1908 वह वर्ष है जब मिथिला मिहिर ने प्रकाशन की दुनिया में दस्तक दी । बतौर मासिक शुरू हुई इस पत्रिका ने तीन वर्षों में अपना स्वरूप बदलकर साप्ताहिक कर लिया । 1911 से साप्ताहिक मिथिला मिहिर का प्रकाशन शुरू हुआ हो गया । यह दरभंगा महाराज की मिल्कियत थी । पर 1912 तक आते-आते लगने लगा कि केवल मैथिली भाषा की पत्रिका का चलना शायद मुश्किल हो । इसलिए पत्रिका को द्विभाषी बनाकर इसमें हिंदी को भी शामिल कर लिया गया और मिथिला मिहिर मैथिली और हिंदी दोनों की पत्रिका हो गई । मिथिला मिहिर के साथ किए गए निरंतर प्रयोगों से यह साफ जाहिर है कि प्रबंधकों का आत्मविश्वास डगमगाने लगा था और दो साल 1930-31 में इसमें अंग्रेजी मिलाकर इसे त्रिभाषी कर दिया गया । आजादी से पूर्व के इतिहास में दो ही पत्रिकाएँ ऐसी मिलती है जो द्विभाषी से आगे त्रिभाषी अवधारणा लेकर सामने आई । इसके पूर्व राममोहन राय बंगाल में बंगदूत के साथ अभिनव प्रयोग कर चुके थे, जिसमें एक साथ अंग्रेजी, बँगला, फारसी और हिंदी के प्रयोग किए गए थे । पर 1930-31 के बाद मिथिला मिहिर अपने द्विभाषी स्वरूप में लौट आया और 1954 तक निर्बाध चलता रहा
Monday, July 8, 2019
1908 वह वर्ष है जब मिथिला मिहिर ने प्रकाशन की दुनिया में दस्तक दी । बतौर मासिक शुरू हुई इस पत्रिका ने तीन वर्षों में अपना स्वरूप बदलकर साप्ताहिक कर लिया । 1911 से साप्ताहिक मिथिला मिहिर का प्रकाशन शुरू हुआ हो गया । यह दरभंगा महाराज की मिल्कियत थी । पर 1912 तक आते-आते लगने लगा कि केवल मैथिली भाषा की पत्रिका का चलना शायद मुश्किल हो । इसलिए पत्रिका को द्विभाषी बनाकर इसमें हिंदी को भी शामिल कर लिया गया और मिथिला मिहिर मैथिली और हिंदी दोनों की पत्रिका हो गई । मिथिला मिहिर के साथ किए गए निरंतर प्रयोगों से यह साफ जाहिर है कि प्रबंधकों का आत्मविश्वास डगमगाने लगा था और दो साल 1930-31 में इसमें अंग्रेजी मिलाकर इसे त्रिभाषी कर दिया गया । आजादी से पूर्व के इतिहास में दो ही पत्रिकाएँ ऐसी मिलती है जो द्विभाषी से आगे त्रिभाषी अवधारणा लेकर सामने आई । इसके पूर्व राममोहन राय बंगाल में बंगदूत के साथ अभिनव प्रयोग कर चुके थे, जिसमें एक साथ अंग्रेजी, बँगला, फारसी और हिंदी के प्रयोग किए गए थे । पर 1930-31 के बाद मिथिला मिहिर अपने द्विभाषी स्वरूप में लौट आया और 1954 तक निर्बाध चलता रहा
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