मनुष्य और पशु(जानवर ) में क्या फर्क है ?
दोनों , खाते-पिते , सोते-जागते ,रोते-हँसते, गाते चलते फिरते है दोनों ही समूह में ,तो कभी अकेले, तो कभी परिवार जिसे हम जानवरों का झुण्ड कहते है में रहते है दोनों ही अपनी संतानों की परवरिश अपने अपने तरीके से करते भी है ..चाहे गाय , भेंस , शेर हाथी , चूहा ...आदि आदि ....और उन्हें भी दर्द होता है फिर उनमे और हममे क्या फर्क है? कहने को तो इन्सान भी सामाजिक जानवर है ......
अगर गौर करे तो सबसे बड़ा फर्क होता है ...की जानवरो का कोई धर्म नहीं होता .....और इक जानवर अपने ज्ञान से दुसरे जानवर का भला नहीं कर पाता....
अरे यह क्या बात हुई ..यही तो सबसे बड़ी बात है जो इक इन्सान और जानवर को जुदा करती है .....
जरा अपने घर में शांत भाव से बैठे और अपने आप से लेकर अपने आस पास वाली हर चीज पे निगाह डाले ....जैसे कपडे , घडी , फर्नीचर , मकान , कंप्यूटर आदि आदि .....अब जरा सोचे ....की इन सब को बनाने के लिए कितने इंसानों का दिमाग ..कितने सालो की मेहनत और कितने सयोंजन से बना होगा ....
अगर इक इन्सान अकेला कुछ बनाना चाहे तो उसके लिए यह लगभग असंभव है ...जैसे घर ..किसी ने दरवाजे , किसी ने प्लंबिंग , किसी ने इलेक्ट्रिसिटी तो किसी ने कुछ बनाया और मिल जुल कर इक ऐसा ज्ञान तैयार हुआ ..जिसको इक आम आदमी भी प्रयोग में ला सके ....
इसमें ना कोई उम्र , जात पात , ना ही किसी देश और राज्य की सीमा की बाध्यता थी ...हो सकता है कुछ सामान और डिजाईन हिंदुस्तान से बहार के भी हो ....
तभी तो मनुष्य अपने इन सब सम्मिलित ज्ञान के प्रयोग से जानवर पर भारी पड़ा ....वरना इन्सान तो सबसे कमजोर जानवर है ....उसका बच्चा तो अपनी परवरिश भी खुद नहीं कर सकता ....उसे तो हर चीज इस जन्म में शुरू से सीखनी पड़ती है ...
अब फेसबुक या गूगल अमेरिका वालो ने खोजा पर मजा तो इंडिया या चाइना या सारी दुनिया में बैठा हर सक्श ले रहा है ...
पर बेचारे जानवरों में यह कंहा ...अब अमेरिकी गाय तो इंडिया की गाय से फोन पे बात करके नहीं कह सकती ...अरे तू ..वोह वाली घास खा और ज्यादा दूध दे ले ...या साइबेरिया का सफेद टाइगर , हमारे बंगाल टाइगर से सेल फ़ोन पे बात करके... यह तो नहीं कह सकता की ..अरे भाई ....कुछ शिकारी नए जाल लेकर आये है ....इसलिए आज कल घर से बहार निकलना खतरे से खाली नहीं ....
तो ..इन सब बातो की लिखने का मतलब था ....की मोटे मोटे शब्दों में बतलाना की ....आदमी अपने ज्ञान को कैसे आपस में बांट कर ..कैसे ...इक समाज , इंडस्ट्री बना कर इस मनुष्य के उथान में योगदान देता आया है....
पर जब अध्यात्म की बात आती है ...तो इन्सान ....उसे अपने तक सीमित कर लेता है ....वोह किसी को यह राज नही बताना चाहता है ...
दोनों , खाते-पिते , सोते-जागते ,रोते-हँसते, गाते चलते फिरते है दोनों ही समूह में ,तो कभी अकेले, तो कभी परिवार जिसे हम जानवरों का झुण्ड कहते है में रहते है दोनों ही अपनी संतानों की परवरिश अपने अपने तरीके से करते भी है ..चाहे गाय , भेंस , शेर हाथी , चूहा ...आदि आदि ....और उन्हें भी दर्द होता है फिर उनमे और हममे क्या फर्क है? कहने को तो इन्सान भी सामाजिक जानवर है ......
अगर गौर करे तो सबसे बड़ा फर्क होता है ...की जानवरो का कोई धर्म नहीं होता .....और इक जानवर अपने ज्ञान से दुसरे जानवर का भला नहीं कर पाता....
अरे यह क्या बात हुई ..यही तो सबसे बड़ी बात है जो इक इन्सान और जानवर को जुदा करती है .....
जरा अपने घर में शांत भाव से बैठे और अपने आप से लेकर अपने आस पास वाली हर चीज पे निगाह डाले ....जैसे कपडे , घडी , फर्नीचर , मकान , कंप्यूटर आदि आदि .....अब जरा सोचे ....की इन सब को बनाने के लिए कितने इंसानों का दिमाग ..कितने सालो की मेहनत और कितने सयोंजन से बना होगा ....
अगर इक इन्सान अकेला कुछ बनाना चाहे तो उसके लिए यह लगभग असंभव है ...जैसे घर ..किसी ने दरवाजे , किसी ने प्लंबिंग , किसी ने इलेक्ट्रिसिटी तो किसी ने कुछ बनाया और मिल जुल कर इक ऐसा ज्ञान तैयार हुआ ..जिसको इक आम आदमी भी प्रयोग में ला सके ....
इसमें ना कोई उम्र , जात पात , ना ही किसी देश और राज्य की सीमा की बाध्यता थी ...हो सकता है कुछ सामान और डिजाईन हिंदुस्तान से बहार के भी हो ....
तभी तो मनुष्य अपने इन सब सम्मिलित ज्ञान के प्रयोग से जानवर पर भारी पड़ा ....वरना इन्सान तो सबसे कमजोर जानवर है ....उसका बच्चा तो अपनी परवरिश भी खुद नहीं कर सकता ....उसे तो हर चीज इस जन्म में शुरू से सीखनी पड़ती है ...
अब फेसबुक या गूगल अमेरिका वालो ने खोजा पर मजा तो इंडिया या चाइना या सारी दुनिया में बैठा हर सक्श ले रहा है ...
पर बेचारे जानवरों में यह कंहा ...अब अमेरिकी गाय तो इंडिया की गाय से फोन पे बात करके नहीं कह सकती ...अरे तू ..वोह वाली घास खा और ज्यादा दूध दे ले ...या साइबेरिया का सफेद टाइगर , हमारे बंगाल टाइगर से सेल फ़ोन पे बात करके... यह तो नहीं कह सकता की ..अरे भाई ....कुछ शिकारी नए जाल लेकर आये है ....इसलिए आज कल घर से बहार निकलना खतरे से खाली नहीं ....
तो ..इन सब बातो की लिखने का मतलब था ....की मोटे मोटे शब्दों में बतलाना की ....आदमी अपने ज्ञान को कैसे आपस में बांट कर ..कैसे ...इक समाज , इंडस्ट्री बना कर इस मनुष्य के उथान में योगदान देता आया है....
पर जब अध्यात्म की बात आती है ...तो इन्सान ....उसे अपने तक सीमित कर लेता है ....वोह किसी को यह राज नही बताना चाहता है ...
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