Friday, October 19, 2018

प्रश्न- "मयूर भट्ट" कौन थे ? उत्तर - तीसरी चौथी शताब्दी के आस पास उत्तर भारत के "मयूर शर्मा" नामक वत्स गोत्री ब्रह्मक्षत्रि ब्राह्मण बालक अपनी शिक्षा दीक्षा हेतु दक्षिण भारत के कांचीपुरम नामक स्थान में रह रहे थे। एक दिन उन्हें वहां के स्थानीय पल्लव राजा के अधिकारी से किसी बात को ले के झरप हो गयी। जिसके फलस्वरूप चौथी शती ईसवी के मध्य (लगभग 345 ई.) प्रतिशोधस्वरूप कर्नाटक में "कदम्ब राजवंश" नामक एक छोटा सा राज्य "मयूर शर्मा" द्वारा स्थापित किया गया था। इस राज्य की राजधानी वैजयंती अथवा बनवासी थी। समुद्रगुप्त की दक्षिण विजय से संत्रस्त पल्लव इस राज्य की स्थापना को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप न कर सके और पल्लवों को मयूर शर्मा द्वारा उचित जबाब मिला। इसके बाद मयूर शर्मा ने मानव गोत्री हरित कुल के क्षत्रिय"कंग वर्मन" नामक अपने प्रिय मुँहबोले पुत्र शम शिष्य को कदम्ब राज का राजा बनाया।उसके बाद उन्होंने लगभग 144 गावँ की जमींदारी वहां के स्थानीय आयचक ब्राह्मणों को देके उत्तरभारत के गोरखपुर के इलाके में आगये। करीब 300 वर्ष बाद इनके वंश में 8वीं पीढ़ी में "मयूर शर्मा"द्वितीय नामक बालक का जन्म हुआ,जिनके विद्वता और काव्य प्रतिभा के कारण अयोध्या राजा द्वारा भट्ट उपाधि मिली और ये "मयूर भट्ट" कहलाए। मयूर भट्ट अयोध्या नरेश के सेनानायक थे और विद्वता के धनी भी। उस समय सर्वसमति और सिद्धों के निर्णय के आधार प क्षत्रिय वंश वृद्धि हेतु 12 ऋषी कुल सिद्ध ब्रह्मक्षत्रि ब्रह्मिनो का विवाह 12 क्षत्राणियों से हुआ था जिससे 12 ऋषि वंशी क्षत्री वंश उतपन्न हुए थे। इसी में एक विवाह "मयूर भट्ट " का अयोध्या राजा की कन्या सूर्यप्रभा से हुआ जिससे क्षत्री विशेन वंश निकला। इसी सन्धर्व में अयोध्या नरेश के वसिष्ठ गोत्री कुलपुरोहित के शर्तों में बंध राजपुरोहित की कन्या नागसेनी से मयूर भट्ट का दूसरा विवाह हुआ जिससे नागसेन उतपन्न हुए और ब्राह्मण वर्ण के प्याशी के मिश्रो का वंश शुरू हुआ। मयूर भट्ट का तीसरा विवाह कन्नौज के भारतवाज गोत्री ब्रह्मक्षत्रि अयाचक ब्राह्मण पल्लव राज वंश के महेन्द्रपाल की कन्या हय कुमारी से विवाह हुआ जिससे ब्रह्मक्षत्रि वत्स गोत्री सोनभद्री भुमिहार उतपन्न हुए। फिर महेन्द्रपाल ने मयूर भट्ट को औरंगाबाद,अरवल वाले मगध के क्षेत्र का उन्हें राज दहेज रूप में दे

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