Saturday, October 6, 2018

ब्राह्मण बिहार बुद्ध
बिहार के प्राचीन विश्वविद्यालय की विरासत किसकी ?

बिहार को समझने के लिए बुद्ध को समझना आवश्यक है lब्राह्मण और बुद्ध एक ही साझी विरासत से है l भारत के सभी प्राचीन विश्वविद्यालय ब्राह्मणों के थे ब्राह्मण मतलब घर घर जाकर शादी करने वाले ब्राह्मण नहीं बड़े रूप में सोचना  होगा विक्रमशिला में.भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई द्वारा वर्ष 1972 में तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्व डॉ0 बी0 एस0 वर्मा के नेतृत्व में 1982 तक कई चरणों में खुदाई के कार्य करीब 100 एकड़ के विशाल क्षेत्र में हुए। खुदाई में मुख्य स्तूप यानी प्रमुख चैत्य,छात्रावास के 208 कमरे,वातानुकूलित पुस्तकालय, तिब्बती धर्मशाला, हिन्दू मंदिर, प्रवेश द्वार, पाथ-वे, मनौती स्तूप के अलावा करीब 4600 चलंत अवशेष प्राप्त हुए। हिन्दू मंदिर हर विश्वविद्यालय में पाए गए है l
ब्राह्मणों ड्यूरा विश्वविद्यालय चलाया जा रहा था का है प्रमाण  है l
इस बात का कही उल्लेख नही मिलता की बुद्ध ने अपना पुराना धर्म कब त्यागा, अतः यह मानना की बौद्ध धर्म के संस्थापक बुद्ध है यह जल्दीबाजी होगी।हिन्दू धर्म के दो भाग है- कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड। ज्ञानकाण्ड का विशेष अध्ययन संन्यासी लोग करते हैं। ज्ञानकाण्ड में जातिभेद नहीं हैं। भारतवर्ष में उच्च अथवा नीच जाति के लोग संन्यासी हो सकते हैं और तब दोनों जातियाँ समान हो जाती हैं। धर्म में जाति भेद नहीं है।
बुद्ध ज्ञानकाण्ड के कारण सम्मानित व्यक्ति थे l
गौतम बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक कहना और मानना उनके साथ अन्याय करने जैसा ही है  । भगवान बुद्ध एक सुधारवादी दृष्ष्टिकोण लेकर चले थे  , उनका पूरा जीवन तत्कालिक सामाजिक विकृति के सुधर पर केंद्रित रहा ,न की किसी नये धर्म का निर्माण कर समाज को पृथक करने का था  । बुद्ध जोड़ने आये थे फिर कोई अलग धर्म बना कर समाज को तोड़ने और कमजोर करने का कार्य बुद्ध कैसे कर सकते थे  । "भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के 150 वर्षों बाद उनके ब्राह्मण अनुवाइयो ने बुद्ध के संदेशों को धर्म के रूप में परिभाषित कर एक अलग धर्म और व्यवस्था की नींव डालने का प्रयास किया महायान(नार्गाजुन, अश्वघोष)
थेरबाड (बुद्धघोष)
वज्रयान(पद्मसंभव)
तिब्बत बौद्ध(पद्मसंभव )
चीना बौद्ध(कुमारजीव )
जेन बौद्ध(बुद्धिधर्मा)
कुंग फु(कुमारजीव)
वे ऑफ बुद्धिस्त्व(शांतिदेव)
बुद्धचरित (अश्वघोष Asvaghosa )
हरिता धम्मसुत्रा (हरित)
शून्यता अवधारणा (नार्गाजुन)
सेकेँड बुद्धा (बसुबंधु)
यमनतका तंत्र (कनका)
वज्रयान-दवान्ताऊ-विकास्ना (ज्नानश्रीमित्रा )

यह सभी ब्राह्मण ही थे ,  और बौद्ध दर्शन के उत्थान में जितना इनका योगदान है उतना किसी का नही , अगर कहे की बौद्ध धर्म का कॉन्सेप्ट इनका ही था तो यह अतिश्योक्ति नही होगी । क्यों की अगर इन ब्राह्मणों और इनके योगदान को बौद्ध दर्शन से अलग करते है तो इस दर्शन में कुछ भी नही बचता क्यों की तब न बुद्ध समझ में आयेंगे न उनका दर्शन।
आप अध्ययन करे तो पायेंगे की गौतम बुद्ध  के प्रथम 5 शिष्य में 4 ब्राह्मण , बुद्ध के प्रिय शिष्य अग्निहोत्र ब्राह्मण , प्रथम द्वितीय तृतीय बौद्ध संगतियों के आयोजक ब्राह्मण , बौद्ध विहारों के लिए सर्वाधिक भूमि दान करने वाले ब्राह्मण , बुद्ध से पूर्व 27 बौद्धों में 7 ब्राह्मण,  सभी बौद्ध साहित्यों के रचनाकार ब्राह्मण , बौद्ध धम्म के सभी सम्प्रदायो यथा महायान हीनयान और बजरायन के सूत्रधार भी ब्राह्मण

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