Monday, July 29, 2019

किसी कारणवश इस ब्राह्मण समाज से अलग कर दिये गये वा हो गये। बनारस-रामेश्वर के पास गौतम क्षत्रिय अब तक अपने को कित्थू मिश्र या कृष्ण मिश्र के ही वंशज कहते हैं, जिन मिश्रजी के वंशज सभी गौतम भूमिहार ब्राह्मण हैं और भूमिहार ब्राह्मणों से पृथक् होने का कारण वे लोग ऐसा बतलाते हैं कि कुछ दिन हुए हमारे पूर्वजों को गौतम ब्राह्मण हिस्सा (जमींदारी वगैरह का) न देते थे, इसलिए उन्होंने रंज होकर किसी बलवान क्षत्रिय राजा की शरण ली। परन्तु उसने कहा कि यदि हमारी कन्या से विवाह कर लो, तो हम तुम्हें लड़कर हिस्सा दिलवा देंगे। इस पर उन्होंने ऐसा ही किया और तभी से भूमिहार ब्राह्मणों से अलग होकर क्षत्रियों में मिल गये यह उचित भी हैं। क्योंकि जैसा कि प्रथम ही इसी प्रकरण में दिखला चुके हैं कि, मनु, याज्ञवल्क्यादि सभी महर्षियों का यही सिद्धान्त हैं कि ब्राह्मण यदि क्षत्रिय की कन्या से विवाह कर ले, तो उसका लड़का शुद्ध क्षत्रिय ही होगा। क्योंकि उसका मूध्र्दाभिषिक्त नाम याज्ञवल्क्य ने कहा हैं और 'मूध्र्दाभिषिक्तो राजन्य' इत्यादि अमरकोष के प्रमाण से तथा महाभारत और वाल्मीकि रामायण आदि से मूध्र्दाभिषिक्त नाम क्षत्रिय का ही हैं। मनु भगवान् ने तो :
पुत्रा येऽनन्तरस्त्रीजा: क्रमेणोक्ता द्विजन्मनाम्।
ताननन्तरनाम्नस्तु मातृदोषात्प्रचक्षते॥अ.10॥
इत्यादि श्लोकों में उसे स्पष्ट ही क्षत्रिय बतलाया हैं। ये गौतम क्षत्रिय केवल काशी-रामेश्वर के पास दो-चार ग्रामों में रहते हैं।
इसी तरह किनवार क्षत्रियों की भी बात हैं। वे केवल बलिया जिले के छत्ता और सहतवार आदि दो ही चार गाँवों में प्राय: पाये जाते हैं। जिनके विषय में विलियम इरविन साहब (William Iruine Esqr.) कलक्टर 1780-85 ई. ने बन्दोबस्त की रिपोर्ट (Reports on the Settlement) में लिखा हैं कि किनवार ब्राह्मणों के एक पुरुष
कलकल राय ने किसी क्षत्रिय जाति की कन्या से ब्याह कर लिया। जिससे उनके वंशज भूमिहार ब्राह्मणों से अलग हो गये और उन्हीं पूर्वोक्त दो-चार ग्रामों में पाये जाते हैं। इसी तरह दोनवार क्षत्रिय भी किसी कारणवश दोनवार ब्राह्मणों से अलग कर दिये गये। जो मऊ (आजमगढ़) के पास कुछ ही ग्रामों में पाये जाते हैं, परन्तु वहाँ दोनवार ब्राह्मण लोग 12 कोस में विस्तृत हैं। इसी तरह बरुवार क्षत्रियों को भी जानना चाहिए। वे भी केवल आजमगढ़ जिले के थोड़े से ग्रामों में हैं। परन्तु बरुवार नाम के ब्राह्मण तो उसी जिले के सगरी परगने के 14 कोस में भरे पड़े हुए हैं। सकरवार क्षत्रिय भी उसी तरह किसी कारण विशेष ये सकरवार ब्राह्मणों से विलग हो गये, जो गहमर वगैरह दो-एक ही स्थानों में पाये जाते हैं। जबकि सकरवार नाम के ब्राह्मण गाजीपुर के जमानियाँ परगने और आरा के सरगहाँ परगने के प्राय: 125 गाँवों में भरे पड़े हुए हैं। जो दोनवार अयाचक ब्राह्मण जमानियाँ परगने के ताजपुर और देवरिया प्रभृति बीसों ग्रामों में पाये जाते हैं, उन्हीं में से कुछ लोग किसी वजह से निकलकर क्षत्रियों में मिल गये और गाजीपुर शहर से पश्चिम फतुल्लहपुर के पास दो-चार ग्रामों में अब भी पाये जाते हैं। इसी प्रकार अन्य भी भूमिहार ब्राह्मणों के से नाम वाले क्षत्रियों को जानना चाहिए।
सारांश यह हैं कि सभी दोनवार आदि नाम वाले क्षत्रियों की संख्या बहुत ही थोड़ी हैं, परन्तु इन नामों वाले भूमिहार ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा हैं। इससे स्पष्ट हैं कि इन्हीं अयाचक ब्राह्मणों में से वे लोग किसी कारण से विलग हो गये हैं। इसीलिए उनकी दोनवार आदि संज्ञाएँ और गोत्र वे ही हैं जो दोनवार आदि नाम वाले ब्राह्मणों के हैं। इस संख्या वगैरह का पता हमने स्वयं उन-उन स्थानों में भ्रमण कर और जानकार लोगों से मिलकर लगाया हैं। जिसे इच्छा हो वह प्रथम जाँच कर ले, पीछे कुछ कहे या लिखे। यद्यपि सकरवार क्षत्रिय आगरे के आस-पास तथा अन्य प्रान्तों में बहुत पाये जाते हैं, तथापि उन लोगों का गहमर आदि ग्रामों वाले सकरवार क्षत्रियों से कुछ सम्बन्ध नहीं हैं। क्योंकि ये सब सकरवार कहे जाते हैं और आगरे वाले सिकरीवार; कारण कि उनका आदिम स्थान फतहपुर सिकरी या सीकरी हैं और इनका स्थान सकराडीह हैं। साथ ही, आगरे वालों का गोत्र शाण्श्निडल्य हैं और गहमर वालों का सांकृत, जैसा कि सकरवारों के निरूपण में आगे दिखलायेंगे। अत: सकरवारों को सिकरीवारों से पृथक् ही मानना होगा।
बहुत जगह अनेक अंग्रेजों ने यह लिखा हैं कि जब बहुत से भूमिहार (ब्राह्मणों) और राजपूतों के गोत्र एक ही हैं, जैसे किनवार या दोनवार

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