मुगल सम्राट मुहम्मद शाह के शासन काल के प्रारम्भ में नवाब मुर्तजा खाँ नामक एक दरबारी क¨ बनारस, ज©नपुर, गाजीपुर तथा चुनार की सरकारें जागीर के रूप में प्राप्त हुई थी, जिनका राजस्व पांच लाख रुपये था। उसने मीर रुस्तम खाँ क¨ अपना नायब नियुक्त किया था।3
मंसाराम इसी मीर रुस्तम खाँ की सेवा में था अ©र शीघ्र ही वहाँ अपनी य¨ग्यता एवं प©रुष के बल पर सबसे प्रमुख व्यक्ति बन गया।4 इसके पश्चात् 1738 ई0 में उसने अवध के नवाब के दरबार में स्थित अपने मित्र्ा¨ं की सहायता से मीर रुस्तम अली खाँ क¨ पदच्युत करवाकर तेरह लाख वार्षिक राजस्व के बदल्¨ में अपने पुत्र्ा बलवन्त सिंह के नाम सरकार चुनार, ज©नपुर व बनारस की आमिलदारी अवध के नवाब से प्राप्त कर ली।5 परन्तु एक वर्ष के अन्दर ही 1738 ई0 में उसकी मृत्यु ह¨ गई।6 मंसाराम की मृत्यु के पश्चात् उसका एकमात्र्ा पुत्र्ा बलवन्त सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। प्रारम्भिक दस वषर्¨ं में वह अवध के नवाब क¨ नियमित रूप से राजस्व का भुगतान करता रहा।7 1748 ई0 में जब मुगल बादशाह मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात नये सम्राट अहमदशाह ने सफदरजंग क¨ मुगल साम्राज्य का वजीर मन¨नीत कर दिल्ली बुला लिया त¨ नवाब की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर अपने दूरदर्शी परामर्शदाताअ¨ं की सलाह पर नवाब के सजावल क¨ बनारस से निष्कासित कर दिया। राजस्व का भुगतान र¨क दिया तथा समीपवर्ती भू-भाग¨ं में लूटपाट प्रारम्भ कर दी।8
इस समय नवाब रुहेला-अफगान¨ं से संघर्ष में व्यस्त था। इसलिए वह बलवन्त सिंह के विरुद्ध क¨ई तात्कालिक कदम न उठा सका परन्तु अफगान समस्या से मुक्त ह¨ने के बाद बलवन्त सिंह क¨ दण्डित करने के उद्देश्य से बनारस आया। बलवन्त सिंह ने भागकर परिवार सहित मिर्जापुर की पहाडि़य¨ं में शरण ली।9 अपने विश्वासपात्र्ा लाल खाँ के द्वारा नवाब के पास द¨ लाख उपहार स्वरूप भेजे, इसके साथ ही अपने पिछल्¨ आचरण के प्रति क्षमा याचना की तथा पूर्व निर्धारित राजस्व से द¨ लाख अ©र अधिक राजस्व प्रतिवर्ष देने का प्रस्ताव किया। नवाब ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा नवाब का सजावल पुनः बनारस में रहने लगा।10
अपनी स्थिति क¨ सुदृढ़ करने के लिए बलवन्त सिंह ने गंगा के बायें तट पर बनारस के द¨ मील दक्षिण में स्थित रामनगर क¨ अपने निवास के लिए चुना अ©र वहाँ एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।11 इसके अतिरिक्त 1752 ई0 में परगना भगवत के मुस्लिम जमींदार जमैयत खाँ क¨ भगाकर पतीता के किल्¨ पर, 1753 ई0 में अहर©रा के मुस्लिम जमींदार मलिक फारुख की मृत्यु के बाद अहर©रा के किल्¨ पर तथा उसके भाई मलिक एहसान पर आक्रमण करके लतीफपुर के किल्¨ पर अधिकार कर लिया।12
