपदा भी दबे होंगे।#डुमरांव (Buxar)  ke एक भूमिहार क्रांतिकारी hue he चुटूर राय लेकिन सरकार द्वारा इस भूमिहार क्रांतिकारी के योगदान को लगभग भुला दिया गया कही कोई सड़क उनके नाम पर नहीं है #डुमरांव  के महान भूमिहार  क्रन्तिकारी को नमन डुमरांव के युगल जोड़ी स्वतंत्रता सेनानी चुटूर कुमारी यानी रामकुमार तिवारी और ब्रह्मदेव राय हि

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