Wednesday, July 31, 2019

बचपन के दिन याद आ गए ! घर - परिवार - ननिहाल में शादी होता था - हम सभी पन्द्रह दिन पहले ही गांव पहुँच जाते थे ! पहला रस्म होता था - 'फलदान' - लडकी वाले कुछ फल इत्यादी लेकर 'वर' के घर जाते थे ! बहुत दिनों तक - बहुत ही कम लोग आते थे - पर धीरे - धीरे यह एक स्टेटस सिम्बल बन गया - लडकी वाले १०० -५० की संख्या में आने लगे ! गांव भर से चौकी , जाजिम , तकिया , तोशक मांगा कर 'दालान' में बिछा दिया जाता था ! मेरे खुद के परिवार  में - मुझे याद है - खुद का 'टेंट हॉउस' वाला सभी सामान होता था ! कई जोड़े 'पेट्रोमैक्स' , टेंट , बड़ी बड़ी दरियां , शामियाना - पर दिक्कत होती थी - चौकी की सो गांव से चौकी आता था और चौकी के नीचे य बगल में 'आलता' से उस चौकी के मलिक का नाम लिखा जाता था ! समय पर लाना और समय पर पहुंचवा देना किसी एक खास मुंशी मैनेजर की जिम्मेदारी होती थी ! मुंशी - मैनेजर के आभाव में गांव घर के कोई चाचा या बाबा !

जैसा 'वर' का हैशियत वैसा 'लडकी वाला' सुबह होते होते लडकी वाले पहुँच जाते ! हम बच्चे बार बार 'दालान' में झाँक कर देखते और 'दालान' की खबर 'आँगन' तक पहुंचाते थे ! ड्राम में 'शरबत घोला जाता था ! हम बच्चे 'ड्राम' के आगे पीछे ! दोपहर में गरम गरम 'गम्कऊआ भात' पात में बैठ कर खाना और आलू का अंचार , पापड़ - तिलौडी और ना जाने क्या क्या ! लडकी का भाई 'फलदान' देता था - उस ज़माने में 'लडकी' को दिखा कर शादी नहीं होती थी सो अब लडकी कैसी है यह अंदाजा उसके 'भाई' को देख लगाया जाता था ! आँगन से खबर आती - जरा 'लडकी' के भाई को अंदर भेज दो -  माँ - फुआ - दादी टाईप लोगों को जिज्ञासा होती थी !

शाम को मुक्त आकाश में खूब सुन्दर तरीके से 'दरवाजा ( दुआर) ' को सजाया जाता ! ५-६ कम ऊँची चौकी को सजा उसके ऊपर सफ़ेद जाजिम और चारों तरफ पुरे गाँव से मंगाई हुई 'कुर्सीयां' ! मामा , फूफा टाईप लोग परेशान कर देते थे - एक ने पान माँगा तो दूसरे को भी चाहिए - किसी को काला - पीला तो किसी को सिर्फ 'पंजुम' , किसी को सिर्फ कत्था तो किसी को सिर्फ चुना वाला पान ! जब तक 'पन्हेरी' नहीं आ जाता - हम बच्चों को की 'वाट' लगी रहती थी !

गांव के बड़े बुजुर्ग धीरे धीरे माथा में मुरेठा बंधे हुए लाठी के सहारे आते और उनकी हैशियत के मुताबिक उनको जगह मिलती थी ! होने वाले 'सम्बंधिओं' से परिचय शुरू होता ! फिर , 'आँगन से सिल्क के कुरता या शेरवानी ' में 'वर' आता ! साथ में 'हजाम' होता था - जिसका काम था - 'वर' का ख्याल रखना - जूता खोलना , हाथ पकड़ के बैठना इत्यादी इत्यादी ! दोनों तरफ के पंडीत जी बैठ जाते - उनमे आपस में कुछ नोक - झोंक भी होती थी जिसको गांव के कोई बाबा - चाचा टाईप आईटम सुलझा देते ! इस वक्त 'लडकी वालों ' के बिच कुछ खुसुर फुसुर भी होती थी - 'वर' की लम्बाई - चेहरा मोहरा इत्यादी को लेकर !