बनारस के राजा बलवन्त सिंह ने नवाब सफदर जंग की मृत्यु का लाभ उठाकर चुनार के किल्¨ पर अधिकार करने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चुनार के किल्¨दार आगामीर क¨ घूस देकर अपनी अ¨र मिला भी लिया, किन्तु किल्¨ पर अधिकार ह¨ने से पूर्व ही शुजाउद्द©ला क¨ इस षडयन्त्र्ा का पता चल गया। शुजाउद्द©ला ने गाजीपुर के फजल अली खाँ क¨ बुलाया तथा बनारस व अन्य सरकार¨ं का शासन प्रबन्ध भी उसे देने का प्रस्ताव किया। इधर बलवन्त सिंह ने अपनी सहायता के लिए पटना से मराठ¨ं की सेना बुलाई। फजल अली खाँ ने बलवन्त सिंह की इन गतिविधियांेे क¨ जानने के पश्चात उसे समूल नष्ट करने के लिए नवाब से दस लाख रूपये तथा एक वर्ष के लिए दस हजार- घुड़सवार¨ं की मांग की।13 इसी समय दिल्ली पर अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण की सूचना मिली। इस परिस्थिति में मुगल साम्राज्य के वजीर ने नवाब तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तिय¨ं क¨ तत्काल सहायता हेतु आने की मार्मिक अपील की।14 अतः शुजाउद्द©ला ने बनारस के राजा से समझ©ता करना ही उचित समझा जिसके परिणामस्वरूप बलवन्त सिंह ने तत्काल पांच लाख रूपये भेंट स्वरूप नवाब क¨ दिये तथा पांच लाख रूपये अधिक राजस्व वार्षिक देना स्वीकार किया। इस पर नवाब ने राजा क¨ परगना भद¨ही क¨ भी जागीर के रूप में दिया।15 इसके पश्चात् नवाब फैजाबाद ल©टे।16
राजा बलवन्त सिंह उक्त संकट से बचने के पश्चात् पुनः अपनी विस्तारवादी नीति के क्रियान्वयन एवं अपनी शक्ति क¨ बढ़ाने में जुट गये। सर्वप्रथम राजा ने गाजीपुर के फजल अली खाँ क¨ उनकी जागीर से निष्कासित कराने में सफलता मिली तथा गाजीपुर सरकार का भू-भाग भी इजारे में प्राप्त कर लिया।17 उसने 1758-59 ई0 में सूबा बिहार में च©सा की जमींदारी व किला तथा 1759-1760 में सूबा इलाहाबाद के सरकार तरहर में स्थित परगना कन्तित पर भी अधिकार कर लिया।18
यद्यपि बलवन्त सिंह ने नवाब के प्रतिद्वन्दी मुहम्मद कुली खाँ क¨ बन्दी बनाने में सहायता की19 किन्तु द¨न¨ं के सम्बन्ध अच्छे न रहे। नवाब राजा बलवन्त सिंह क¨ बन्दी बनाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा। राजा भी नवाब से सदैव सतर्क रहा इसी कारण जब नवाब बनारस मुगल बादशाह से मिलने आये त¨ बलवन्त सिंह बिन्ध्य की पहाडि़य¨ं मंे चला गया।
जब नवाब बंगाल के पदच्यूत मीर कासिम को पुनः प्रतिष्ठित करना चाहते हैं अ©र मुगल सम्राट अ©र बंगाल के नवाब के साथ बनारस पहुँचे त¨ बलवन्त सिंह पुनः परिवार सहित लतीफ के किल्¨ में भाग गये। ल्¨किन बहुत प्रयास के बाद नवाब की सहायता के लिए 2000 घुड़सवार व 5000 पैदल सैनिक¨ं के साथ नवाब वजीर की सेना में सम्मिलित हुआ। किन्तु राज्य की गतिविधिय¨ं नवाब की दृष्टि में सन्देहास्पद रही। अतएव पटना पर अधिकार करने के प्रयास में असफल ह¨ने पर नवाब ने राजा बलवन्त सिंह क¨ अपनी सेना से अलग करके गाजीपुर के परगना मुहम्मदाबाद में अमला नामक ग्राम में अंग्रेज¨ं के विरूद्ध सुरक्षा म¨र्चा बनाने के लिए भेज दिया। किन्तु बक्सर के युद्ध में नवाब के पराजय का समाचार मिलते ही राजा भी रामनगर ल©ट आये इस समय तक मुगल सम्राट शाह आलम