Friday, October 19, 2018

यूपी में बागपत के नजदीक सादिकपुर सनौली में हुई खुदाई ने सनातन संस्कृति की निरंतरता और ऐतिहासिकता को एक बार फिर पुष्ट किया है. इस खुदाई में मिली चीजों से सनातन संस्कृति अब तक के ज्ञात इतिहास से भी प्राचीन सिद्ध होती है.

किस सभ्यता से जुड़ा है सनौली ?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका पांच हजार साल पहले हड़प्पा सभ्यता के बाद बाड़ा संस्कृति के केंद्र के तौर पर जाना जाता है. सनौली  में खुदाई के दौरान जिस जगह का पता चला उसे शाही कब्रगाह माना जा सकता है. इस कब्रगाह में कुछ शव ताबूत में मिले हैं जबकि कुछ को जलाने के बाद उनकी हड्डियों को तांबे की तलवार, सोने के आभूषण और नक्काशीदार कंघी के साथ रखा गया है. इससे ये जाहिर हो रहा है कि तत्कालीन समाज भी अलग अलग वर्गों में बंटा था और व्यक्ति की सामाजिक या वंशानुगत हैसित के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार किया जाता था.

क्या मिला सनौली में ?
खेत की जमीन से महज दस सेंटीमीटर नीचे मिली ये सभ्यता कांस्य युगीन थी.यहां खुदाई के दौरान कई कब्रें, तीन तलवारें, दो खंजर, एक ढाल, एक मशाल और एक प्राचीन हेलमेट भी मिला है. जिसके बारे में जानकारों का कहना है कि यह सभ्यता मेसोपोटामिया जैसी समृद्ध रही होगी. महाभारत के दौरान पांडवों ने कौरवों से जो पांच गांव मांगे थे उनमें एक गांव बागपत भी था. इसलिए इसे महाभारत के समय की सभ्यता से भी जोड़ा जा रहा है.

कैसा था तब का समाज ?
इस पुरातात्विक खुदाई से पांच हजार साल पहले इस स्थान पर विकसित सभ्यता की कई परतें खुलने की संभावना है. यहां मिले शव संकेत देते हैं कि तत्कालीन समाज में भी वर्ग विभाजन था और अलग-अलग सामाजिक हैसियत के लोग इसका हिस्सा थे. इसीलिए कई शव जलाकर फिर उनकी हड्डियों को दबाया जाता था. कई शवों को सीधे ताबूत में रखा गया है. इन शवों के साथ मिलने वाला सामान उनकी उस वक्त की सामाजिक हैसियत को भी बयां करते हैं. इस लिहाज से सनौली की पुरातात्विक खुदाई मील का पत्थर साबित हो सकती है.

पहली बार खुले इतने राज़
सनौली में खुदाई के दौरान पहली बार ताबूत में रखी इतनी पुरानी कब्रें मिली हैं. यह सब कब्रें लकड़ी के मजबूत ताबूत में बंद हैं. इनकी दीवारों पर तांबे की प्लेटिंग है, जिस पर तमाम तरह की आकृतियां बनाई गई हैं. इससे पहले मिले ताबूत में सामान्यत: लोहे की किलो का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन इन ताबूत में तांबे की कील इस्तेमाल की गई है. इसके पास ही एक गढ्ढे में दो रथ, ताबूत के सिरहाने में मुकुट जैसी चीज के अवशेष भी मिले हैं.यही नहीं, ताबूत के पास तीन तलवारें, दो खंजर, एक ढाल, एक मशाल और एक प्राचीन हेलमेट भी मिला है.खुदाई के दौरान एक महिला का कंकाल भी मिला है, जिसका ताबूत पूरी तरह से गल चुका था. इस महिला के सिरहाने एक सोने का बीड के साथ चांदी का कुछ सामान, सींग का बना कंघा और एक तांबे का आइना भी मिला


खुदाई में मिला महिला का कंकाल
रथ का मिलना इतना अहम क्यों ?
वैसे तो राखीगढ़ी, कालीबंगन और लोथल से पहले भी कई कब्रगाह खुदाई के दौरान मिलें हैं लेकिन ये पहली बार है जब कब्रगाह के साथ रथ भी मिला है. रथ मिलने के बाद एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे महाभारत काल और हड़प्पा काल में घोड़े की उत्पत्ति को लेकर भी कई नए तथ्य सामने आ सकते हैं. उस समय मेसोपोटामिया, जॉर्जिया और ग्रीक सभ्यता में रथ पाए जाने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन सनौली की खुदाई से जाहिर है कि इन सभ्यताओं की तरह ही भारतीय उप महाद्वीप में भी लोग रथों का प्रयोग करते थे. इससे एक दूसरा तथ्य भी निकल के आता है कि पूर्व लौह युग में हम लोग लड़ाकू प्रजाति के थे. एएसआई डॉ एस के मंजुल का कहना है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह पहला मामला है, जहां पूरा रथ मिला है। इसके पहले रथ कहीं भी खुदाई में नहीं मिले हैं.

रथ कौन खींचता था ?
एक बड़ा सवाल ये है कि अगर उस वक्त रथ था तो इसे खींचने के लिए किस जानवर का उपयोग किया जाता था - बैल या घोड़ा?  पुरातत्वविदों का मानना है कि ज़्यादा संभावना है कि इसे खींचने के लिए घोड़े का प्रयोग किया जाता रहा होगा. खास बात है कि इस रथ की बनावट बिल्कुल वैसी ही है जैसे इसके समकालीन मेसोपोटामिया आदि दूसरी सभ्यताओं में था. इस रथ के पहिए की बनावट ठोस हैं इसमें तीलियां नहीं हैं. रथ के साथ पुरातत्वविदों को मुकुट भी मिला है जिसे रथ की सवारी करने वालों द्वारा पहना जाता रहा होगा.

पहली बार रथ का जिक्र
प्रथम वेद ऋग्वेद में पहली बार रथों का वर्णन मिलता है जिससे सिद्ध होता है कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय उप महाद्वीप में रथ थे. ऋग्वेद में देवताओं जैसे उषा और अग्नि द्वारा रथ की सवारी का वर्णन है. अगर इतिहास में जाएं तो हम पाते हैं कि मेसोपोटामिया, उत्तरी कॉकेशस व सेंट्रल यूरोप में 400 ईसा पूर्व में पहिए वाले वाहनों का प्रमाण मिलता है. लेकिन अभी भी यह तय नहीं हो पाया है कि पहली बार किस सभ्यता ने पहिए वाले वाहनों का निर्माण किया.

कैसे फली फूली ये सभ्यता
ये संस्कृति हड़प्पा संस्कृति की समकालीन मानी जा रही है. हड़प्पा मूलत: शहरी संस्कृति थी और उसके खत्म होने के दो कारण माने जाते हैं. पहला जलवायु परिवर्तन और दूसरा पानी की कमी. पानी खोजते हुए अलग-अलग वर्ग हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सरस्वती, काली, हिंडन और यमुना नदी के किनारे बसें होंगे. सनौली में मिली ये संस्कृति ग्रामीण संस्कृति के तौर पर पनपी होगी और काफी समृद्ध थी.

अब आगे !
इससे पहले साल 2005 यहीं मिले 126 शवों के डीएनए से पता चला है कि ये करीब पांच हजार साल पहले के हैं. सनौली में मिले शवों के अवशेषों को लाल किला लाया जा रहा है. लाल किले में इनका डीएनए और कार्बन डेटिंग परीक्षण किया जाएगा

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