फिर 'फलदान' का प्रोसेस शुरू होता और कुछ मर मिठाई - अर्बत - शरबत भी चालू हो जाता ! फलदान होते ही 'हवाई फायीरिंग' भी कभी कभार देखने को मिला - जब लडके और लडकी वाले आपस में तन गए - मेरा यह मानना है की फलदान होते ही सामाजिक तौर पर दोनों परिवार बराबर के हो गए - तिलक - दहेज की बात अब इसके बाद नहीं होती !

फलदान में लडकी वाला अपनी हैशियत के हिसाब से लडके को देता था ! कुछ कपड़ा या कुछ दर्जन 'गिन्नी- अशर्फी' !

फिर , दोनों पक्ष दालान में बैठ कर आगे का कार्यक्रम बनाते ! तिलक में कितने लोग आयेंगे - बरात कब पहुचेगी - विदाई कब होगा - किसको किसको दोनों तरफ से 'कपड़ा' जायेगा ! तब तक शाम हो जाती ....

और हम बच्चे .."पेट्रोमैक्स' के इर्द - गिर्द गोला बना के बैठ जाते - उसको जलने वाला भी एक व्यक्ति विशेष होता - जो हम बच्चों को बड़ा ही 'हाई - फाई' लगता ! :)
एक जमाना था - लड़का ने 'मैट्रिक' का फॉर्म नहीं भरा की 'बरतुहार' ( अगुआ - शादी विवाह वाले , लडकी वाले ) आना शुरू कर देते थे ! गाँव या टोला में एकता है तो जल्द 'शादी' ठीक हो जाती वर्ना ..लड़का बी ए फेल भी कर जाता और शादी नहीं हो पाती थी ! इन दिनों 'बियाह-कटवा' भी सक्रिय भूमिका में आ जाते हैं ! जब तक वो 'बरतुहार' को आपके दरवाजा से भगा नहीं देते ..उनको चैन नहीं आता है ! तरह तरह के 'बियाह कटवा' .... जैसे एन बारात लगने के समय हल्ला कर दिया या चुपके से 'लडकी वाले' को बोल दिया की ..'लड़का तो ......' अब हुआ हंगामा ...' हंगामा खड़ा कर के वो गायब :या फिर जब दरवाजे पर 'लडकी वाले ' आये हुए हैं तो ..कुछ ऐसा बोल देना की ..'लडकी वाले ' के मन में कुछ शंका आ जाए ! ऐसे 'बियाह कटवा ' गाँव - मोहल्ला - टोला के बाज़ार पर बैठे मिल जाते हैं - जैसे कोई 'बर्तुहार' गाँव - मोहल्ला में घुसा नहीं की उसके पीछे पीछे चल देना ! होशियार 'लडका वाला ' लगन के पहले इस 'बियाह कटवा' को 'सेट' कर के रखता है ताकि वो कुछ कम नुक्सान कर पाए !



खैर , बियाह तय हो गया - अब बात आयी - लेन - देन की , यहाँ भी कुछ कुशल कारीगर होते हैं - आपकी 'कीमत' से बहुत कम में आपका 'माल' बिकवा देंगे :( और खैनी ठोकते आपका ही नमक खा कर - मुस्कुराते चल देंगे ! ऐसे लोगों के दबाब से बचने के लिए - लड़का वाला बंद कमरा में 'कीमत' तय करने लगा वरना वो एक जमाना था तब जब समाज के बड़े बुजुर्ग के बीच में सब कुछ तय होता था ! अच्छे लोग - तिलक - दहेज का पूरा का पूरा लडकी को 'सोना' के रूप में 'मडवा' ( मंडप) पर चढा देते थे - अब 'बैंक' में रख सूद खाते हैं !