अंग्रेज¨ं की शरण आ चुका था। अतः राजा ने भी अंग्रेज¨ं का संरक्षण प्राप्त करना चाहा। उसने बिहार के नायब नाजिम राजा सिताब राय के माध्यम से मेजर मुनर¨ क¨ बक्सर के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए बधाई सन्देश तथा उपहार के रूप में ग्यारह स¨ने की मुहरें भेजी थी। इलाहाबाद की संधि के पश्चात् भी नवाब, बलवन्त सिंह क¨ दण्डित करने के प्रयास में लगा रहा। किन्तु अंग्रेज¨ं के हस्तक्ष्¨प के कारण उसमें सफल न हुआ अ©र 1770 ई0 तक बलवन्त सिंह का आजीवन अपनी जमींदारी पर अधिकार बना रहा।
राजा बलवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र्ा चेत सिंह, नवाब की इच्छा के विरूद्ध, अंग्रेज¨ं के हस्तक्ष्¨प के कारण बनारस के जमींदार बने। इस परिवर्तन का लाभ नवाब क¨ केवल भेंट के रूप में कुछ धनराशि तथा जमींदारी के वार्षिक वृद्धि के रूप मंे मिला। राजा चेतसिंह का भी नवाब से अच्छा सम्बन्ध नहीं रहा। वह अपनी सुरक्षा एवं अस्तित्व के लिए अंग्रेज¨ं पर अधिक निर्भर करता था अ©र गर्वनर जनरल क¨ अधिक महत्व देता था।
सन् 1773 ई0 में जब वारेन हेस्टिंग्स एक नवाब, र¨हिल्ला, अफगान¨ं की समस्या पर वार्तालाप करने हेतु बनारस आये त¨, राजा के गर्वनर जनरल की प्राथमिकता दी तथा नवाब अपने स्वागत में राजा की अनुपस्थिति पर अत्यधिक क्रुद्ध हुआ। नवाब के गर्वनर जनरल से वार्तालाप में राजा क¨ निष्कासित करने की अनुमति भी मांगी ल्¨किन गर्वनर जनरल ने इसकी अनुमति नहीं दी अपितु उससे ही राजा अ©र उसके उत्तराधिकारिय¨ं के लिए 2248443 रुपये वार्षिक राजस्व की शर्त पर जमींदारी प्रदान करने की सनद दिलवायी।27 इस प्रकार राजा चेतसिंह भी अंग्रेज¨ं के संरक्षण के कारण सुरक्षित रहा अ©र उसने नवाब-वजीर की सनद पाकर वैधानिक रूप से जमींदारी पर वंशानुगत अधिकार प्राप्त कर लिया।
इस प्रकार नवाब शुजाउद्द©ला अ©र बनारस के बलवन्त सिंह व चेतसिंह का सम्बन्ध परस्पर संदेहास्पद रहा, जिसके परिणामस्वरूप अन्त में नवाब का बनारस पर से नियन्त्र्ाण समाप्त ह¨ गया।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 31-32
2. सैय्यद नजमुल रजा रिजवी-18वीं सदी के जमींदार (उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में), पृ0 21
3. वही
4. वही, पृ0 20-21
5. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 203
6. बलवन्तनामा, पृ0 21
7. सैय्यद नजमुल रजा रिजवी- अठारहवीं सदी के जमींदार, पृ0 21
8. बलवन्तनामा, पृ0 21-22
9. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 204
10. वही, पृ0 204-205
11. बलवन्तनामा, पृ0 31
12. सैयद नजमुल रजा रिजवी- अठारहवीं सदी के जमींदार, पृ0 22
13. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव- शुजाउद्द©ला, खण्ड-1, पृष्ठ 33
14. वही
15. बलवन्तनामा, पृष्ठ 38, 39, अ¨ल्ढम, भाग-1 पृष्ठ 102
16. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव- शुजाउद्द©ला, खण्ड-1 पृष्ठ 34
17. बलवन्तनामा, पृष्ठ 40-41, अ¨ल्ढम, भाग-1 पृष्ठ 102
