Tuesday, September 18, 2018

अंधराठाढ़ी प्रखंड में अवस्थित हरना गॉंव में  कमला नदी के किनारे कन्दर्पी  घाट अवस्थित है जहाँ कभी भयंकर युद्ध हुआ था जिसे इतिहास कन्दर्पी घाट की  लड़ाई के नाम से जानता है। यह युद्ध राजस्व न चुकाने के कारण हुआ था। मुग़ल बादशाह के प्रतिनिधि शासक अली वर्दी खां ने तीसरी बार मिथिला पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में नरहन राज्य के राजा केशव नारायण के पुत्र राजा अजीत नारायण ने महाराज दरभंगा का साथ दिया था। अली वर्दी  खां के इजाजत से १७५० ई० मिथिलांचल पर पटना के सूबेदार राजा राम नारायण के सेनापति महथा की अगुआई में महाराज दरभंगा पर चढ़ाई की थी। यह लड़ाई हरना होकर बह रही नदी बलान के किनारे कंदर्पी धार के मैदान में हुई।जहाँ अली वर्दी खां की सेना की दाँत खट्टे कर दिए गए थे।

हरना में हुए युद्ध की प्रमाणिकता

मिथिला के प्रसिद्ध लाल कवि की कविताओं में उपलब्ध युद्ध वर्णन  से भी स्पस्ट होता है कि हरना में ही वह युद्ध हुआ था जिसमें मिथिला वासियों की जीत हुई थी। इस लड़ाई का जिक्र गुलाम हुसैन सलीम की किताब ”रियास-ए-सलातीन” में भी मिलता है। अली वर्दी खां और नरेंद्र सिंह के बीच की कंदर्पी घाट की लड़ाई को याद कर आज भी मिथिलांचल के लोगों का सीना तन जाता है।उल्लेखनीय है कि महाराज नरेंद्र सिंह और उनके वंशज वंश की मिथिला की राजधानी झंझारपुर में ही थी वह स्थान झंझारपुर थाना के सटे पश्चिम में अवस्थित है।

भीषण रक्तपात

हरना की कंदर्पी घाट की लड़ाई में इतने यज्ञोपवीतधारियों की  शहादत  हुईकि तौलने पर ७२ सेर यज्ञोपवीत प्राप्त हुआ। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने गैर यज्ञोपवीत धारियों की शहादत हुई होगी। यही कारण  है कि मिथिला में  जब कोई पत्र लिखा जाता था तो उसके ऊपर ७२ लिखा जाता था। अंधरा गॉव में केवट जाति  के बहुत लोग,जो राजा नरेंद्र सिंह के सैनिक थे, मारे गए थे उन सैनिकों की विधवाओं  को सांत्वना देने रानी पदमावती  आयी थी। जहां रानी ने एक तालाब भी खोदवाई थी जो रानी पोखर के नाम से जाना जाता है। रानी ने विधवाओं को आशीर्वाद भी दिया था जो आज भी फलित हो रहा है। उसी सैनिक वंश में अंधरा निवासी पूर्व राज्य मंत्री स्व० रामफल चौधरी का जन्म हुआ था।हरना गॉव के कंदर्पी घाट कि लड़ाई में शहीद हुए लोगों के जनेऊ पर महाराज दरभंगा रामेश्वर सिंह ने नरेंद्र विजय नाम की भगवती की मूर्ति की स्थापना की थी जो नदी के कटाव  में बह गयी। जब वह मंदिर वर्वाद हो गया तो हरना के प्रसिद्ध हिन्दू-मुस्लिम ने हरना में उसी भगवती का दूसरा मंदिर बनाकर मूर्ति की पुनः स्थापना की जो आज भी विद्यमान है। यह उस लड़ाई का जीता जागता प्रमाण है।हरना की लड़ाई का विस्तृत मिथिला तत्व विमर्श में मिलता है इसके अतिरिक्त कंदर्पी घाट की लड़ाई नामक नाटक का अनेको बार मंचन भी किया गया जो यदा कदा अभी भी मंचित किया जाता है।
सर्व विदित है कि मुग़ल वंशीय बादशाह अकबर महान से महामहिम महेश्वर ठाकुर को मिथिला का राज्य १५५७ ई ० में प्राप्त हुआ था। उस वंश के २०वें और २१वे राजाओं का जन्म झंझारपुर में ही हुआ। २२वें  महाराजाधिराज श्री कामेश्वर सिंह जी का मुंडन संस्कार हररी ग्रामस्थल-  चन्देश्वरनाथ महादेव  स्थान में ही हुआ था जिसकी स्थापना विद्यापति के पितामह  ज्येष्ठ भ्राता चण्डेश्वर ठाकुर ने की थी। नरेंद्र सिंह पराक्रमी और शूरवीरथे |  उन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़ी थी जिनमें उनकी विजय हुईं थी। उनमें कंदर्पी घाट ,बनौली  एवं बेतिया की लड़ाई प्रसिद्ध है।राजा नरेंद्र सिंह ने पटना के सूबेदार  को कर देना बंद कर दिया। बार – बार चेतावनी देने पर भी जब उन्होंने कर नहीं दिया तब पटना के सूबेदार विशाल सेना के साथ नरेंद्र सिंह  राज्य पर चढ़ाई करने और लड़ने के लिए झंझारपुर के समीप  आ गए। राजधानी को बचने के उद्देश्य से लड़ाई का स्थल महाराजा ने हरना के मैदान की दरिया किनारे की जगह को चुना और वहीं लड़ाई हुई जिसे कंदर्पी घाट की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। अंततः राजा नरेंद्र सिंह की विजय हुई और मुग़ल सेना को परास्त होना पड़ा।

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