अब लडका वाला तिलक - दहेज और अपनी हैशियत के मुताबिक 'ढोल बाजा' आर्तन - बर्तन , कपड़ा - लत्ता ' खरीदने की तैयारी शुरू कर देता है ...अब फिर से कुछ 'आईटम' लोग आपके पीछे लग जायेंगे ! आपका 'बजट' पांच हज़ार का ही तो वो उसको पन्द्रह हज़ार का करवा देंगे - अब 'बेटा' का बियाह है - लोक - लज्जा की बात है - आप बस थूक घोंटते नज़र आयेंगे ! पब्लिक समझेगा की 'फलना बाबु ' तो तिलक लेकर धनिक हो गए - जबकि सच्चाई यह है की - आपकी जमा पूंजी भी 'इज्ज़त ' के चक्कर में लग जाती है !

अब बारात कैसे जायेगा - आप मन ही मन 'बस' का सोच रहे होंगे - आपके शुभ चिन्तक आपको इज्ज़त का हवाला देकर १०-२० कार ठीक करवा देंगे - कार जीप भी ठीक करने वो ही जायेंगे - "सट्टा बैना" भी वही लिखेंगे - जब आप कुछ कम भाडा की बात करेंगे - तो आपके शुभचिंतक बोलेंगे की - अरे ..लईका के बियाह है ...कोई नहीं .फिर से एक बार थूक घोंट लीजिए ! :)

बारात में 'नाच - पार्टी' कैसा जायेगा ? इसका टेंशन एक खास किस्म के लोगों को रहता है - उनको सब डीटेल पता रहता है की ..कहाँ का कौन सा 'नाच' कैसा है ? वैसे लोगों को खबर जाता है - वो बहुत आराम से दोपहर का खाना खाते हुए ..लूंगी में धीरे धीरे टहलते ...खैनी ठोकते ..आयेंगे ! अब वो डिमांड करेंगे ..अलग से गाड़ी घोडा का ..भाई ..नाच ठीक करने जाना है :) कोई मजाक थोड़े ही है :)फलदान में - तिलक में

 - कैसा 'कुक' आएगा ? यह एक अलग किस्म का टेंशन है - कोई सलाह देगा - दोनों कुक अलग अलग होना चाहिए - कोई कहेगा - मुजफ्फरपुर से आएगा - 'फलना बाबू ' के बेटा के बियाह में 'बनारस से ही नाच और कुक' दोनों आया था - अब वो जैसे ही 'फलाना बाबु ' का नाम लिया नहीं की आप भरपूर टेंशन में नज़र आ जायेंगे - बेटा का बियाह और इज्ज़त - जो न करवाए !

अब चलिए ..गहना पर ! घर की महिलायें 'जीने' नहीं देंगी ! अक्सर यहाँ एकता देखा जाता है - आप मन ही मन ५० भर सोना चढाने को सोच रहे होंगे - तब तक कोई बोलेगी - मेरे बियाह में '२०० भर' सोना चढा था - अब देखिये - यहीं पर आपका बजट चार गुना हो गया ! कोई कहेगी - मुजफ्फरपुर का 'सोनार' सब ठग है - अमकी 'पटना ' से खरीदायेगा - अब हुआ टेंशन - पूरा 'बटालियन' पटना जायेगा ! १०० भर सोना के साथ साथ ५-१० नकली अशर्फी - गिन्नी खरीद लेगी सब ! एक सुबह से शाम तक ..सोनार इनको '३ बोतल ' कोका कोला पीला के ..२-४ लाख का सोना बेच देता है और दूकान के सामने 'बलेरो' जीप में बैठा मरद का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ रहता है !

बनारसी साड़ी का भी एक अलग टेंशन है - मालूम नहीं वो 'लडकी' फिर कब इतना भरी साड़ी दुबारा कब पहनेगी कोई कहेगा १०१ साड़ी जायेगा ...फिर बजट हिलेगा डूलेगा ! फिर टेंशन होगा - अटैची - सूटकेस का ! सब खर्च हो गया - पर ये सूटकेस आर्मी कैंटीन से ही आएगा :

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