18. वही, पृष्ठ 41-43, वही, पृष्ठ 102-103
19. वही, पृष्ठ 43-46
मंसाराम इसी मीर रुस्तम खाँ की सेवा में था अ©र शीघ्र ही वहाँ अपनी य¨ग्यता एवं प©रुष के बल पर सबसे प्रमुख व्यक्ति बन गया।4 इसके पश्चात् 1738 ई0 में उसने अवध के नवाब के दरबार में स्थित अपने मित्र्ा¨ं की सहायता से मीर रुस्तम अली खाँ क¨ पदच्युत करवाकर तेरह लाख वार्षिक राजस्व के बदल्¨ में अपने पुत्र्ा बलवन्त सिंह के नाम सरकार चुनार, ज©नपुर व बनारस की आमिलदारी अवध के नवाब से प्राप्त कर ली।5 परन्तु एक वर्ष के अन्दर ही 1738 ई0 में उसकी मृत्यु ह¨ गई।6 मंसाराम की मृत्यु के पश्चात् उसका एकमात्र्ा पुत्र्ा बलवन्त सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। प्रारम्भिक दस वषर्¨ं में वह अवध के नवाब क¨ नियमित रूप से राजस्व का भुगतान करता रहा।7 1748 ई0 में जब मुगल बादशाह मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात नये सम्राट अहमदशाह ने सफदरजंग क¨ मुगल साम्राज्य का वजीर मन¨नीत कर दिल्ली बुला लिया त¨ नवाब की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर अपने दूरदर्शी परामर्शदाताअ¨ं की सलाह पर नवाब के सजावल क¨ बनारस से निष्कासित कर दिया। राजस्व का भुगतान र¨क दिया तथा समीपवर्ती भू-भाग¨ं में लूटपाट प्रारम्भ कर दी।8
इस समय नवाब रुहेला-अफगान¨ं से संघर्ष में व्यस्त था। इसलिए वह बलवन्त सिंह के विरुद्ध क¨ई तात्कालिक कदम न उठा सका परन्तु अफगान समस्या से मुक्त ह¨ने के बाद बलवन्त सिंह क¨ दण्डित करने के उद्देश्य से बनारस आया। बलवन्त सिंह ने भागकर परिवार सहित मिर्जापुर की पहाडि़य¨ं में शरण ली।9 अपने विश्वासपात्र्ा लाल खाँ के द्वारा नवाब के पास द¨ लाख उपहार स्वरूप भेजे, इसके साथ ही अपने पिछल्¨ आचरण के प्रति क्षमा याचना की तथा पूर्व निर्धारित राजस्व से द¨ लाख अ©र अधिक राजस्व प्रतिवर्ष देने का प्रस्ताव किया। नवाब ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा नवाब का सजावल पुनः बनारस में रहने लगा।10
अपनी स्थिति क¨ सुदृढ़ करने के लिए बलवन्त सिंह ने गंगा के बायें तट पर बनारस के द¨ मील दक्षिण में स्थित रामनगर क¨ अपने निवास के लिए चुना अ©र वहाँ एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।11 इसके अतिरिक्त 1752 ई0 में परगना भगवत के मुस्लिम जमींदार जमैयत खाँ क¨ भगाकर पतीता के किल्¨ पर, 1753 ई0 में अहर©रा के मुस्लिम जमींदार मलिक फारुख की मृत्यु के बाद अहर©रा के किल्¨ पर तथा उसके भाई मलिक एहसान पर आक्रमण करके लतीफपुर के किल्¨ पर अधिकार कर लिया।12
