Wednesday, October 10, 2018

हिन्दू धर्म.. सनातन धर्म के ही दूसरा नाम है….. और ये किसी फुहम्मद जैसे जाहिल और लुटेरे द्वारा प्रतिपादित नहीं है…!

हिन्दू धर्म ग्रंथों में लिखे एक-एक लाइन का वैज्ञानिक आधार है…. बशर्ते उसे समझने की अक्ल होनी चाहिए…..!

अब चूँकि  सेकुलरों के पास दिमाग होता ही नहीं है … इसीलिए उन्हें हर बात काल्पनिक ही लगती है….. अथवा हो सकता है कि सेकुलरों को ये भी लगता हो कि….. धरती पर हर लोग सेकुलरों से जाहिल ही भरे पड़े हैं…!

पुराणोँ को ध्यान से पढ़ने के पश्चात मालूम चलता है कि इसमेँ अधिकांश बातें वैज्ञानिक और प्राकृतिक है .. जिसे कहीं मानवीकरण के द्वारा तो कहीं रूप-अलंकार के द्वारा बताया गया है।

उदाहरण के तौर पर… भगवान विष्णु के सभी अवतारों को हम आधुनिक क्रमिक विकास से संबंधित कर सकते हैं …! विष्णु अवतार के ये विभिन्न अवतार हमें धरती पर प्रभुत्व वाले जीवोँ की जानकारी देते हैं ….. जो धरती पर विभिन्न कालों में राज किया करते थे ।
हिंदुत्व के सभी वर्गों में स्वीकृत की गई, धर्म की सार्वभौमिक व्याख्या, मनुस्मृति (६। ९२) में प्रतिपादित धर्म के ११ लक्षण हैं – अहिंसा, धृति (धैर्य), क्षमा, इन्द्रिय-निग्रह, अस्तेय (चोरी न करना), शौच (शुद्धि), आत्म- संयम, धी: (बुद्धि), अक्रोध, सत्य, और विद्या प्राप्ति | Vedic Religion in Brief में इन्हें विस्तार से समझाया गया है |

कुछ भी और सबकुछ जो इन ११ लक्षणों का उल्लंघन करे या इनको दूषित करे वह हिंदुत्व या हिन्दू धर्म नहीं है |

 धर्म की दूसरी कसौटी हैं वेद| सभी हिन्दू ग्रंथ सुस्पष्ट और असंदिग्धता से वेदों को अंतिम प्रमाण मानते हैं |

अतः कुछ भी और सबकुछ जो वेदों के विपरीत है, धर्म नहीं है |

मूलतः ऊपर बताई गई दोनों कसौटियां, अपने आप में एक ही हैं किन्तु थोड़े से अलग अभिगम से |

योगदर्शन में यही कसौटी थोड़ी सी भिन्नता से यम और नियमों के रूप में प्रस्तुत की गई है –

यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य (आत्म-संयम और शालीनता), अपरिग्रह (अनावश्यक संग्रह न करना)|

नियम – शौच (शुद्धि), संतोष, तप (उत्तम कर्तव्य के लिए तीव्र और कठोर प्रयत्न), स्वाध्याय या आत्म- निरिक्षण,ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण)|

४. हिंदुत्व के प्रत्येक वर्ग द्वारा अपनाई गई, इन आधारभूत कसौटियों को स्पष्ट करने के बाद, हम इन आक्षेपों का जवाब बड़ी ही आसानी से दे सकते हैं क्योंकि अब हमारा दृष्टिकोण बिलकुल साफ़ है – हम उनका प्रतिवाद नहीं करते बल्कि उन्हें सिरे से नकारते हैं|. हिन्दू धर्म के मूलाधार वेदों में – इन में से एक भी कथा नहीं दिखायी देती |

२. अधिकांश कथाएं पुराणों, रामायण या महाभारत में पाई जाती हैं और वेदों के अलावा हिन्दू धर्म में दूसरा कोई भी ग्रंथ ईश्वर कृत नहीं माना जाता है| इसके अतिरिक्त, यह सभी ग्रंथ (पुराण,रामायण और महाभारत) प्रक्षेपण से अछूते भी नहीं रहे| पिछले हज़ार वर्षों की विदेशी दासता में भ्रष्ट मर्गियों द्वारा, जिनका एक मात्र उद्देश्य इस देश की सांस्कृतिक बुनियाद को ध्वस्त करना ही था – इन ग्रंथों में मिलावट की गई है | अतः इन ग्रंथों के वेदानुकूल अंश को ही प्रमाणित माना जा सकता है |शेष भाग प्रक्षेपण मात्र है, जो अस्वीकार किया जाना चाहिए और जो यथार्थ में हिन्दुओं के आचरण में नकारा जा चुका है |.भविष्य पुराण में अकबर,विक्टोरिया, मुहम्मद, ईसा आदि की कहानियां पाई जाती हैं | इसके श्लोकों में सन्डे, मंडे आदि का प्रयोग भी किया गया है | हालाँकि, मुद्रण कला (छपाई) के प्रचलित होने पर १९ वें सदी के आखिर में यह कहानियां लिखी जानी थम सकी | इस से साफ़ ज़ाहिर है कि १९ वें सदी के अंत तक इस में श्लोक जोड़े जाते रहे |

