गौतम बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक कहना और मानना उनके साथ अन्याय करने जैसा ही है । भगवान बुद्ध एक सुधारवादी दृष्ष्टिकोण लेकर चले थे , उनका पूरा जीवन तत्कालिक सामाजिक विकृति के सुधर पर केंद्रित रहा ,न की किसी नये धर्म का निर्माण कर समाज को पृथक करने का था । बुद्ध जोड़ने आये थे फिर कोई अलग धर्म बना कर समाज को तोड़ने और कमजोर करने का कार्य बुद्ध कैसे कर सकते थे । "भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के 150 वर्षों बाद उनके ब्राह्मण अनुवाइयो ने बुद्ध के संदेशों को धर्म के रूप में परिभाषित कर एक अलग धर्म और व्यवस्था की नींव डालने का प्रयास किया "
महायान(नार्गाजुन, अश्वघोष)
थेरबाड (बुद्धघोष)
वज्रयान(पद्मसंभव)
तिब्बत बौद्ध(पद्मसंभव )
चीना बौद्ध(कुमारजीव )
जेन बौद्ध(बुद्धिधर्मा)
कुंग फु(कुमारजीव)
वे ऑफ बुद्धिस्त्व(शांतिदेव)
बुद्धचरित (अश्वघोष Asvaghosa )
हरिता धम्मसुत्रा (हरित)
शून्यता अवधारणा (नार्गाजुन)
सेकेँड बुद्धा (बसुबंधु)
यमनतका तंत्र (कनका)
वज्रयान-दवान्ताऊ-विकास्ना (ज्नानश्रीमित्रा )
यह सभी ब्राह्मण ही थे , और बौद्ध दर्शन के उत्थान में जितना इनका योगदान है उतना किसी का नही , अगर कहे की बौद्ध धर्म का कॉन्सेप्ट इनका ही था तो यह अतिश्योक्ति नही होगी । क्यों की अगर इन ब्राह्मणों और इनके योगदान को बौद्ध दर्शन से अलग करते है तो इस दर्शन में कुछ भी नही बचता क्यों की तब न बुद्ध समझ में आयेंगे न उनका दर्शन।
आप अध्ययन करे तो पायेंगे की गौतम बुद्ध के प्रथम 5 शिष्य में 4 ब्राह्मण , बुद्ध के प्रिय शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण , प्रथम द्वितीय तृतीय बौद्ध संगतियों के आयोजक ब्राह्मण , बौद्ध विहारों के लिए सर्वाधिक भूमि दान करने वाले ब्राह्मण , बुद्ध से पूर्व 27 बौद्धों में 7 ब्राह्मण, सभी बौद्ध साहित्यों के रचनाकार ब्राह्मण , बौद्ध धम्म के सभी सम्प्रदायो यथा महायान हीनयान और बजरायन के सूत्रधार भी ब्राह्मण ,,
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