बनारस के राजा बलवन्त सिंह ने नवाब सफदर जंग की मृत्यु का लाभ उठाकर चुनार के किल्¨ पर अधिकार करने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चुनार के किल्¨दार आगामीर क¨ घूस देकर अपनी अ¨र मिला भी लिया, किन्तु किल्¨ पर अधिकार ह¨ने से पूर्व ही शुजाउद्द©ला क¨ इस षडयन्त्र्ा का पता चल गया। शुजाउद्द©ला ने गाजीपुर के फजल अली खाँ क¨ बुलाया तथा बनारस व अन्य सरकार¨ं का शासन प्रबन्ध भी उसे देने का प्रस्ताव किया। इधर बलवन्त सिंह ने अपनी सहायता के लिए पटना से मराठ¨ं की सेना बुलाई। फजल अली खाँ ने बलवन्त सिंह की इन गतिविधियांेे क¨ जानने के पश्चात उसे समूल नष्ट करने के लिए नवाब से दस लाख रूपये तथा एक वर्ष के लिए दस हजार- घुड़सवार¨ं की मांग की।13 इसी समय दिल्ली पर अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण की सूचना मिली। इस परिस्थिति में मुगल साम्राज्य के वजीर ने नवाब तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तिय¨ं क¨ तत्काल सहायता हेतु आने की मार्मिक अपील की।14 अतः शुजाउद्द©ला ने बनारस के राजा से समझ©ता करना ही उचित समझा जिसके परिणामस्वरूप बलवन्त सिंह ने तत्काल पांच लाख रूपये भेंट स्वरूप नवाब क¨ दिये तथा पांच लाख रूपये अधिक राजस्व वार्षिक देना स्वीकार किया। इस पर नवाब ने राजा क¨ परगना भद¨ही क¨ भी जागीर के रूप में दिया।15 इसके पश्चात् नवाब फैजाबाद ल©टे।16
राजा बलवन्त सिंह उक्त संकट से बचने के पश्चात् पुनः अपनी विस्तारवादी नीति के क्रियान्वयन एवं अपनी शक्ति क¨ बढ़ाने में जुट गये। सर्वप्रथम राजा ने गाजीपुर के फजल अली खाँ क¨ उनकी जागीर से निष्कासित कराने में सफलता मिली तथा गाजीपुर सरकार का भू-भाग भी इजारे में प्राप्त कर लिया।17 उसने 1758-59 ई0 में सूबा बिहार में च©सा की जमींदारी व किला तथा 1759-1760 में सूबा इलाहाबाद के सरकार तरहर में स्थित परगना कन्तित पर भी अधिकार कर लिया।18
यद्यपि बलवन्त सिंह ने नवाब के प्रतिद्वन्दी मुहम्मद कुली खाँ क¨ बन्दी बनाने में सहायता की19 किन्तु द¨न¨ं के सम्बन्ध अच्छे न रहे। नवाब राजा बलवन्त सिंह क¨ बन्दी बनाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा। राजा भी नवाब से सदैव सतर्क रहा इसी कारण जब नवाब बनारस मुगल बादशाह से मिलने आये त¨ बलवन्त सिंह बिन्ध्य की पहाडि़य¨ं मंे चला गया।
जब नवाब बंगाल के पदच्यूत मीर कासिम को पुनः प्रतिष्ठित करना चाहते हैं अ©र मुगल सम्राट अ©र बंगाल के नवाब के साथ बनारस पहुँचे त¨ बलवन्त सिंह पुनः परिवार सहित लतीफ के किल्¨ में भाग गये। ल्¨किन बहुत प्रयास के बाद नवाब की सहायता के लिए 2000 घुड़सवार व 5000 पैदल सैनिक¨ं के साथ नवाब वजीर की सेना में सम्मिलित हुआ। किन्तु राज्य की गतिविधिय¨ं नवाब की दृष्टि में सन्देहास्पद रही। अतएव पटना पर अधिकार करने के प्रयास में असफल ह¨ने पर नवाब ने राजा बलवन्त सिंह क¨ अपनी सेना से अलग करके गाजीपुर के परगना मुहम्मदाबाद में अमला नामक ग्राम में अंग्रेज¨ं के विरूद्ध सुरक्षा म¨र्चा बनाने के लिए भेज दिया। किन्तु बक्सर के युद्ध में नवाब के पराजय का समाचार मिलते ही राजा भी रामनगर ल©ट आये इस समय तक मुगल सम्राट शाह आलम अंग्रेज¨ं की शरण आ चुका था। अतः राजा ने भी अंग्रेज¨ं का संरक्षण प्राप्त करना चाहा। उसने बिहार के नायब नाजिम राजा सिताब राय के माध्यम से मेजर मुनर¨ क¨ बक्सर के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए बधाई सन्देश तथा उपहार के रूप में ग्यारह स¨ने की मुहरें भेजी थी। इलाहाबाद की संधि के पश्चात् भी नवाब, बलवन्त सिंह क¨ दण्डित करने के प्रयास में लगा रहा। किन्तु अंग्रेज¨ं के हस्तक्ष्¨प के कारण उसमें सफल न हुआ अ©र 1770 ई0 तक बलवन्त सिंह का आजीवन अपनी जमींदारी पर अधिकार बना रहा।
