शर्मा' उपाधि तो सभी ब्राह्मणों की धर्मशास्त्रों से सिद्ध हैं जैसा कि मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में लिखा हैं कि :
शर्मवद्ब्राह्मणस्य स्याद्राज्ञो रक्षासमन्वितम्।
वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्यसंयुतम्॥ 3 अ. 2 मनु.
शर्म देवश्च विप्रस्य वर्म त्राता च भूभुज:।
भूतिर्दत्ताश्च वैश्यस्य दास: शूद्रस्य कारयेत्॥ यम.॥
शर्म वद्ब्राह्मणस्योक्तं वर्मेति क्षत्रा संयुतम्।
गुप्तदासात्मकं नाम प्रशस्तं वैश्यशूद्रयो:॥ विष्णुपु.॥
सबका निचोड़ यह हैं कि ''ब्राह्मणों के नाम के अन्त में शर्मा और देव शब्द होने चाहिए, एवं क्षत्रिय के नामान्त में वर्मा और त्राता, वैश्य के गुप्त, दत्ता आदि और शूद्र के नामान्त में दास शब्द लगाना चाहिए।''
शर्मवद्ब्राह्मणस्य स्याद्राज्ञो रक्षासमन्वितम्।
वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्यसंयुतम्॥ 3 अ. 2 मनु.
शर्म देवश्च विप्रस्य वर्म त्राता च भूभुज:।
भूतिर्दत्ताश्च वैश्यस्य दास: शूद्रस्य कारयेत्॥ यम.॥
शर्म वद्ब्राह्मणस्योक्तं वर्मेति क्षत्रा संयुतम्।
गुप्तदासात्मकं नाम प्रशस्तं वैश्यशूद्रयो:॥ विष्णुपु.॥
सबका निचोड़ यह हैं कि ''ब्राह्मणों के नाम के अन्त में शर्मा और देव शब्द होने चाहिए, एवं क्षत्रिय के नामान्त में वर्मा और त्राता, वैश्य के गुप्त, दत्ता आदि और शूद्र के नामान्त में दास शब्द लगाना चाहिए।''
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