२.गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रामायण और महाभारत में जो श्लोक स्पष्टत: प्रकरण से बाहर (संदर्भहीन) हैं, उन्हें प्रक्षिप्त के तौर पर चिन्हित किया गया है |

३.आश्चर्यजनक रूप से महाभारत २६५। ९४ के शांतिपर्व में भी यह दावा आता है कि कपटी लोगों द्वारा वैदिक धर्म को कलंकित करने के लिए मदिरा, मांस- भक्षण,अश्लीलता इत्यादि के श्लोक मिलाये गये हैं |

४. गरुड़ पुराण ब्रह्म कांड १। ५९ कहता है कि वैदिक धर्म को असभ्य दिखाने के लिए महाभारत दूषित किया गया है | इत्यादि ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं |

५. इन ग्रंथों के सतही अवलोकन से भी यह पता लग जाता है कि किस भारी मात्रा में मिलावट की गई है और इन कहानियों का मतलब गलत अनुवादों से बदल दिया गया है ताकि यह छलावे से धर्मांतरण के विषाणुओं और उनके वाहकों के अनुकूल हो सके
.कोई भी नए असंपादित पुराणों को महत्त्व नहीं देता (सिवाय कुछ लोगों के जिन्हें हिन्दू धर्म से कोई सरोकार नहीं है वरन् वे सिर्फ अपना अधिपत्य जमाना चाहते हैं – झूठी जन्मगत जाति व्यवस्था के बल पर. वास्तव में यह लोग धर्मांतरण के वायरस के सबसे बड़े मिले हुए साझीदार हैं – जो धर्म को अन्दर से ख़त्म करते हैं | ) हिन्दू जनसाधारण या उनके नेता भी सारे पुराणों का तो नाम तक नहीं जानते | पुराण आदि के सम्पूर्ण संस्करण भी आसानी से प्राप्य नहीं हैं |

२. इन पुस्तकों के संक्षिप्त या कुछ चुने हुए अंश ही जनसाधारण में उपलब्ध हैं | इसलिए बहुत से हिन्दू रामायण मांगने पर रामचरितमानस ला कर देंगे, महाभारत के लिए पूछने पर गीता मिलेगी और पुराणों की बजाए इन की नैतिक कथाओं का संकलन मिल सकता है | यह दर्शाता है कि हिन्दू इन पुस्तकों को वहीं तक ही स्वीकार करते हैं जहां तक वे उन्हें वेदानुकूल पाते हैं |

वे लोग अज्ञानता में गलतियाँ कर सकते हैं लेकिन लक्ष्य हमेशा वैदिक धर्म के दायरे में रहकर उपदेश देना और अनुसरण करना ही है |
राम, कृष्ण  इत्यादि हिन्दू धर्म नहीं हैं बल्कि वे तो वैदिक धर्म के अनुयायी थे | वे हमारे आदर्श और अनुकरणीय हैं | हम उन्हें चाहते हैं क्योंकि उन्होंने महान उदाहरण प्रस्तुत किए जिनका अनुशीलन किया जाना चाहिए | उन्होंने वेदों को अपने आचरण में उतारा था और जनसमुदाय को प्रेरित करने के लिए और सही दिशा में चलाने के लिए ऐसे महा पुरुषों की आवश्यकता रहती है | परंतु, जैसा ऊपर बताया जा चुका है कि धर्म शाश्वत है – अब से अरबों वर्ष बाद हो सकता है कि किन्ही दूसरे आदर्शों का अनुसरण किया जा रहा होगा |
राम या कृष्ण के जन्म से पूर्व के आदर्श कोई और होंगे और राम या कृष्ण को कोई जानता भी न होगा, पर धर्म तब भी था | यह शाश्वत वैदिक धर्म ही हिंदुत्व है और क्योंकि राम, कृष्ण और विष्णु ने इसका पालन पूर्णता से किया – वे हमारी संस्कृति, प्रेरणा, विचारों और संकल्पों का अनिवार्य अंग हैं |

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