राजा बलवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र्ा चेत सिंह, नवाब की इच्छा के विरूद्ध, अंग्रेज¨ं के हस्तक्ष्¨प के कारण बनारस के जमींदार बने। इस परिवर्तन का लाभ नवाब क¨ केवल भेंट के रूप में कुछ धनराशि तथा जमींदारी के वार्षिक वृद्धि के रूप मंे मिला। राजा चेतसिंह का भी नवाब से अच्छा सम्बन्ध नहीं रहा। वह अपनी सुरक्षा एवं अस्तित्व के लिए अंग्रेज¨ं पर अधिक निर्भर करता था अ©र गर्वनर जनरल क¨ अधिक महत्व देता था।
सन् 1773 ई0 में जब वारेन हेस्टिंग्स एक नवाब, र¨हिल्ला, अफगान¨ं की समस्या पर वार्तालाप करने हेतु बनारस आये त¨, राजा के गर्वनर जनरल की प्राथमिकता दी तथा नवाब अपने स्वागत में राजा की अनुपस्थिति पर अत्यधिक क्रुद्ध हुआ। नवाब के गर्वनर जनरल से वार्तालाप में राजा क¨ निष्कासित करने की अनुमति भी मांगी ल्¨किन गर्वनर जनरल ने इसकी अनुमति नहीं दी अपितु उससे ही राजा अ©र उसके उत्तराधिकारिय¨ं के लिए 2248443 रुपये वार्षिक राजस्व की शर्त पर जमींदारी प्रदान करने की सनद दिलवायी।27 इस प्रकार राजा चेतसिंह भी अंग्रेज¨ं के संरक्षण के कारण सुरक्षित रहा अ©र उसने नवाब-वजीर की सनद पाकर वैधानिक रूप से जमींदारी पर वंशानुगत अधिकार प्राप्त कर लिया।
इस प्रकार नवाब शुजाउद्द©ला अ©र बनारस के बलवन्त सिंह व चेतसिंह का सम्बन्ध परस्पर संदेहास्पद रहा, जिसके परिणामस्वरूप अन्त में नवाब का बनारस पर से नियन्त्र्ाण समाप्त ह¨ गया।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 31-32
2. सैय्यद नजमुल रजा रिजवी-18वीं सदी के जमींदार (उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में), पृ0 21
3. वही
4. वही, पृ0 20-21
5. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 203
6. बलवन्तनामा, पृ0 21
7. सैय्यद नजमुल रजा रिजवी- अठारहवीं सदी के जमींदार, पृ0 21
8. बलवन्तनामा, पृ0 21-22
9. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव- अवध के प्रथम द¨ नवाब, पृ0 204
10. वही, पृ0 204-205
11. बलवन्तनामा, पृ0 31
12. सैयद नजमुल रजा रिजवी- अठारहवीं सदी के जमींदार, पृ0 22
13. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव- शुजाउद्द©ला, खण्ड-1, पृष्ठ 33
14. वही
15. बलवन्तनामा, पृष्ठ 38, 39, अ¨ल्ढम, भाग-1 पृष्ठ 102
16. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव- शुजाउद्द©ला, खण्ड-1 पृष्ठ 34
17. बलवन्तनामा, पृष्ठ 40-41, अ¨ल्ढम, भाग-1 पृष्ठ 102
18. वही, पृष्ठ 41-43, वही, पृष्ठ 102-103
19. वही, पृष्ठ 43-46
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