खजुहा के लिए एक नाम फतूहाबाद भी प्रसिद्व है और यहाँ के शुक्ल (उपजाति) ब्राम्हण अपने को फतूहाबादी शुक्ल कहते हैं। ‘कान्यकुब्ज दर्पण‘ जो एक पुरानी पोथी है, उसमें इसका उल्लेख है। इस पोथी के कुछ पन्ने जिनमें संवत् और लेखक का नाम अप्राप्य है मैने प्रघान सम्पादक डाॅ0 ओम प्रकाश अवस्थी के पास देखी थी। पुस्तक की भाषा, लिपि, लिखने का ढंग काफी पुराना है। ‘गणपति पुरवा से निकसि कै फतूहा जाइ बसे गणपति के वंश को गंगाराम ने फतूहाबाद में बसाया गंगाराम डोमनपुर से निकसि कै खजुहा में वसे देवी छिन्नमस्ता के उपासक रहे और अकबर बादशाह मुल्क फतेह करके खजुहा के पास वास किया और गंगाराम को बुलाया कुछ सिद्वता का प्रताप भी अकबर बादशाह को देखाया तब सिद्वता को देखकर खजुहा का नाम फतूहाबाद रखा तब से फतूहाबादी कहलाये। सांकृत गोत्र शुक्लों का असामी स्थानी विश्वा लिख्ते।
गणपति फतूहा के 20
गंगाराम फतूहा के 20
खजुहा के फतूहाबाद नाम की पुष्टि और भी है। असोथर के राजा भगवन्त राय खीची के यहाँ एक चतुरेस नाम का कवि था जिसने गाजीपुर से कुछ स्थानों की दूरी कवित्त के माध्यम से बताई हैः-
आठ कोस असनी भिटौरा है नवै कोस
पाँच कोस किशुनपुर एकडला के पास है।
तीस कोस कानपुर फतूहाबाद बारा कोस
बीस कोस चित्रकूट जहां रामदास हैं।
तीस कोस प्रागराज काशी है साठ कोस,
डेढ़ को स सूर्य सुता करत पाप नास है।
खीची भगवन्तराय भूपं मेरो चतुरेश नाम
गाजीपुर परगना असथोर में वास है।
प्रतीत ऐसा होता है कि अकबर का दिया फतूहाबाद और औरंगजेब का दिया नाम औरंगाबाद सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मोह तथा परम्परा संरक्षण के कारण चल नहीं सके। जनश्रुति में जिसके प्रति रागात्मकता विद्यमान थी वह नाम परिर्वतन के पगति उत्सुक नहीं थी
गणपति फतूहा के 20
गंगाराम फतूहा के 20
खजुहा के फतूहाबाद नाम की पुष्टि और भी है। असोथर के राजा भगवन्त राय खीची के यहाँ एक चतुरेस नाम का कवि था जिसने गाजीपुर से कुछ स्थानों की दूरी कवित्त के माध्यम से बताई हैः-
आठ कोस असनी भिटौरा है नवै कोस
पाँच कोस किशुनपुर एकडला के पास है।
तीस कोस कानपुर फतूहाबाद बारा कोस
बीस कोस चित्रकूट जहां रामदास हैं।
तीस कोस प्रागराज काशी है साठ कोस,
डेढ़ को स सूर्य सुता करत पाप नास है।
खीची भगवन्तराय भूपं मेरो चतुरेश नाम
गाजीपुर परगना असथोर में वास है।
प्रतीत ऐसा होता है कि अकबर का दिया फतूहाबाद और औरंगजेब का दिया नाम औरंगाबाद सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मोह तथा परम्परा संरक्षण के कारण चल नहीं सके। जनश्रुति में जिसके प्रति रागात्मकता विद्यमान थी वह नाम परिर्वतन के पगति उत्सुक नहीं थी
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